Modi की नई साजिश, विपक्षी CM को हटाने के लिए ला रहे विधेयक
PM, मंत्रियों और CM से जुड़ा नया विधेयक लेकर आई मोदी सरकार... सपा ने इस विधेयक पर अपना रुख साफ कर दिया है...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः दोस्तों भारत की राजनीति में जबसे मोदी सत्ता में आए हैं.. तभी से संविधान के साथ छेड़छाड़ की जा रही है.. मोदी अपनी तानाशाही के चलते हमेशा से संविधान में संसोधन करते चले आ रहे है.. जबकि सबसे भ्रष्ठ और क्रिमिनल बीजेपी में भरे पड़े हैं.. लेकिन उनपर कोई कार्रवाई नहीं करने के बजाय विपक्ष को तोड़ने और जेल भेजने का काम करते आ रहे हैं.. मोदी ने सत्ता में आते ही संसद में नया विधेयक पास किया… और राजनीति से 75 साल से के लोगों को संन्यास लेने को कह दिया.. वहीं मोदी का कुछ महीनों में जाने का समय हो चला है.. जिससे पहले यह नया विधेयक लाकर आपनी तानाशाही को एक बार फिर से लागू करना चाह रहे हैं..
आपको बता दें कि भारत की राजनीति में अपराधीकरण को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने एक महत्वपूर्ण विधेयक पेश करने की तैयारी की है.. इस विधेयक का नाम है संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025.. यह विधेयक प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को गंभीर आपराधिक आरोपों में गिरफ्तार होने पर पद से हटाने का प्रावधान करता है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह लोकसभा में इस विधेयक को पेश करेंगे.. और इसे संसद की एक संयुक्त समिति को भेजने का प्रस्ताव भी रखेंगे. इस कदम को सरकार राजनीति में सुधार के रूप में देख रही है.. लेकिन विपक्षी पार्टियां इसे राजनीतिक साजिश बता रही हैं..
इस विधेयक पर समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद रामगोपाल यादव ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है… और उन्होंने कहा कि यह विधेयक सत्ता से हटाने का एक नया तरीका है.. यादव के अनुसार अगर किसी पर कोई आरोप न भी हो.. तो भी आरोप लगाए जा सकते हैं.. और वर्तमान सरकार में ऐसे आरोप लगाए जा रहे हैं. उन्होंने दावा किया कि लोगों को झूठे और गंभीर आरोपों में जेल में डाला जा रहा है.. खासकर उन राज्यों में जहां भाजपा के मुख्यमंत्री या मंत्री नहीं हैं.. वहां इस विधेयक के जरिए सत्ता से हटाने की कोशिश की जा रही है. यादव ने कहा कि लोकतांत्रिक मानदंड अब बचे ही नहीं हैं. जो लोग यह विधेयक ला रहे हैं. उन्हें यह समझ नहीं आ रहा कि एक बार सत्ता से बाहर जाने के बाद वे वापस नहीं आएंगे. उनके अपने ही लोगों ने उनका विरोध शुरू कर दिया है..
कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने भी इस पर अपनी राय रखी. उन्होंने कहा कि कांग्रेस भ्रष्टाचार के खिलाफ है. लेकिन जब से भाजपा सत्ता में आई है. भ्रष्टाचार की परिभाषा बदल गई है. चाहे चुनाव आयोग हो, ईडी हो या सीबीआई हो, इनका खूब दुरुपयोग हो रहा है. इस वजह से इन एजेंसियों की दोषसिद्धि दर 90 फीसदी से ज्यादा है. तिवारी ने कहा कि विधेयक आने दीजिए. हम इसे समझेंगे और समझने के बाद ही कार्रवाई और प्रतिक्रिया करेंगे..
विधेयक के उद्देश्यों के अनुसार वर्तमान संविधान में गंभीर आपराधिक आरोपों में गिरफ्तार और हिरासत में लिए गए मंत्री को हटाने का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है.. इसलिए संविधान के अनुच्छेद 75, 164 और 239एए में संशोधन की जरूरत है. अनुच्छेद 75 प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्रियों से संबंधित है. अनुच्छेद 164 राज्य मंत्रियों से और अनुच्छेद 239एए दिल्ली जैसे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से जुड़ा हुआ है.. विधेयक का मुख्य मकसद ऐसे मामलों में कानूनी ढांचा प्रदान करना है ताकि राजनीति में अपराधी तत्वों को रोका जा सके..
