78 साल बाद आजाद हुआ गुजरात का ये गांव, गांव के लोगों में जश्न

गुजरात के बनासकांठा जिले में आजादी के बाद पहली बार एक दलित कीर्ति चौहान ने गांव के नाई की दुकान पर बाल कटवाए...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः दोस्तों गुजरात के बनासकांठा जिले में बसा आलवाड़ा गांव हाल ही में एक बड़ी सामाजिक घटना का गवाह बना…… यहां 7 अगस्त 2025 को 24 साल के खेत मजदूर किर्ती चौहान ने गांव की नाई की दुकान पर पहली बार बाल कटवाए…… यह सिर्फ एक साधारण बाल कटवाने की घटना नहीं थी…… बल्कि पीढ़ियों से चले आ रहे जातिगत भेदभाव….. और सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ एक बड़ी जीत थी…… गांव की सभी पांच नाई की दुकानें अब अनुसूचित जाति (दलित) समुदाय के लोगों के लिए खुल गई हैं…… यह कदम दलित समाज के लिए सच्ची आजादी का प्रतीक बन गया है…… खासकर तब जब देश स्वतंत्रता दिवस की तैयारी कर रहा था……..

आलवाड़ा गांव की आबादी करीब 6,500 है….. जिसमें से लगभग 250 लोग दलित समुदाय से हैं…… सालों से यहां दलितों को स्थानीय नाइयों से बाल कटवाने की इजाजत नहीं मिलती थी……. वे पड़ोसी गांवों में जाकर बाल कटवाते थे….. और कई बार अपनी जाति छिपाकर ऐसा करते थे……. यह भेदभाव आजादी से पहले से चला आ रहा था….. और आजादी के 78 साल बाद भी जारी था…… लेकिन किर्ती चौहान की इस घटना ने इतिहास बदल दिया….. और उन्होंने कहा कि मैं गांव का पहला दलित हूं जिसने यहां बाल कटवाए……. जितना याद है, हम हमेशा दूसरे कस्बों में जाते थे……. मेरे 24 साल के जीवन में पहली बार मुझे अपने गांव में आजादी और स्वीकृति का अहसास हुआ…….

वहीं यह घटना कैसे हुई? इसके पीछे लंबा संघर्ष था….. दलित समुदाय के लोगों ने महीनों तक प्रयास किए……. स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता चेतन दाभी ने इसमें अहम भूमिका निभाई…… और उन्होंने ऊपरी जातियों के लोगों और नाइयों को समझाया कि यह प्रथा असंवैधानिक है और कानून के खिलाफ है…… जब बातचीत से काम नहीं बना, तो पुलिस और जिला प्रशासन ने हस्तक्षेप किया…… तहसीलदार जनक मेहता ने गांव के नेताओं से चर्चा की और शिकायतों का समाधान किया…… और उन्होंने कहा कि हमने भेदभाव की शिकायतों पर ध्यान दिया….. और गांव के नेताओं के साथ मिलकर शांतिपूर्ण समाधान निकाला…..

गांव के सरपंच सुरेश चौधरी ने भी इस बदलाव में साथ दिया….. और उन्होंने स्वीकार किया कि पहले की प्रथा गलत थी और कहा कि सरपंच के तौर पर मुझे पहले की प्रथा पर अफसोस था…… मुझे गर्व है कि यह मेरे कार्यकाल में खत्म हुई…… किर्ती को बाल काटने वाले नाई पिंटू नाई 21 साल के हैं…. उन्होंने कहा कि पहले हम समाज के आदेश का पालन करते थे……. लेकिन अब बुजुर्गों ने बदलाव को मंजूर किया, तो कोई रोक नहीं है…… इससे हमारे कारोबार को भी फायदा हो रहा है…..

