गुजरात के 12 घंटे कानून पर विपक्ष का हमला, मजदूरों से मोदी की ‘हमदर्दी’ पर उठे सवाल
बिहार की चुनावी रैलियों में नरेंद्र मोदी मजदूरों के लिए बड़ी हमदर्दी दिखाते नजर आ रहे हैं… लेकिन विपक्ष का सवाल ये है कि गुजरात में उनकी…

4पीएम न्यूज नेटवर्कः दोस्तों भारत जैसे विकासशील देश में मजदूरों की जिंदगी हमेशा से ही संघर्षों से भरी रही है.. एक तरफ जहां दुनिया भर में काम के घंटों को कम करने की बहस तेज हो रही है.. वहीं गुजरात जैसे राज्य में हाल ही में एक ऐसा कानून पारित हुआ है.. जो मजदूरों से 12 घंटे तक काम करवाने की इजाजत देता है.. यह खबर तब और चौंकाने वाली लगती है.. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार चुनाव के मैदान में मजदूरों के लिए गहरी सहानुभूति जता रहे हैं.. बिहार के लोगों को वादों का पुलिंदा थमा रहे हैं.. लेकिन गुजरात में उनकी सरकार ने मजदूरों के हितों को नजरअंदाज कर दिया है.. दूसरी ओर कांग्रेस नेता राहुल गांधी किसानों और मजदूरों के लिए लगातार आवाज उठा रहे हैं..
गुजरात भारत का औद्योगिक राज्य माना जाता है.. जहां हाल ही में अपने मजदूर कानूनों में बड़ा बदलाव किया है.. 11 सितंबर को गुजरात विधानसभा ने फैक्ट्रीज (गुजरात संशोधन) विधेयक, 2025 को मंजूरी दी.. इस कानून के तहत फैक्टरियों में दैनिक काम के घंटे 9 से बढ़ाकर 12 कर दिए गए हैं.. पहले फैक्ट्रीज एक्ट 1948 के अनुसार.. एक दिन में अधिकतम 9 घंटे काम की सीमा थी.. लेकिन अब यह 12 घंटे हो गई है.. यह बदलाव गुजरात सरकार के अध्यादेश नंबर 2 ऑफ 2025 से आया.. जो 1 जुलाई 2025 को जारी हुआ था..
आपको बता दें सरकार का दावा है कि यह बदलाव मजदूरों के फायदे के लिए है.. कानून कहता है कि मजदूर 12 घंटे की शिफ्ट के बदले में हफ्ते में चार दिन ही काम करेंगे.. यानी चार-दिवसीय कार्य सप्ताह का विकल्प मिलेगा.. अगर मजदूर सहमत हों.. तो वे लंबी शिफ्ट चुन सकते हैं.. और बाकी तीन दिन छुट्टी ले सकते हैं.. इसके अलावा महिलाओं को रात की शिफ्ट करने की इजाजत दी गई है.. जो पहले प्रतिबंधित थी.. ओवरटाइम पर दोगुना वेतन मिलेगा.. और तिमाही में ओवरटाइम घंटों की सीमा 75 से बढ़ाकर ज्यादा कर दी गई है.. गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने कहा कि यह विकास की गति को तेज करने के लिए जरूरी है.. ताकि राज्य में और निवेश आए..
लेकिन मजदूर संगठनों का कहना है कि यह शोषण का नया रूप है.. ट्रेड यूनियनों जैसे इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस ने विरोध जताया है.. उनका तर्क है कि 12 घंटे लगातार काम करने से मजदूरों की सेहत बिगड़ेगी.. थकान, तनाव और दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ेगा.. एक रिपोर्ट के मुताबिक लंबे घंटे काम करने से हृदय रोग.. और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं 30 फीसदी तक बढ़ जाती हैं.. गुजरात में पहले से ही मजदूरों की शिकायतें हैं कि न्यूनतम वेतन कम है.. और सुरक्षा कम है.. यह कानून मजदूर की लिखित सहमति पर आधारित है.. लेकिन गरीबी में मजदूर मजबूरी में हामी भर लेंगे..
वहीं यह बदलाव सिर्फ गुजरात तक सीमित नहीं.. भारत के कई राज्यों ने लेबर कोड्स में संशोधन किए हैं.. केंद्र सरकार के चार नए लेबर कोड्स (2019-2020) के बाद राज्य स्तर पर काम के घंटे 8 से 10-12 तक बढ़ाने की कोशिश हो रही है.. गुजरात में यह 2025 में लागू हुआ.. लेकिन आलोचक कहते हैं कि यह पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने वाला है.. उद्योगपति लंबे घंटे चाहते हैं.. ताकि उत्पादन बढ़े, लेकिन मजदूरों का नुकसान हो.. गुजरात चैंबर ऑफ कॉमर्स ने इसका स्वागत किया.. कहा कि इससे रोजगार बढ़ेगा.. लेकिन सच्चाई यह है कि लंबे घंटे से बेरोजगारी नहीं घटती.. बल्कि मौजूदा मजदूरों पर बोझ बढ़ता है..