वहीं इस विधेयक में कुछ प्रमुख प्रावधान हैं जो राजनीति की सूरत बदल सकते हैं. सबसे पहले, अगर कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री गंभीर आपराधिक आरोपों में गिरफ्तार होता है.. और लगातार 30 दिनों तक हिरासत में रहता है. तो उसे पद से हटाया जा सकता है.. गंभीर आपराधिक आरोपों से मतलब ऐसे अपराधों से है जिनमें कम से कम 5 साल की सजा का प्रावधान हो.. अगर कोई केंद्रीय मंत्री गिरफ्तार होता है. तो राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर उसे हटा सकते हैं. अगर खुद प्रधानमंत्री 30 दिनों तक हिरासत में रहते हैं. तो उन्हें 31वें दिन इस्तीफा देना होगा. राज्यों में राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह पर मंत्री को हटा सकता है. अगर मुख्यमंत्री खुद शामिल है. तो राज्यपाल सीधे कार्रवाई कर सकता है.
वहीं यह विधेयक तीन भागों में है. पहला, संविधान (130वां संशोधन) विधेयक जो संवैधानिक बदलाव करेगा. दूसरा, केंद्र शासित प्रदेश की सरकार (संशोधन) विधेयक, 2025 जो दिल्ली जैसे क्षेत्रों के लिए है. तीसरा, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025 जो जम्मू-कश्मीर के विशेष प्रावधानों को कवर करता है. जिसको लेकर सरकार का कहना है कि यह विधेयक राजनीति को अपराध मुक्त बनाने का एक बड़ा सुधार है.. वर्तमान में कोई मंत्री गिरफ्तार होने पर भी पद पर बना रह सकता है. जब तक दोषी सिद्ध न हो. लेकिन यह विधेयक गिरफ्तारी के आधार पर ही कार्रवाई की अनुमति देगा. जो ‘मासूम तक साबित न होने’ के सिद्धांत को चुनौती दे सकता है..
इस विधेयक पर राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं मिली-जुली हैं. भाजपा इसे ऐतिहासिक कदम बता रही है. भाजपा नेता बोरा नरसैया गौड़ ने कहा कि यह लंबे समय से लंबित विधेयक है और राजनीति में अपराध को रोकने के लिए जरूरी है. सरकार का तर्क है कि मंत्री अगर गंभीर आरोपों में फंसते हैं. तो वे न्याय की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं. इसलिए उन्हें हटाना जरूरी है.
लेकिन विपक्ष इसे राजनीतिक हथियार मान रहा है.. रामगोपाल यादव की प्रतिक्रिया से साफ है कि एसपी इसे गैर-भाजपा राज्यों के मुख्यमंत्रियों को हटाने का तरीका बता रही है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ईडी और सीबीआई जैसी एजेंसियों का दुरुपयोग कर विपक्षी नेताओं पर झूठे केस कर रही है. प्रमोद तिवारी ने भी यही बात दोहराई कहा कि भ्रष्टाचार की परिभाषा बदल गई है. और एजेंसियों का दुरुपयोग हो रहा है. कांग्रेस इसे समझने के बाद ही फैसला करेगी.
वहीं अन्य विपक्षी नेता जैसे अभिषेक सिंघवी ने कहा कि सरकार विपक्षी मुख्यमंत्रियों को चुनाव में हरा नहीं पा रही.. इसलिए उन्हें हटाने के लिए कानून ला रही है.. रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के सांसद प्रेमचंद्रन ने कहा कि यह विधेयक स्वीकार्य नहीं है. और प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्रियों पर लागू नहीं होना चाहिए. यह लोकतंत्र के लिए अच्छा है, लेकिन राजनीतिक दुरुपयोग का खतरा है. अगर मंत्री 30 दिनों तक जेल में है, तो कुर्सी छोड़नी होगी, जो राजनीति को साफ करेगा..
भारत में राजनीति में अपराधीकरण एक पुरानी समस्या है. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट्स के अनुसार, कई सांसद और विधायक गंभीर अपराधों के आरोपी हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में 43फीसदी सांसदों पर आपराधिक केस थे. वर्तमान में अगर कोई मंत्री दोषी सिद्ध होता है. तो ही वह अयोग्य होता है. लेकिन गिरफ्तारी पर कोई स्वत: कार्रवाई नहीं होती. पिछले कुछ सालों में कई मामले सामने आए जहां विपक्षी नेता गिरफ्तार हुए. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शराब घोटाले में गिरफ्तार किया गया. लेकिन वे पद पर बने रहे. इसी तरह झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी गिरफ्तार किया गया. ऐसे मामलों में विपक्ष ने केंद्र पर एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाया.
