द सैटेनिक वर्सेस के पुन: प्रकाशन की अनुमति से मुस्लिमों में उबाल

  • पूछे जा रहे सवाल, आखिर क्यों कर रही ऐसा सरकार
  • किताब का पुन:प्रकाशन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने की कोशिश
  • क्यों छिडक़ा जा रहा है मुस्लिमों के जख्मों पर नमक

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। देश में इस समय एक बड़ा विवाद उठ खड़ा हुआ है। सलमान रश्दी की लिखी किताब द सैटेनिक वर्सेस के पुन:प्रकाशन की अनुमति मिल जाने के बाद इस किताब को लेकर मुसलमानों का गुस्सा गहरा रहा और किताब को लेकर उनकी प्रतिक्रियाएं तीव्र रही हैं। मुसलमानों का मानना है कि इस किताब ने उनके धर्म और पैगंबर का अपमान किया है, और इसका प्रकाशन उनके लिए बहुत बड़ा आघात हो सकता है।
इस किताब को लेकर उनकी संवेदनाएं अतीत में इतनी ज्यादा उबाल पर थीं कि इसके विरोध में सडक़ों पर भारी प्रदर्शन हुए थे, और कई स्थानों पर धार्मिक असहमति के कारण हिंसा भी हुई थी क्योंकि भारत में मुस्लिम समुदाय की धार्मिक भावनाएं बहुत संवेदनशील होती हैं।

क्यों हो रहा है किताब का पुन:प्रकाशन

बड़ा सवाल यही है कि आखिर मोदी सरकार इस किताब के पुन: प्रकाशन की अनुमति क्यों दे रही है? एक ओर जब संघ प्रमुख मोदी सरकार की कार्यप्रणाली को लेकर लगातार पेंच कस रहे हैं। ऐसे में यह फैसला यकीनन किसी विशेष राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए उठाया गया प्रातीत हो रहा है। वर्तमान में भारतीय राजनीति में मुस्लिम समुदाय और उनकी धार्मिक भावनाओं को एकतरफा नजरिए से देखा जा रहा है। मोदी सरकार के लिए यह मुद्दा एक बड़ा राजनीतिक दांव हो सकता है। भाजपा ने हमेशा से यह दावा किया है कि वह धार्मिक स्वतंत्रता के पक्ष में है, लेकिन इस तरह के कदम उठाकर सरकार अपने राजनीतिक समर्थन को भी सुनिश्चित करना चाहती है। बीजेपी को शायद लगता है कि भारत में एक अलग तरह का राजनीतिक विमर्श स्थापित होगा, जिसमें मुस्लिम वोट बैंक को प्रभावित किया जा सकता है। इसके विपरीत, सरकार यह भी जानती है कि इस किताब को लेकर असहमति रखने वाले लोग अक्सर धार्मिक उन्माद को बढ़ावा देने के आरोप में सरकार का विरोध करते हैं।

दोबारा पाबंदी लगाने की मांग

ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्टï्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने कहा कि अब किताब पर प्रतिबंध के मामले में अंतिम फैसला हो चुका है और प्रतिबंध हटा लिया गया है। इस किताब में इस्लाम के खिलाफ वो बातें लिखी गई हैं जो जुबान पर नहीं लाई जा सकती हैं। इसमें सनातनी देवी देवताओं के खिलाफ भी अपशब्द कहा गया है। मैं उन प्रकाशकों से अपील करता हूं कि वह इस किताब को न छापें। अगर कोई प्रकाशक किताब छापता है और इससे माहौल खराब होता है तो इसके लिए लेखक और पाठक दोनों जिम्मेदार होंगे। हम लोग इस किताब की बिक्री नहीं होने देंगे। मैं भारत सरकार से अपील करता हूं कि दोबारा से इस किताब पर पाबंदी लगाई जाए।

किताब का पुन: प्रकाशन धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक

भारत में इस किताब के पुन:प्रकाशन से सामाजिक और धार्मिक तनाव बढ़ सकता है। मुसलमानों के विरोध के बाद यह संभव है कि कई इलाकों में प्रदर्शन हों, और यदि स्थिति बिगड़ी तो हिंसा की संभावना भी हो सकती है। यह सरकार की छवि पर भी असर डाल सकता है, क्योंकि इससे यह संदेश जा सकता है कि सरकार मुसलमानों के जख्मों पर नमक छिडक़ने के लिए जिम्मेदार है। वहीं, हिंदू समुदाय के कुछ हिस्से इसे एक स्वतंत्रता का प्रतीक मान सकते हैं, जो भारतीय धर्मनिरपेक्षता के नाम पर अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने की कोशिश करता है। कई बुद्धिजीवी और लेखक इसे साहित्यिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के रूप में भी देख सकते हैं, जो भारत में खुले विचारों और बहसों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।

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