गुजरात चुनाव से पहले सौगात! बीजेपी की मेहरबानी से दुष्कर्म आरोपी नारायण साईं को मिली जमानत
गुजरात चुनाव से ठीक पहले बड़ा विवाद! आसाराम का बेटा नारायण साईं, जो दुष्कर्म का आरोपी है, जेल से बाहर आया...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः दोस्तों गुजरात में चुनाव की सरगर्मियां तेज होने से ठीक पहले एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है.. स्वयंभू संत आसाराम बापू के बेटे नारायण साईं, जो दुष्कर्म के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं.. उनको गुजरात हाई कोर्ट ने 18 सितंबर 2025 को 5 दिन की अस्थायी जमानत दे दी है.. यह जमानत उनकी बीमार मां से मिलने के लिए दी गई है.. लेकिन कुछ लोग इसे बीजेपी सरकार की मेहरबानी बता रहे हैं.. और चुनावी सौगात कह रहे हैं.. क्या यह वाकई राजनीतिक फैसला है या सिर्फ कोर्ट का मानवीय आधार पर लिया गया निर्णय है..
आपको बता दें कि नारायण साईं आसाराम बापू के बेटे हैं.. आसाराम बापू खुद को एक संत बताते थे और उनके लाखों अनुयायी थे.. लेकिन 2013 में उनके खिलाफ गंभीर आरोप लगे.. एक नाबालिग लड़की ने आसाराम पर दुष्कर्म का आरोप लगाया था.. इसी तरह, नारायण साईं पर भी उनकी एक पूर्व शिष्या ने 2013 में दुष्कर्म का आरोप लगाया.. यह मामला सूरत पुलिस स्टेशन में दर्ज हुआ.. जांच के बाद अप्रैल 2019 में सूरत की सेशंस कोर्ट ने नारायण साईं को दोषी ठहराया.. और उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 376, 377, 354, 323, 504 और 506(2) के तहत दोषी पाया गया.. सजा के रूप में उन्हें आजीवन कारावास मिला..
नारायण साईं दिसंबर 2013 से जेल में हैं.. वे सूरत की लाजपोर सेंट्रल जेल में सजा काट रहे हैं.. उनके पिता आसाराम भी राजस्थान में दुष्कर्म के एक अलग मामले में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे हैं.. आसाराम को 2018 में जोधपुर कोर्ट ने दोषी ठहराया था.. दोनों बाप-बेटे के केसों ने पूरे देश में हलचल मचा दी थी.. इन मामलों में कई महिलाओं ने आरोप लगाए कि आश्रम में उनके साथ गलत व्यवहार हुआ.. पुलिस जांच में पता चला कि आश्रम में कई अनियमितताएं थीं.. जैसे धन की हेराफेरी और यौन शोषण..
वहीं यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं है.. आसाराम का साम्राज्य बहुत बड़ा था.. उनके आश्रम गुजरात, राजस्थान और अन्य राज्यों में फैले थे.. लाखों लोग उनके अनुयायी थे, जिनमें राजनीतिक नेता भी शामिल थे.. लेकिन आरोप लगने के बाद कई अनुयायी अलग हो गए.. नारायण साईं भी अपने पिता की तरह खुद को संत बताते थे और आश्रम चलाते थे.. उनके खिलाफ आरोप लगाने वाली महिला ने कहा कि साईं ने उन्हें धोखे से फंसाया.. और शोषण किया.. कोर्ट ने सबूतों के आधार पर फैसला सुनाया..
वहीं इस बैकग्राउंड को समझना जरूरी है क्योंकि अब जमानत का फैसला आया है.. जो पुराने घावों को फिर से कुरेद रहा है.. पीड़िता और उनके समर्थक इसे न्याय की हार बता रहे हैं.. जबकि साईं के वकील इसे मानवीय आधार पर सही ठहरा रहे हैं.. 18 सितंबर 2025 को गुजरात हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने नारायण साईं की याचिका पर सुनवाई की.. बेंच में जस्टिस इलेश जे. वोरा और जस्टिस पीएम रावल थे.. साईं ने कोर्ट से अस्थायी जमानत मांगी थी.. ताकि वे अपनी बीमार मां से मिल सकें.. उनके वकील धर्मेंद्रकुमार मिश्रा ने दलील दी कि साईं आखिरी बार फरवरी 2021 में अपनी मां से मिले थे.. उसके बाद से मिलना संभव नहीं हुआ.. मां हृदय रोग से पीड़ित हैं और उनकी हालत नाजुक है.. वकील ने कहा कि यह मानवीय आधार पर जमानत का मामला है..
वहीं कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं.. राज्य सरकार के वकील प्रणव धगत और पीड़िता के वकील नंदिश ठक्कर ने जमानत का विरोध किया.. उनका कहना था कि मां की हालत नाजुक होने का कोई ठोस मेडिकल सबूत नहीं है.. रिकॉर्ड में ऐसा कोई दस्तावेज नहीं जो साबित करे कि तुरंत मिलना जरूरी है.. और उन्होंने कहा कि जमानत न दी जाए क्योंकि मामला गंभीर है और साईं दोषी हैं..
