गुजरात में बकरा ईद को लेकर अधिसूचना जारी, अल्पसंख्यकों पर ‘नजरबंदी’ क्यों?

बकरा ईद पर कुर्बानी को लेकर गुजरात के पंचमहल में अधिसूचना जारी की गई है... इस अधिसूचना का उल्लंघन करने वाला कोई भी व्यक्ति दंड का भागी होगा...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः बकरा ईद जिसे ईद-उल-जुहा या ईद-उल-अजहा के नाम से भी जाना जाता है…… मुस्लिम समुदाय का एक प्रमुख त्योहार है……… जो हजरत इब्राहिम के त्याग और समर्पण की याद में मनाया जाता है…….. इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार यह पर्व जुल-हिज्जा माह की 10वीं तारीख को मनाया जाता है……… और इस बार यह 7 जून 2025 को भारत में मनाया जाएगा……… इस अवसर पर मुस्लिम समुदाय नमाज अदा करता है……. कुर्बानी देता है, और गरीबों व जरूरतमंदों के बीच मांस बांटकर भाईचारे का संदेश देता है……. हालांकि इस पर्व के दौरान पशु कुर्बानी की परंपरा को लेकर हर साल बहस छिड़ती है…….. जिसमें धार्मिक आस्था और पशु अधिकारों के बीच संतुलन की बात उठती है…… इस साल भारत के पंचमहल जिले में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर सख्त कदम उठाए गए हैं………. जबकि मोरक्को में कुर्बानी पर पूर्ण प्रतिबंध ने वैश्विक स्तर पर धार्मिक और राजनीतिक बहस को हवा दी है…….. इस खबर में हम इन दोनों घटनाक्रमों का विश्लेषण करेंगे…….. और भारत में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की नीतियों……. और रुख पर सवाल उठाएंगे…….. जो धार्मिक स्वतंत्रता और सामाजिक सौहार्द के बीच संतुलन बनाने में कथित तौर पर विफल रही है…….

पंचमहल जिले में बकरा ईद के दौरान मस्जिदों और ईदगाहों में भारी भीड़ जुटने की संभावना है……. जिला प्रशासन ने कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए कड़े कदम उठाए हैं…….. पंचमहल के अपर जिला मजिस्ट्रेट जे.जे. पटेल ने एक अधिसूचना जारी की है……. जिसमें सार्वजनिक स्थानों, मोहल्लों या गलियों में पशु वध पर रोक लगाई गई है……… इस अधिसूचना का तर्क यह है कि ऐसी गतिविधियां अन्य समुदायों की भावनाओं को ठेस पहुंचा सकती हैं……. और शांति भंग होने का खतरा पैदा कर सकती हैं……. इसके अलावा जुलूस और बड़ी सभाओं पर भी निगरानी रखने के निर्देश दिए गए हैं……..

हालांकि इस कदम को बीजेपी शासित गुजरात सरकार की नीतियों के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है…….. जो मुस्लिम समुदाय की धार्मिक प्रथाओं को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है…….. बीजेपी जो लंबे समय से हिंदुत्व की विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए जानी जाती है…….. पर यह आरोप लगता रहा है कि वह अल्पसंख्यक समुदायों…….. विशेषकर मुसलमानों, की धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित करने के लिए प्रशासनिक शक्तियों का दुरुपयोग करती है…….. पंचमहल में जारी यह अधिसूचना इस बात का प्रमाण मानी जा रही है…… कि सरकार धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर सख्ती बरत रही है………. जो संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है……..

वहीं सवाल यह उठता है कि क्या बीजेपी सरकार वास्तव में कानून……… और व्यवस्था बनाए रखने की कोशिश कर रही है……… या यह एक सुनियोजित रणनीति है, जिसका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय की धार्मिक प्रथाओं को हतोत्साहित करना है………. पंचमहल जैसे क्षेत्र, जहां हिंदू और मुस्लिम समुदाय एक साथ रहते हैं……. ऐसी नीतियां सामाजिक तनाव को बढ़ा सकती हैं……. स्थानीय मुस्लिम नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि कुर्बानी की परंपरा इस्लाम का एक अभिन्न हिस्सा है…….. और इसे सार्वजनिक स्थानों पर प्रतिबंधित करना न केवल धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाता है…….. बल्कि सामुदायिक सौहार्द को भी कमजोर करता है……..

दूसरी ओर मोरक्को में राजा मोहम्मद VI के शाही फरमान ने बकरा ईद पर कुर्बानी पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है…….. यह निर्णय देश में छह साल से चल रहे भीषण सूखे……. और पशुओं की घटती संख्या को देखते हुए लिया गया है……. मोरक्को जहां 99% आबादी मुस्लिम है……. इस फैसले ने व्यापक आक्रोश पैदा किया है……… सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में पुलिस को लोगों के घरों से भेड़ें…….. और बकरियां जब्त करते देखा गया है…….. जिसे कई लोगों ने धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला बताया है…….. इस्लामी विद्वानों और स्थानीय लोगों ने इसे धार्मिक रीति-रिवाजों में सरकारी हस्तक्षेप का खतरनाक उदाहरण करार दिया है……… जबकि कुछ ने आर्थिक और पर्यावरणीय संकट के मद्देनजर इस फैसले का समर्थन किया है…….

