सुप्रीम कोर्ट में वांगचुक की रिहाई की खुली राह

- अदालत ने दी संशोधन की मंजूरी, सरकार से मांगा ठोस आधार
- एनडीए सरकार की निकलेगी आह?
- लद्दाख की जनता की उभरी चाह
- शीर्ष कोर्ट ने माना वांगचुक की याचिका में दम
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। यह खबर सोनम वांगचुक की पत्नी, लेह लद्दाख की जनता और उन तमाम सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए राहत भरी है जो लंबे समय से उनकी रिहाई की मांग कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने आज वांगचुक की पत्नी गीतांजलि ज. आंगमो द्वारा दायर याचिका में संशोधन की अनुमति दे दी है। यह फैसला सीधे तौर पर भले किसी आदेश जैसा न लगे लेकिन यह न्याय के दरवाजे खुलने का पहला संकेत माना जा सकात है। अदालत ने वांगचुक की आवाज को खारिज करने के बजाय उसे और गहराई से सुनने का इशारा दिया है। अगली सुनवाई की तारीख 24 नवंबर तय की गई है। मामला थोड़ा लंबा जरूर खिंच रहा है लेकिन अगर केंद्र सरकार वांगचुक की नजरबंदी का ठोस आधार साबित नहीं कर पायी तो यह तारीख लद्दाख के इतिहास में आजादी की एक नई सुबह बन सकती है।
पहाड़ों की चुप्पी
सोनम वांगचुक फिलहाल हिरासत में हैं लेकिन उनकी आवाज आज देश के हर कोने में गूंज रही है। चाहे वह कश्मीर की घाटी हो या फिर कोल्हापुर की गलियां। यह मामला सिर्फ एक पर्यावरणविद् की रिहाई का नहीं बल्कि यह लोकतंत्र की आत्मा के पुनर्जागरण का संकेत है। क्योंकि अगर पहाड़ों की चुप्पी भी अब राजद्रोह मानी जाएगी तो समझ लीजिए कि हम सब नीचे से फिसल चुके हैं। लेह नागरिक मंच के संयोजक त्सेरिंग दोरजे ने टिवट करते हुए लिखा है कि यह सिर्फ सोनम वांगचुक की नहीं लद्दाख की आत्मा की लड़ाई है। अदालत ने जो रास्ता खोला है वह जनआवाज की जीत है।
क्या बीमार हो चुका है लोकतंत्र?
लद्दाख प्रशासन ने सोनम वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार किया है यह कहते हुए कि उनकी गतिविधियां सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरा हैं। पर सवाल यह है कि क्या जलवायु, संविधान और पर्यावरण की बात करना अब व्यवस्था के लिए खतरा बन गया है? वांगचुक की गिरफ्तारी ने न सिर्फ लद्दाख बल्कि पूरे देश में नागरिक अधिकार बनाम राज्यसत्ता की बहस को फिर से जगा दिया है। विपक्षी दलों का कहना है कि यह कार्रवाई दरअसल लोकतंत्र की असहमति को कुचलने की प्रक्रिया है। टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने इस मुददे पर ट्वीट करते हुए सरकार पर हमला किया है उन्होंने लिखा है कि जब कोई शिक्षक अपनी मिट्टी की बात करे और सत्ता उसे देशद्रोही बताए तब लोकतंत्र बीमार हो चुका होता है।
मिलेगी राहत, सरकार के लिए मुश्किल मोड़
अब गेंद केंद्र और लद्दाख प्रशासन के पाले में है। कोर्ट ने उनसे पूछा है कि वांगचुक को क्यों और किन कारणों से एनएसए के तहत गिरफ्तार किया गया है। कानूनी सूत्रों के मुताबिक अगर सरकार का जवाब ठोस नहीं हुआ तो 24 नवंबर को कोर्ट रिहाई का आदेश या कम से कम अस्थायी राहत दे सकता है। लेकिन यही सरकार के लिए सबसे मुश्किल मोड़ होगा। क्योंकि अगर कोर्ट ने गिरफ्तारी को अवैध करार दिया तो यह सीधे तौर पर केंद्र की सुरक्षा नीति पर सवाल होगा। और यह सिर्फ वांगचुक नहीं बल्कि हर एक्टिविस्ट के लिए मिसाल बन जाएगा।
खारिज नहीं, सुधार करो
सुप्रीम कोर्ट ने आज को जो किया वह कानूनी तकनीक से ज्यादा एक संवेदनशील संकेत है। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता वांगचुक की पत्नी अगर चाहें तो याचिका में संशोधन कर सकती हैं यानी कि अब वह नए तथ्य, दस्तावेज या आरोप जोड़ सकती हैं। कोर्ट की तरफ से दी गयी यह इजाजत इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि कोर्ट ने मामले को जिंदा रखा है। सरकार को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया गया है। और सबसे अहम, न्यायिक निगरानी अब शुरू हो गई है। कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक यह फस्र्ट राउंड में विपक्ष की बढ़त जैसा है। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि कोर्ट का यह आदेश दिखाता है कि मामला सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं बल्कि एक संवैधानिक अधिकार का है उन्होंने कहा कि बोलने और विरोध करने का अधिकार।
धनखड़ की चुप्पी पर कांग्रेस ने भाजपा से दागे सवाल
कांग्रेस ने बुधवार को कहा कि पूर्व उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को अपने पद से इस्तीफा दिए 100 दिन बीत गए हैं, लेकिन वह अब तक खामोश हैं और उनका विदाई समारोह भी नहीं हुआ है। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने एक बार यह दावा किया था कि धनखड़ को त्यागपत्र देने के लिए मजबूर किया गया था। धनखड़ ने इस साल संसद के मानसून सत्र की शुरुआत में ही स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद हुए चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के उम्मीदवार सी पी राधाकृष्णन नए उपराष्ट्रपति निर्वाचित हुए। रमेश ने एक्स पर पोस्ट किया, भारतीय राजनीति के इतिहास की एक अभूतपूर्व घटना को घटित हुए ठीक 100 दिन हो गए हैं। 21 जुलाई की देर रात अचानक और आश्चर्यजनक रूप से, भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस्तीफा दे दिया था। उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया था, भले ही उन्होंने दिन-ब-दिन प्रधानमंत्री की प्रशंसा की हो। उन्होंने कहा, रोजाना सुर्खियों में रहने वाले पूर्व उप राष्ट्रपति 100 दिनों से बिल्कुल खामोश हैं। रमेश ने कहा, राज्यसभा के सभापति के रूप में पूर्व उप राष्ट्रपति विपक्ष के अच्छे मित्र नहीं थे। वह लगातार और गलत तरीके से विपक्ष की खिंचाई करते रहते थे। फिर भी, लोकतांत्रिक परंपराओं को ध्यान में रखते हुए, विपक्ष कहता रहा है कि वह कम से कम अपने सभी पूर्ववर्तियों की तरह विदाई समारोह के हकदार हैं। ऐसा नहीं हुआ है। कांग्रेस नेताओं ने, राज्यसभा के सभापति के रूप में विपक्ष के साथ उनके प्रतिकूल संबंधों को उजागर करते हुए, लोकतांत्रिक परंपराओं के अनुरूप उन्हें उचित विदाई देने का आह्वान किया है। पार्टी ने सरकार से धनखड़ के इस्तीफे के पीछे के वास्तविक कारणों पर स्पष्टता प्रदान करने का भी आग्रह किया है।