फिर भी, कोर्ट ने जमानत दे दी.. जस्टिस वोरा ने आदेश में कहा कि मामले की खास परिस्थितियों, याचिका में दिए गए आधारों.. और साईं की जेल में बिताई गई लंबी अवधि को देखते हुए जमानत दी जा रही है.. लेकिन यह अस्थायी है, सिर्फ 5 दिनों की.. जमानत की शर्तें सख्त हैं.. साईं को पुलिस की निगरानी में रहना होगा.. वे केवल अहमदाबाद में अपनी मां के घर पर रह सकते हैं.. कहीं और नहीं जा सकते.. वे अपने अनुयायियों या पिता के अनुयायियों से समूह में नहीं मिल सकते.. 5 दिन खत्म होने पर उन्हें तुरंत लाजपोर जेल वापस ले जाया जाएगा.. कोर्ट ने प्रशासन को निर्देश दिया कि कोई देरी न हो..
वहीं यह पहली बार नहीं है जब साईं को ऐसी जमानत मिली है.. जून 2025 में भी गुजरात हाई कोर्ट ने उन्हें 5 दिन की जमानत दी थी.. ताकि वे अपने पिता आसाराम से मिल सकें.. वह भी मानवीय आधार पर था.. क्योंकि आसाराम की तबीयत खराब थी.. आसाराम को भी हाल ही में मेडिकल ग्राउंड्स पर अंतरिम जमानत मिली है.. यह पैटर्न दिखाता है कि कोर्ट परिवार की स्वास्थ्य समस्याओं को गंभीरता से ले रहा है..
आपको बता दें कि प्रॉम्प्ट में कहा गया है कि यह गुजरात चुनाव से ठीक पहले हुआ है.. गुजरात में अगले विधानसभा चुनाव 2027 में हैं.. लेकिन 2025 में लोकल इलेक्शन या बाय-इलेक्शन की चर्चा हो सकती है.. कुछ लोग कह रहे हैं कि बीजेपी सरकार की मेहरबानी से यह जमानत मिली है.. आसाराम और साईं के अनुयायी गुजरात में काफी हैं.. और चुनाव में वोट बैंक का असर पड़ सकता है.. लेकिन क्या यह सच है..
तथ्यों से देखें तो कोर्ट का फैसला न्यायिक है, राजनीतिक नहीं.. राज्य सरकार ने तो जमानत का विरोध किया था.. अगर सरकार मेहरबानी करना चाहती तो विरोध न करती.. फिर भी, सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट्स में विवाद उठा है.. लेकिन ज्यादातर रिपोर्ट्स में राजनीतिक एंगल नहीं है.. पुराने रिकॉर्ड्स से पता चलता है कि 2017 में साईं ने जेल से पीएम मोदी को लेटर लिखा था.. और कांग्रेस को सपोर्ट किया था.. लेकिन 2025 में ऐसा कोई कनेक्शन नहीं दिखता..
पीड़िता के वकील ने कहा कि मेडिकल एविडेंस की कमी है.. इसलिए जमानत गलत है.. यह सवाल उठाता है कि क्या कोर्ट ने सबूतों को नजरअंदाज किया.. लेकिन कोर्ट ने कहा कि उन्होंने सभी पक्ष देखे हैं.. विवाद का एक पहलू यह भी है कि ऐसे दोषियों को बार-बार जमानत मिलना पीड़िताओं के लिए निराशाजनक है.. महिला अधिकार संगठन इसे गलत बता सकते हैं.. कुल मिलाकर, बड़ा राजनीतिक विवाद नहीं दिख रहा.. लेकिन चुनाव के समय में यह चर्चा का विषय बन सकता है..
वहीं इस मामले पर पॉलिटिकल पार्टियां चुप हैं.. बीजेपी सरकार ने विरोध किया था.. तो वे इसे अपना फैसला नहीं बता सकतीं.. विपक्ष इसे मुद्दा बना सकता है कि सरकार दोषियों को मदद कर रही है.. लेकिन अभी तक कोई बड़ा स्टेटमेंट नहीं.. गुजरात में आसाराम के अनुयायी बीजेपी को सपोर्ट करते रहे हैं.. लेकिन अब स्थिति बदल गई है.. 2015 में भी साईं की जमानत पर विवाद हुआ था. जहां सरकार ने विरोध किया था.. महिला अधिकार एक्टिविस्ट्स कह सकते हैं कि ऐसे केसों में जमानत से पीड़िताओं का मनोबल टूटता है.. लेकिन कोर्ट ने शर्तें सख्त रखी हैं, ताकि कोई दुरुपयोग न हो..
लीगल रूप से देखें तो अस्थायी जमानत मानवीय आधार पर दी जा सकती है.. भारतीय कानून में, दोषी होने के बाद भी स्वास्थ्य या परिवार की वजह से जमानत मिल सकती है.. सुप्रीम कोर्ट ने कई केसों में कहा है कि जेल में लंबा समय बिताने पर मानवीय विचार किया जाए.. यहां साईं 11 साल से जेल में हैं. कोर्ट ने इसे देखा.. लेकिन विरोध सही है कि मेडिकल एविडेंस क्यों नहीं मांगा गया? कोर्ट ने कहा कि उन्होंने परिस्थितियां देखीं.. लेकिन डिटेल नहीं दी.. यह भविष्य में अपील का आधार बन सकता है.. इसी तरह, आसाराम को भी मेडिकल पर जमानत मिली है.. कुल मिलाकर, फैसला लीगल लगता है, लेकिन विवादास्पद क्योंकि मामला संवेदनशील है..



