मनसे की धमकी से डरे मोदी के विधायक, मराठी में लिखा नाम    

गुजरात में बीजेपी विधायक ने अपने ऑफिस का बोर्ड गुजराती से हटाकर मराठी में क्यों कर दिया? क्या वाकई मनसे की धमकी का इतना असर हुआ?

4पीएम न्यूज नेटवर्कः दोस्तों इस खबर में हम आज हम बात करेंगे महाराष्ट्र में चल रहे एक ऐसे मुद्दे की…… जो एक बार फिर सुर्खियों में है…….. जी हां, हम बात कर रहे हैं मराठी भाषा को लेकर छिड़े विवाद की……. जिसमें महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने अपनी आक्रामक रणनीति से सबका ध्यान खींचा है…….. और इस बार निशाने पर हैं गुजरात के बीजेपी विधायक…….. जिन्हें मनसे की चेतावनी के बाद अपने कार्यालय का साइनबोर्ड बदलना पड़ा…….

आपको बता दें कि महाराष्ट्र में इन दिनों भाषा को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है…….. बात शुरू हुई नवी मुंबई के सीवुड्स इलाके से…… जहां गुजरात के बीजेपी विधायक वीरेंद्रसिंह बहादुरसिंह जडेजा ने अपना जनसंपर्क कार्यालय खोला था……. इस कार्यालय का साइनबोर्ड पूरी तरह गुजराती भाषा में था……. लेकिन महाराष्ट्र में मराठी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए हमेशा मुखर रहने वाली राज ठाकरे की पार्टी, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को ये बात बिल्कुल पसंद नहीं आई……

वहीं मनसे कार्यकर्ताओं ने इस साइनबोर्ड पर कड़ी आपत्ति जताई…… और विधायक को 24 घंटे का अल्टीमेटम दे दिया……… उनका साफ कहना था कि महाराष्ट्र में रहना है……. तो मराठी भाषा का सम्मान करना होगा….. अगर बोर्ड मराठी में नहीं बदला गया……. तो मनसे अपने तरीके से कार्रवाई करेगी…….. और फिर, जो हुआ, वो अब सुर्खियों में है…… रातोंरात, गुजराती साइनबोर्ड को हटाकर मराठी में नया बोर्ड लगा दिया गया…….. लेकिन ये मामला इतना आसान नहीं है……. जितना दिखता है……

दरअसल, नवी मुंबई के सीवुड्स, सेक्टर-42 में स्थित शेल्टर आर्केड सोसाइटी में गुजरात के कच्छ जिले की रापर विधानसभा से बीजेपी विधायक वीरेंद्रसिंह बहादुरसिंह जडेजा ने अपना जनसंपर्क कार्यालय खोला था…… इस कार्यालय का साइनबोर्ड शुरू में गुजराती भाषा में था….. जिस पर स्थानीय मनसे कार्यकर्ताओं ने आपत्ति जताई……. उनका कहना था कि महाराष्ट्र में सरकारी और निजी कार्यालयों के साइनबोर्ड मराठी भाषा में होने चाहिए…… क्योंकि ये राज्य की आधिकारिक भाषा है…….

जिसको लेकर मनसे के नवी मुंबई शहर सचिव सचिन कदम और अन्य कार्यकर्ताओं ने गुरुवार को विधायक के दफ्तर पहुंचकर इस मुद्दे पर स्पष्टीकरण मांगा…… और उन्होंने साफ कहा कि महाराष्ट्र में मराठी भाषा का सम्मान होना चाहिए…… अगर 24 घंटे के भीतर बोर्ड नहीं बदला गया, तो हम आक्रामक कार्रवाई करेंगे……. वहीं इस चेतावनी के कुछ ही घंटों बाद, गुरुवार देर रात को साइनबोर्ड को बदल दिया गया….. अब बोर्ड पर मराठी भाषा में जानकारी लिखी गई है……. लेकिन, इस घटना ने न सिर्फ नवी मुंबई, बल्कि पूरे महाराष्ट्र में भाषाई विवाद को और हवा दे दी है।…….

