मोदी की कुर्सी पर संकट! संघ के चरणों में नतमस्तक

बीजेपी के भीतर खामोश बगावत... जनता का बढ़ता गुस्सा और संघ का दबाव… मोदी की कुर्सी डगमगा रही है...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः दोस्तों कभी अजेय नेता, हिंदुत्व का सबसे बड़ा चेहरा और देश का चौकीदार कहे जाने वाले नरेंद्र मोदी.. आज अपनी ही कुर्सी बचाने के लिए संघ के दरवाज़े पर माथा टेकते नजर आ रहे हैं.. बीजेपी में खामोशी से ही सही, लेकिन अंदर ही अंदर भूचाल है.. जो पार्टी 2014 में मोदी-मोदी के नारे पर खड़ी हुई थी.. वही पार्टी आज पूछ रही है कि क्या मोदी ही एकमात्र विकल्प हैं.. संघ और बीजेपी का रिश्ता दशकों पुराना है.. लेकिन इस रिश्ते में खटास मोदी युग में सबसे ज़्यादा दिखी है.. संघ मानता है कि बीजेपी मोदी और शाह की प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बन गई है.. जहां बाकी नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए कोई जगह नहीं.. अब जब जनता के बीच मोदी का जादू फीका पड़ रहा है.. तब संघ ने साफ इशारा कर दिया है. कि या तो झुको, या हटो..

आपको बता दें कि 2014 और 2019 में मोदी ने जिस तरह देश की जनता को अपने जादू में बांध लिया था.. वैसा शायद किसी नेता ने पिछले 40 सालों में नहीं किया.. अच्छे दिन, साफ़-सुथरी सरकार, डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया.. ये सारे नारे लोगों के दिल को छू गए थे.. लेकिन अब हालात बदल चुके हैं.. दस साल के शासन के बाद जनता सवाल पूछ रही है.. कि नौकरियां कहां हैं.. महंगाई कब रुकेगी.. किसानों की हालत क्यों नहीं सुधरी.. भ्रष्टाचार पर अंकुश क्यों नहीं लगा..

युवाओं के हाथ में मोबाइल और डेटा जरूर आया है.. लेकिन जेब में नौकरी का ऑफर लेटर नहीं मिला.. किसानों को कभी नए कानून थोप दिए जाते हैं.. तो कभी वादे अधूरे छोड़ दिए जाते हैं.. छोटे व्यापारियों के लिए नोटबंदी और जीएसटी किसी झटके से कम नहीं रहे.. यानी जनता का गुस्सा अब उबाल पर है.. मोदी के इवेंट्स और भाषणों का असर पहले जैसा नहीं रहा.. लोग कहते हैं कि भाई, भाषण से पेट नहीं भरता..

आपको बता दें कि संघ हमेशा से बीजेपी की रीढ़ रहा है.. चुनाव में कार्यकर्ताओं की तैनाती से लेकर गांव-गांव तक विचारधारा फैलाने का काम संघ ही करता है.. लेकिन मोदी के दौर में तस्वीर बदल गई.. प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने धीरे-धीरे संघ के दखल को सीमित करना शुरू कर दिया.. अहम फैसलों में संघ को दरकिनार किया गया.. संगठन की बजाय सरकार की प्राथमिकता बढ़ गई.. पुराने विचारक और नेता किनारे कर दिए गए.. जिसको देखते हुए संघ को लगा कि मोदी सिर्फ अपनी इमेज पॉलिटिक्स पर भरोसा कर रहे हैं.. यानी पार्टी अब कार्यकर्ताओं और विचारधारा से नहीं.. बल्कि मोदी के चेहरे से चल रही है.. यही वजह है कि जब हालात बिगड़े तो संघ ने सख्ती दिखा दी.. संघ के एक वरिष्ठ नेता का बयान साफ था कि बीजेपी संघ के बिना सांस भी नहीं ले सकती..

2014 में जब वो प्रधानमंत्री बने.. तो पूरा देश दीवाना हो गया था.. अच्छे दिन आने वाले हैं, 56 इंच की छाती, विकसित भारत सहित तमाम नारे हर गली-मोहल्ले में गूंज रहे थे.. गुजरात मॉडल की धाक, आरएसएस की पृष्ठभूमि.. और बीजेपी का संगठन  सब कुछ परफेक्ट लग रहा था.. 2019 में तो उन्होंने 303 सीटें जीत लीं.. लग रहा था जैसे मोदी युग हमेशा रहेगा.. लेकिन 2024 के चुनाव ने सब उलट-पुलट कर दिया.. बीजेपी को सिर्फ 240 सीटें मिलीं.. एनडीए ने 293 पर सांस ली.. लेकिन बहुमत गंवाने का दर्द तो बना ही रहा.. अब 2025 आ गया. और कुर्सी पर संकट के बादल छा गए हैं.. क्योंकि गठबंधन के सहयोगी जैसे चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार अपनी-अपनी चाल चला रहे हैं..

वहीं ये संकट सिर्फ बाहर से नहीं, अंदर से भी आ रहा है.. बीजेपी में गुटबाजी चरम पर है.. गुजरात लॉबी  यानी मोदी-शाह का ग्रुप सबको किनारे कर रहा है.. पुराने नेता जैसे लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी को मार्गदर्शक मंडल में धकेल दिया.. अब जोशी ने खुली चिट्ठी लिखी है.. कह रहे हैं कि पार्टी में लोकतंत्र खत्म हो गया.. सब मोदी-शाह के इशारे पर चलते हैं.. राजस्थान में वसुंधरा राजे, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह, महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस सब असंतुष्ट हैं.. सूत्रो के मुताबिक 36 सांसद बगावत के मूड में हैं.. एक पोस्ट में लिखा था कि मोदी की चौतरफा घेराबंदी हो गई.., संघ ने संजय जोशी को फाइनल कर दिया..