वहीं इस घटना की जड़ें बहुत गहरी हैं…… आलवाड़ा में दलितों का इतिहास भेदभाव से भरा पड़ा है……. 58 साल के छोगाजी चौहान ने बताया कि हमारे पूर्वजों ने आजादी से पहले यह भेदभाव झेला….. और मेरे बच्चे आजादी के आठ दशक बाद भी इसे सहते रहे…… हमें बाल कटवाने के लिए मीलों पैदल चलना पड़ता था….. यह सिर्फ आलवाड़ा की समस्या नहीं है…… गुजरात के कई गांवों में दलितों को नाइयों से सेवा नहीं मिलती। उदाहरण के तौर पर, 2017 में अहमदाबाद के पास एक गांव में दलितों को बाल कटवाने से मना कर दिया जाता था…… वहां के युवा सतीश मेहरिया ने कहा था कि दलित रोजाना भेदभाव झेलते हैं……. लेकिन शिकायत नहीं करते…… इसी तरह 2019 में फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट में बताया गया कि गुजरात के सैकड़ों गांवों में दलितों को बाल कटवाने में दिक्कत आती है…… एक व्यक्ति ने नाइयों से कहा कि वे जो चाहें करें…… लेकिन दलितों के बाल नहीं काटेंगे…..

भारत में जाति व्यवस्था हजारों साल पुरानी है……. हिंदू धर्म में वर्ण व्यवस्था के आधार पर लोग ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र में बंटे हैं…… दलित या अनुसूचित जातियां सबसे नीचे हैं……. मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच के अनुसार, जाति रस्मी शुद्धता पर आधारित है और जन्म से तय होती है……. गुजरात में दलितों के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं…….. 2023 में बनासकांठा के ही एक गांव में दलित व्यक्ति और उसकी मां पर ऊपरी जाति के लोगों ने हमला किया क्योंकि वह अच्छे कपड़े पहने था…… 2025 में भी एक दलित युवक ने ऊपरी जाति जैसे कपड़े पहनने पर आत्महत्या कर ली…….

आलवाड़ा की घटना ने दलित समुदाय में खुशी की लहर दौड़ा दी…… ईश्वर चौहान, एक दलित किसान है उन्होंने कहा कि आज हमें नाई की दुकान पर जगह मिली…… लेकिन सामुदायिक भोज में अभी अलग बैठना पड़ता है……. उम्मीद है कि वह भी बदल जाएगा…… पटेल समुदाय के प्रकाश पटेल ने समर्थन किया और कहा कि अगर मेरी किराने की दुकान पर सभी ग्राहक आते हैं……. तो नाई की दुकान पर क्यों नहीं…… गलत प्रथा का अंत अच्छा है…..

बता दें कि इस बदलाव के लिए दलितों ने पहले गांव में मीटिंग्स कीं……. चेतन दाभी ने बताया कि महीनों की कोशिश के बावजूद कई लोग बदलाव नहीं मानते थे……. पुलिस और प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद ऊपरी जातियां राजी हुईं…… प्रशासन ने नाइयों को चेतावनी दी कि भेदभाव बंद करें या दुकानें बंद कर दें…… इससे सभी ने बदलाव स्वीकार किया…… व्यापक रूप से देखें तो भारत में दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष जारी है…… संविधान में अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता को अपराध बताता है……. लेकिन ग्रामीण इलाकों में यह आम है…… केरल में 2020 में एक सरकारी सैलून ने दलितों के लिए सेवा शुरू की…… जो सदियों पुरानी जाति व्यवस्था को चुनौती देता है……. गुजरात में 2016 में ऊना कांड ने दलितों को एकजुट किया, जहां दलितों पर हमला हुआ था……

आलवाड़ा की यह घटना छोटी लगती है….. लेकिन इसका बड़ा असर है…… दलितों ने इसे “छोटा कट, बड़ा बदलाव” कहा….. यह दिखाता है कि बातचीत, कानूनी हस्तक्षेप और समुदाय की एकजुटता से बदलाव संभव है…… लेकिन अभी लंबा रास्ता बाकी है….. गांवों में दलितों को मंदिरों, कुओं और खेतों में प्रवेश नहीं मिलता….. महामारी के दौरान दलितों पर हिंसा बढ़ी…… सरकार और समाज को मिलकर काम करना होगा….. शिक्षा से जातिवाद की जड़ें कमजोर होंगी…….. युवा पीढ़ी को सिखाना चाहिए कि सभी बराबर हैं…… आलवाड़ा के नाइयों ने अब सभी का स्वागत किया……. जो कारोबार के लिए भी अच्छा है…… यह अन्य गांवों के लिए उदाहरण है…..

 

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