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना और इसके प्रमुख राज ठाकरे लंबे समय से मराठी भाषा…… और संस्कृति को बढ़ावा देने की वकालत करते रहे हैं…… उनका कहना है कि महाराष्ट्र में रहने वाले हर व्यक्ति को मराठी भाषा सीखनी चाहिए…… और इसका इस्तेमाल करना चाहिए…… इस बार भी मनसे कार्यकर्ताओं ने दावा किया कि उनका विरोध मराठी भाषा के सम्मान के लिए था…….

मनसे के कार्यकर्ताओं ने मीडिया से बातचीत में कहा कि महाराष्ट्र सरकार और कोर्ट का साफ आदेश है कि सभी दफ्तरों और दुकानों के साइनबोर्ड मराठी में होने चाहिए……. बीजेपी विधायक ने पहले मराठी में बोर्ड लगाया था……. लेकिन बाद में उसे हटाकर गुजराती में बोर्ड लगा दिया, जो हमें स्वीकार नहीं है……

लेकिन इस पूरे मामले में एक सवाल उठता है…… क्या मराठी भाषा को बढ़ावा देने का ये तरीका सही है? मनसे की धमकी और अल्टीमेटम की रणनीति ने कई लोगों को नाराज़ भी किया है……. कुछ लोग इसे मराठी भाषा और संस्कृति की रक्षा के लिए ज़रूरी कदम मानते हैं…….. तो कुछ इसे भाषाई अल्पसंख्यकों खासकर उत्तर भारत से आए हिंदी……. और गुजराती भाषी लोगों के खिलाफ एक तरह की धमकी मान रहे हैं……

इस पूरे विवाद में सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि बीजेपी विधायक वीरेंद्रसिंह जडेजा की तरफ से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है……. बोर्ड बदलने के बाद भी उन्होंने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है……. लेकिन, विवाद बढ़ता देख नवी मुंबई पुलिस ने विधायक के दफ्तर पर दो कांस्टेबल तैनात कर दिए हैं……. ताकि कोई अप्रिय घटना न हो…..

इसके साथ ही मनसे कार्यकर्ताओं ने विधायक…… और उनके सहयोगियों के खिलाफ एनआरआई सागरी पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करने की मांग की है…… उनका कहना है कि गुजराती बोर्ड लगाना मराठी भाषा और महाराष्ट्र की संस्कृति का अपमान है……. हालांकि, अभी तक पुलिस ने इस शिकायत पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है……

वहीं ये पहली बार नहीं है…… जब मनसे ने भाषा को लेकर इतना आक्रामक रुख अपनाया हो…….. इससे पहले भी राज ठाकरे की पार्टी ने कई बार हिंदी और अन्य भाषा बोलने वालों के खिलाफ कार्रवाई की है…….. हाल ही में मुंबई के घाटकोपर इलाके में एक महिला से मराठी में बात करने को कहा गया…….. जब उसने मना किया तो मनसे कार्यकर्ताओं के साथ उसकी तीखी बहस हुई…….

इसी तरह जुलाई 2025 की शुरुआत में शेयर बाजार के निवेशक सुशील केडिया के ऑफिस में मनसे कार्यकर्ताओं ने तोड़फोड़ की थी……. क्योंकि केडिया ने सोशल मीडिया पर लिखा था कि वो मराठी नहीं सीखेंगे……. इस घटना ने भी खूब सुर्खियां बटोरी थीं……

वहीं पिछले कुछ महीनों में मनसे ने मेट्रो साइनबोर्ड से हिंदी हटवाने की मांग भी की थी……. ठाणे के डोंबिवली में मेट्रो लाइन 12 के साइनबोर्ड पर हिंदी में लिखी जानकारी को मिटाकर मराठी में अपडेट करने का दबाव डाला गया था……. इन सभी घटनाओं से साफ है कि मनसे मराठी भाषा को लेकर कोई समझौता करने के मूड में नहीं है…….