आरएसएस बीजेपी का पिता संगठन है.. लेकिन 2025 में ये पिता सख्त हो गया लगता है.. आरएसएस की स्थापना 1925 में हुई थी.. और आज इसका शताब्दी वर्ष है.. मोदी जी खुद आरएसएस के प्रचारक रहे हैं.. लेकिन अब लगता है संघ को मोदी की मोदीत्वा पसंद नहीं आ रही.. मोहन भागवत जी ने कई बार इशारे दिए हैं.. 75 साल की उम्र का नियम, जिसमें कहा जाता है कि 75 के बाद रिटायरमेंट.. भागवत 11 सितंबर 2025 को 75 के हो गए.. मोदी जी 17 सितंबर को पचहत्तर साल के हो गए.. एक रिपोर्ट में कहा गया कि भागवत जी का बयान मोदी के इस्तीफे का संकेत था..

2025 तक संघ के शाखाओं की संख्या 83 हजार से ज्यादा हो गई.. ये संगठन शिक्षा से लेकर नीति तक सबमें घुसपैठ कर चुका है.. लेकिन 2024 चुनाव में संघ ने बीजेपी से दूरी बनाई.. क्योंकि मोदी की पर्सनल पॉपुलैरिटी पर ज्यादा जोर था.. और संगठन पर कम था.. जिसके चलते सीटें गवानी पड़ी.. और मोदी जी बैसाखी पर आ गए.. वहीं अब संघ दबाव डाल रहा है.. बीजेपी अध्यक्ष का चुनाव टल गया.. क्योंकि संघ वसुंधरा राजे या संजय जोशी जैसों को चाहता है.. मोदी-शाह नहीं..

मोदी जी को अब संघ के चरणों में नतमस्तक होना पड़ रहा है.. 15 अगस्त 2025 को लाल किले से आरएसएस को ‘दुनिया का सबसे बड़ा एनजीओ’ कहा.. मार्च 2025 में नागपुर जाकर हेडक्वार्टर विजिट की.. मोदी पहली बार पीएम बनने के बाद आरएसएस हेडक्वार्टर गए.. और शताब्दी समारोह में चीफ गेस्ट बनकर स्टांप-कॉइन रिलीज किया.. ये सब दिखावा है या मजबूरी? लगता तो मजबूरी ही है.. संघ कह रहा है कि राष्ट्रप्रथम, लेकिन मोदी पर आरोप है कि वो पर्सनल एजेंडा चला रहे हैं..

मोदी का सबसे बड़ा दांव था 2024 चुनाव में  400 पार का नारा.. लेकिन 240 पर अटक गए.. महंगाई, बेरोजगारी, किसान आंदोलन.. किसान तो आज भी लाइनों में खड़े हैं.. 2022 में 11 हजार 290 किसानों ने आत्महत्या की.. 2023 में 13 हजार मजदूरों ने आत्यहत्या कर लगी  एनडीए में TDP, JD(U) जैसे साथी है.. लेकिन नायडू कहते हैं कि हम बिना शर्त नहीं रहेंगे.. वहीं जीडीपी ग्रोथ तो ठीक ठाक है.. मोदी के आंकड़ों में.. लेकिन आम आदमी को क्या फायदा.. बेरोजगारी 8% के ऊपर.. युवा सड़कों पर.. लद्दाख में सोनम वांगचुक जैसे लोग संविधान की मांग कर रहे.. और सरकार उन्हें देशद्रोही बता रही..

आपको बता दें कि बीजेपी का सबसे बड़ा मुद्दा  हिंदुत्व का था.. जिसके चलते राम मंदिर बन गया.. लेकिन मुस्लिम विरोधी पॉलिसी से सॉफ्ट हिंदू वोटर भाग गए.. कांग्रेस कहती है, आरएसएस को खुश करने के चक्कर में देश बंट रहा.. और अब बिहार चुनाव है वहीं अगर हार गए, तो कुर्सी सच में डगमगा जाएगी.. बता दें कि मोदी की सत्ता पूरी तरह से कमजोर हो गई है.. कंट्रोल रिमोट नायडू और नीतीश के हाथ में है..

वहीं बीजेपी अंदर से जल रही है.. मोदी-शाह की जोड़ी ने सबको कंट्रोल में रखा.. लेकिन अब पुराने घाव हरे हो गए.. वसुंधरा राजे ने भागवत से गुपचुप 20 मिनट की मीटिंग की.. संजय जोशी का नाम अध्यक्ष के लिए फाइनल.. लेकिन मोदी नहीं मान रहे.. आरएसएस अब तो अब खुलकर बोल रहा है.. भागवत ने कहा कि संघ राष्ट्रप्रथम है, पर्सनल महत्वाकांक्षा नहीं.. मोदी को 75 साल का नियम मानना पड़ेगा..

अब सवाल ये कि ये संकट कैसे फूटेगा.. बड़ा धमाका कब होगा.. अगर बिहार चुनाव हार गए.. अगर नीतीश के साथ गठबंधन टूट गया.. तो केंद्र में भी संकट पैदा हो जाएगा.. राहुल गांधी लगातार मोदी पर हमलावर है.. कह रहे कि चुनाव में धांधली हुई.. इंडिया गठबंधन मजबूत हो रहा है.. अगर आरएसएस ने मोदी को किनारा किया.. तो धमाका पक्का होगा.. एक रिपोर्ट कहती है कि आरएसएस का प्रभाव मोदी सरकार से ज्यादा टिकेगा.. लेकिन अमित शाह कहते हैं कि संघ का प्रभाव पड़ता है, लेकिन हम अलग हैं..

 

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