आपको बता दें कि यह विधेयक इन कमियों को दूर करने का प्रयास है.. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह ‘निर्दोष तक साबित न होने’ के सिद्धांत का उल्लंघन कर सकता है.. संवैधानिक विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि गिरफ्तारी के आधार पर हटाना राजनीतिक दुरुपयोग को बढ़ावा दे सकता है. दुनिया के कई देशों में नेताओं को अपराधीकरण से बचाने के लिए सख्त कानून हैं. अमेरिका में राष्ट्रपति को महाभियोग के जरिए हटाया जा सकता है. लेकिन गिरफ्तारी पर स्वत: नहीं हो सकती है.. जर्मनी में मंत्री गिरफ्तार होने पर इस्तीफा दे देते हैं.. लेकिन कोई सख्त कानून नहीं है..
वहीं स्वीडन और बेल्जियम में चुनावी प्रक्रिया ऐसी है कि अपराधी उम्मीदवारों को रोका जाता है.. ऑस्ट्रेलिया में मंत्री पद पर बने रहने के लिए नैतिक मानदंडों का पालन जरूरी है.. भारत का यह विधेयक इनसे प्रेरित लगता है. लेकिन यहां राजनीतिक संदर्भ अलग है.. इस विधेयक के पास होने से राजनीति साफ हो सकती है. आम नागरिकों की तरह नेता भी जवाबदेह होंगे. अगर कोई मंत्री जेल में है. तो वह कैसे सरकार चला सकता है. यह सुधार मतदाताओं का विश्वास बढ़ा सकता है..
लेकिन नुकसान भी हैं. विपक्ष का डर है कि केंद्र ईडी, सीबीआई का इस्तेमाल कर विपक्षी सरकारों को अस्थिर कर सकता है.. दोषसिद्धि दर ज्यादा होने का मतलब है कि केस मजबूत हैं. लेकिन विपक्ष इसे राजनीतिक कहता है. अगर विधेयक पास होता है. तो कई राज्य सरकारें प्रभावित हो सकती हैं. कानूनी रूप से यह संविधान संशोधन है. इसलिए लोकसभा और राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत जरूरी है. फिर आधे राज्यों की मंजूरी. भाजपा के पास बहुमत है. लेकिन विपक्ष विरोध करेगा.
आपको बता दें कि संवैधानिक विशेषज्ञों का कहना है कि यह विधेयक जरूरी है.. लेकिन इसमें सुरक्षा उपाय जोड़ने चाहिए. गिरफ्तारी की समीक्षा के लिए एक स्वतंत्र समिति होनी चाहिए. जो बिना किसी दबाव के पूरी स्वतंत्रता और इमानदारी के साथ जांच करे.. लेकिन मोदी के सत्ता में रहते हुए यह संभव नहीं है.. मोदी के तमाम बड़े नेता अपराधी है.. लेकिन बीजेपी में रहते हुए उन्हे क्लीन चिट मिल चुकी है. और अब वे अपराधी नहीं है.. मोदी की नजर में विपक्ष से बड़ा कोई अपराधी नहीं है.. क्योंकि विपक्ष ने मोदी की हालत खराब कर दी है.. जिससे उनती लोकप्रियता खत्म होने की कगार पर है.. उनकी रैली में लोगों ने जाना छोड़ दिया है.. जिससे उनके चेहरे की चमक धूमिल हो गई है..
आपको बता दें कि भारत में पहले भी राजनीति सुधार के प्रयास हुए.. 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि उम्मीदवारों को आपराधिक रिकॉर्ड बताना जरूरी है.. 2013 में लिली थॉमस मामले में दोषी सिद्ध होने पर अयोग्यता का फैसला आया. लेकिन गिरफ्तारी पर कुछ नहीं हुआ. 2018 में चुनाव सुधार पर कानून मंत्रालय ने रिपोर्ट दी. लेकिन लागू नहीं हुई. अब यह विधेयक उस दिशा में बड़ा कदम है..