आपको बता दें कि महाराष्ट्र में भाषा का मुद्दा सिर्फ साइनबोर्ड तक सीमित नहीं है…… ये एक गहरे सामाजिक और सियासी विवाद का हिस्सा है…….. मनसे का कहना है कि मराठी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देना उनकी प्राथमिकता है…… क्योंकि महाराष्ट्र में रहने वाले कई लोग मराठी सीखने और बोलने से कतराते हैं……. दूसरी तरफ, हिंदी और गुजराती भाषी समुदाय का कहना है कि भाषा को थोपा नहीं जा सकता……. प्यार और सहमति से भाषा सीखी जा सकती है, न कि धमकी और दबाव से……

इस विवाद ने महाराष्ट्र की सियासत में भी नया रंग भर दिया है……. एक तरफ, मनसे और शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) जैसे दल मराठी भाषा को लेकर आक्रामक रुख अपना रहे हैं….. दूसरी तरफ, बीजेपी और अन्य राष्ट्रीय पार्टियां इस मुद्दे पर सावधानी बरत रही हैं…… ताकि भाषाई अल्पसंख्यकों को नाराज़ न किया जाए……

हाल ही में मनसे प्रमुख राज ठाकरे और उनके चचेरे भाई उद्धव ठाकरे 20 साल बाद एक मंच पर आए थे…….. दोनों ने 5 जुलाई 2025 को एक विजय रैली में हिस्सा लिया…… जहां मराठी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने की बात जोर-शोर से उठाई गई……. इस रैली ने भी भाषा विवाद को और हवा दी……

मनसे कार्यकर्ता बार-बार ये दावा कर रहे हैं कि महाराष्ट्र सरकार और कोर्ट ने साफ आदेश दिए हैं कि सभी दफ्तरों और दुकानों के साइनबोर्ड मराठी में होने चाहिए……. लेकिन, क्या वाकई ऐसा कोई सख्त कानून है……

आपको बता दें कि महाराष्ट्र सरकार ने 2020 में महाराष्ट्र दुकान और स्थापना अधिनियम में संशोधन किया था…… इसके तहत, सभी दुकानों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के साइनबोर्ड मराठी में होने चाहिए……. सुप्रीम कोर्ट ने भी 2022 में इस नियम को बरकरार रखा था……. लेकिन इस कानून में निजी कार्यालयों, खासकर राजनीतिक दलों के जनसंपर्क कार्यालयों के लिए कोई सख्त प्रावधान नहीं है…….

फिर भी मनसे कार्यकर्ता इस नियम का हवाला देकर गैर-मराठी साइनबोर्ड को हटवाने की मांग कर रहे हैं…….. उनके इस आक्रामक रुख ने कई लोगों में डर का माहौल पैदा कर दिया है….. वहीं नवी मुंबई के नेरुल इलाके में मनसे ने चेतावनी पोस्टर भी लगाए हैं……. जिनमें लिखा है कि महाराष्ट्र में रहना है, तो मराठी सीखनी होगी…….  एक अन्य पोस्टर में लिखा है कि एजी मराठी बोलना सीख लो, वरना वो मनसे वाला आ जाएगा……. इन पोस्टरों ने विवाद को और भड़का दिया है……….

वहीं इस पूरे मामले ने एक बार फिर महाराष्ट्र में भाषा और संस्कृति के मुद्दे को गरमा दिया है……. सवाल ये है कि क्या मराठी भाषा को बढ़ावा देने का ये तरीका सही है……. क्या धमकी और दबाव से कोई भाषा सीखी जा सकती है…… या फिर, क्या हमें एक-दूसरे की भाषा और संस्कृति का सम्मान करते हुए सहमति और समझदारी से आगे बढ़ना चाहिए……

 

Related Articles

Back to top button