मोरक्को का यह कदम वैश्विक स्तर पर धार्मिक स्वतंत्रता…….. और सरकारी हस्तक्षेप के बीच टकराव का एक उदाहरण बन गया है…….. यह सवाल उठता है कि क्या कोई सरकार, चाहे वह राजशाही हो या लोकतांत्रिक, धार्मिक अनुष्ठानों को नियंत्रित करने का अधिकार रखती है? भारत में…….. जहां बीजेपी सरकार पर धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैये का आरोप लगता रहा है……., मोरक्को का उदाहरण एक चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है……. क्या भारत में भी भविष्य में ऐसी नीतियां लागू हो सकती हैं……. जो धार्मिक प्रथाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगाएं……. बीजेपी की नीतियां अक्सर हिंदू राष्ट्रवाद से प्रेरित मानी जाती हैं……. इस तरह के कदमों को प्रोत्साहित कर सकती हैं…….. जिससे सामाजिक और धार्मिक तनाव और बढ़ सकता है……….

बीजेपी सरकार पर पहले भी धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों, के खिलाफ भेदभावपूर्ण नीतियों का आरोप लगता रहा है……. चाहे वह नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) हो……. राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) हो……. या गौहत्या पर प्रतिबंध जैसे कानून, बीजेपी की नीतियां अक्सर मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाती प्रतीत होती हैं……. पंचमहल में बकरा ईद के लिए जारी अधिसूचना को भी इसी संदर्भ में देखा जा रहा है……… यह अधिसूचना न केवल कुर्बानी पर प्रतिबंध लगाती है……….. बल्कि यह भी सुनिश्चित करती है कि जुलूस और सभाओं पर कड़ी निगरानी रखी जाए………. यह कदम मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित करने का प्रयास माना जा सकता है……..

वहीं बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार का दावा है कि ऐसी नीतियां सामाजिक सौहार्द…….. और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं……… हालांकि, आलोचकों का कहना है कि ये नीतियां मुस्लिम समुदाय को हाशिए पर धकेलने…….. और उनकी धार्मिक प्रथाओं को नियंत्रित करने का एक तरीका हैं……. पंचमहल में जहां पहले से ही हिंदू-मुस्लिम तनाव के उदाहरण सामने आ चुके हैं………. ऐसी नीतियां सामुदायिक तनाव को और बढ़ा सकती हैं……. स्थानीय मुस्लिम नेताओं ने इस अधिसूचना को अनावश्यक और भेदभावपूर्ण करार दिया है…….. और इसे बीजेपी की मुस्लिम विरोधी नीतियों का हिस्सा बताया है……

आपको बता दें कि बकरा ईद के दौरान कुर्बानी की परंपरा इस्लाम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है…… जो हजरत इब्राहिम के त्याग और अल्लाह के प्रति समर्पण को दर्शाती है……. इस परंपरा के तहत, कुर्बानी का मांस तीन हिस्सों में बांटा जाता है………. एक हिस्सा परिवार के लिए, दूसरा रिश्तेदारों……. और दोस्तों के लिए, और तीसरा गरीबों और जरूरतमंदों के लिए……. यह प्रथा न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक एकता को भी बढ़ावा देती है……. हालांकि, पशु अधिकार कार्यकर्ता और कुछ अन्य समुदाय इसे जीव हिंसा के रूप में देखते हैं……… जिससे इस परंपरा पर हर साल बहस छिड़ती है……

भारत में जहां बहुसंख्यक हिंदू आबादी गाय को पवित्र मानती है…….. और जैन और कुछ अन्य समुदाय अहिंसा को सर्वोपरि मानते हैं……… कुर्बानी की प्रथा को लेकर संवेदनशीलता की आवश्यकता है………. लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि मुस्लिम समुदाय की धार्मिक प्रथाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए…….. बीजेपी सरकार का रुख इस मामले में अस्पष्ट और विवादास्पद रहा है…….. एक ओर सरकार सामाजिक सौहार्द की बात करती है…….. लेकिन दूसरी ओर……. ऐसी नीतियां बनाती है जो मुस्लिम समुदाय को अलग-थलग करने का काम करती हैं………

मोरक्को का उदाहरण भारत के लिए एक सबक हो सकता है…….. वहां, कुर्बानी पर प्रतिबंध ने न केवल धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई……… बल्कि सामाजिक अशांति को भी बढ़ावा दिया…….. भारत में जहां पहले से ही धार्मिक ध्रुवीकरण एक गंभीर समस्या है……. बीजेपी को ऐसी नीतियों से बचना चाहिए जो अल्पसंख्यक समुदायों को और अलग-थलग करें……… इसके बजाय सरकार को सामुदायिक संवाद…….. और सहमति पर आधारित नीतियां अपनानी चाहिए……. जो धार्मिक स्वतंत्रता और सामाजिक सौहार्द दोनों को सुनिश्चित करें……

 

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