नागालैंड में हो गया बड़ा राजनीतिक खेल!

- भाजपा के दोनों हाथों में लड्डू वाली स्थिति
- मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो काफी मजबूत स्थिति में
- एनसीपी के सभी सात विधायकों ने बगावत कर बदल लिया पाला
- एनडीपीपी में शामिल हो गये सभी विधायक, विस अध्यक्ष ने दी मंजूरी, देखते रह गये चाचा-भतीजे
- इस पूरे घटनाक्रम में अजीत पवार की मौन सहमति, शरद पवार को दांव
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। पूर्वोत्तर भारत का राज्य नागालैंड जो आमतौर पर राष्ट्रीय राजनीति की सुर्खियों से दूर रहता है लेकिन इस बार देशभर की राजनीति में चर्चा का विषय बन गया है। इसका कारण बना नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के सात विधायकों का अपनी पार्टी छोड़कर सत्ताधारी दल नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी में विलय। यह घटनाक्रम जहां राज्य की राजनीति को एक नए संतुलन की ओर ले जा रहा है, वहीं राष्ट्रीय स्तर पर एनसीपी के भीतर गहराते टकराव को भी उजागर करता है। नागालैंड में एनसीपी के सभी सात विधायकों ने सामूहिक बगावत कर पाला बदल लिया है। जिन विधायकों ने पाला बदला है, उनमें टेनिंग से नामरी नचांग, अटोइजु से पिक्टो शोहे, वोखा टाउन से वाई म्होंबेमो हम्त्सो, मोन टाउन से वाई मनखाओ कोन्याक, लोंगलेंग से ए पोंगशी फोम, नोक्लाक से पी लोंगोन और सुरुहोटो से एस. तोइहो येप्थो शामिल हैं। विधायकों के इस कदम से नगालैंड विधानसभा में मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो का बहुमत काफी मजबूत हो गया है। एनसीपी के सात विधायकों ने सीएम नेफ्यू की पार्टी एनडीपीपी में विलय किया है। एनसीपी ने इसे विश्वासघात बताया है और काूननी विक्ल्प तलाशने की बात कही है। वही पार्टी की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि वह इस पूरे प्रकरण को एनडीए महागठबंधन की बैठक में उठायेगा।
कानूनी रूप से वैध है विलय
नागालैंड विधानसभा में एनसीपी के कुल 7 विधायक थे जो नगालैंड में वर्ष 2023 के विधानसभा चुनावों में चुने गए थे। यह विधायक न तो सरकार में थे और न ही पूरी तरह से विपक्ष की भूमिका निभा रहे थे। सभी विधायकों ने अचानक एनडीपीपी का दामन थामने का सामूहिक एलान कर दिया। एनडीपीपी को भाजपा का समर्थन प्राप्त है और वह राज्य की मौजूदा सरकार चला रही है। इस विलय को विधानसभा अध्यक्ष ने भी मंज़ूरी दे दी है मतलब साफ है इस पूरे विलय को कानूनी रूप से वैध माना गया है।
विधायकों ने कहा- नहीं हो रहा था काम
एनसीपी के जिन विधायकों ने बागवत की है उनका कहना है कि सरकार में उनका कोई काम नहीं हो रहा था इसलिए उन्हें यह कदम उठाना पड़ा। विधायकों ने अपने निर्वाचन क्षेत्रों में विकास कार्यों की धीमी गति और पार्टी नेतृत्व से असंतोष के चलते एनडीपीपी में शामिल होने का निर्णय लिया। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने पुष्टि की कि यह विलय संविधान के दो-तिहाई समर्थन के प्रावधान के तहत हुआ है जिससे यह दलबदल विरोधी कानून का उल्लंघन नहीं माना गया।
विपक्ष खत्म मतलब लोकतंत्र पर प्रश्नचिन्ह
एनडीपीपी और भाजपा के गठबंधन वाली सरकार पहले से ही सत्ता में थी। एनसीपी विधायकों के एनडीपीपी में शामिल होने से सरकार की स्थिति और मजबूत हो गयी है। जिससे विपक्ष और कमजोर हुआ है। इस कदम से एनडीपीपी की विधानसभा में सीटों की संख्या 25 से बढ़कर 32 हो गई है जिससे उसकी स्थिति और मजबूत हुई है। यह घटनाक्रम एनसीपी के भीतर चल रहे आंतरिक विभाजन का हिस्सा बताया जा रहा है। जहां अजीत पवार और शरद पवार के नेतृत्व वाले दो गुट सामने आए हैं। नागालैंड के एनसीपी विधायकों ने अजीत पवार गुट का समर्थन किया, जिससे शरद पवार के नेतृत्व को झटका लगा है। पार्टी के मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता और राष्ट्रीय महासचिव बृजमोहन श्रीवास्तव ने कहा है कि हम मामले की सूक्ष्म स्तर पर जांच करेंगे और अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए सभी कानूनी विकल्पों पर विचार करेंगे।
पूर्वोत्तर में ऐसा पहले भी हो चुका है
नागालैंड में जो हुआ वह असम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में पहले ही देखने को मिल चुका है। वहां भी सत्तारूढ़ दल या गठबंधन में शामिल होने के लिए विपक्षी दलों के विधायक दल-बदल करते रहे हैं। इस रुझान से यह स्पष्ट होता जा रहा है कि पूर्वोत्तर राज्यों में मजबूत विपक्ष की अनुपस्थिति लोकतंत्र की सेहत के लिए खतरा बन सकती है। यह न केवल स्थानीय प्रशासनिक जवाबदेही को कमजोर करता है बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में विपक्ष की ताकत को भी सीमित करता है।
भाजपा की होगी पौबारह
विलय और बगावत का पूरा लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिला है। बीजेपी को पूर्वोत्तर के राज्यों में एक मजबूत और स्थीय सरकार की जरूरत थी जोकि इस घटनाक्रम से पूरी हो गयी। भले ही एनसीपी के सभी एनडीपीपी में गये हो लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर इसका पूरा लाभ बीजेपी को ही मिल रहा है। नागालैंड में भाजपा और एनडीपीपी गठबंधन की सरकार है जिसमें इस विलय के बाद 32 विधायक हो गए हैं जिससे सरकार और अधिक स्थिर हो गई है।