गुजरात में मजदूर आबादी करीब 1.5 करोड़ है.. ज्यादातर टेक्सटाइल, केमिकल और ऑटोमोबाइल सेक्टर में है.. अहमदाबाद और सूरत जैसे शहरों में फैक्टरियां 24 घंटे चलती हैं.. नया कानून लागू होने के बाद पहले ही महीने में कुछ फैक्टरियों ने 12 घंटे शिफ्ट शुरू कर दी.. एक सर्वे में 60 फीसदी मजदूरों ने कहा कि वे थकान महसूस कर रहे हैं.. सरकार का कहना है कि यह वैकल्पिक है.. लेकिन वास्तव में मजदूरों के पास चुनाव का अधिकार नहीं.. यह कानून अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के मानकों के खिलाफ है.. जो 8 घंटे की सीमा सुझाता है.. भारत ने आईएलओ कन्वेंशन 1 को 1921 में ही रैटिफाई किया था.. लेकिन अमल कमजोर है..
कुल मिलाकर, गुजरात का यह कानून विकास का नाम लेकर मजदूर शोषण को वैध बनाता है.. पूंजीपतियों को लाभ तो मिलेगा.. लेकिन मजदूरों की जिंदगी कठिन हो जाएगी.. बता दें यह बदलाव 2025 में हुआ.. जब देश चुनावी माहौल में था.. इसलिए राजनीतिक बहस भी तेज हुई.. 6 नवंबर 2025 को बिहार विधानसभा चुनाव का पहला चरण हो चुका है.. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के लिए बिहार का दौरा किया.. 7 नवंबर को आरा में एक विशाल रैली की.. जहां उन्होंने ‘विकसित बिहार’ का सपना दिखाया.. मोदी ने कहा कि एनडीए सरकार 1 करोड़ नौकरियां पैदा करेगी.. इंडस्ट्रील बूम लाएगी और जंगल राज को खत्म करेगी.. आरा रैली में हजारों लोग जुटे.. और मोदी ने मजदूरों, किसानों के लिए सहानुभूति जताई.. और उन्होंने कहा कि बिहार के मेहनती मजदूरों को नई ऊंचाइयों पर ले जाना हमारा संकल्प है.. 8 नवंबर को सीतामढ़ी और बेतिया में रैलियों में भी यही स्वर रहा..
मोदी के भाषणों में मजदूरों का जिक्र प्रमुख था.. आरा में उन्होंने 20 साल के एनडीए शासन की तारीफ की.. कहा कि मनरेगा जैसी योजनाओं से मजदूरों को काम मिला.. लेकिन विपक्ष का आरोप है कि यह सिर्फ चुनावी ड्रामा है.. एक रिपोर्ट में कहा गया कि बिहार के मजदूरों को न्याय के लिए सिस्टमिक बदलाव चाहिए.. न कि वादे.. मोदी ने बिहार को ‘विकसित’ बनाने का वादा किया.. लेकिन गुजरात के 12 घंटे कानून का जिक्र नहीं किया.. बिहार में भी लेबर कोड्स लागू हैं.. लेकिन अमल ढीला है.. मजदूरों की औसत कमाई 300-400 रुपये रोज है.. और बेरोजगारी 15 फीसदी से ऊपर है..
मोदी का बिहार दौरा 2025 चुनाव का टेस्ट है.. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट कहती है कि बिहार, भारत का सबसे गरीब राज्य, मोदी की लोकप्रियता का आईना है.. रैलियों में मोदी ने विकास, जॉब्स पर फोकस किया.. लेकिन गुजरात मॉडल का असली चेहरा छिपाया.. बिहार के मजदूर प्रवासी हैं.. गुजरात में काम करते हैं.. वे जानते हैं कि वहां 12 घंटे शिफ्ट का मतलब क्या है.. एक वीडियो में मोदी को विकास की बात करते देखा गया.. लेकिन मजदूर संगठन कहते हैं कि यह ‘डींगे हांकना’ मात्र है..
बिहार में 2.5 करोड़ मजदूर हैं.. मोदी के वादे अच्छे लगते हैं.. लेकिन गुजरात का कानून साबित करता है कि केंद्र और राज्य सरकारें पूंजी के पक्ष में हैं.. दुनिया भर में काम के घंटों को कम करने की लहर चल रही है.. 2025 में यह ट्रेंड और मजबूत हुआ.. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट कहती है कि चार-दिवसीय कार्य सप्ताह से उत्पादकता बढ़ती है.. 2022-2023 के पायलट प्रोजेक्ट्स के बाद 2025 में कई देशों ने इसे अपनाया.. स्पेन ने मई 2025 में विधेयक पेश किया.. जिसमें पूर्णकालिक सप्ताह 37.5 घंटे का प्रस्ताव है.. इससे 1.2 करोड़ मजदूरों को फायदा होगा..
आपको बता दें राहुल गांधी ने हमेशा किसानों और मजदूरों के मुद्दों को उठाया है.. 2025 में भी उनका फोकस वही रहा.. जुलाई 2025 में उन्होंने महाराष्ट्र में कहा कि किसान कर्ज में डूब रहे हैं.. सरकार बेरुखी दिखा रही है.. लोकसभा में फार्म लॉज के खिलाफ किसानों के परिवारों को मुआवजा देने की मांग की.. अगस्त 2025 में कानूनी सम्मेलन में उन्होंने पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के धमकी का जिक्र किया.. कहा कि फार्म लॉज किसानों को बर्बाद करेंगे..
कांग्रेस का घोषणा पत्र हमेशा मजदूर-किसान केंद्रित रहा.. 2025 में राहुल ने टेक्सटाइल सेक्टर में कहा कि भारत फिर से वैश्विक लीडर बने.. लेकिन किसान-मजदूरों को हिस्सेदारी मिले.. जनवरी 2025 में उन्होंने कहा कि कृषि नीतियां गलत हैं.. मजदूरों की हालत खराब हो रही है.. कांग्रेस ने गुजरात कानून की आलोचना की.. कहा कि यह शोषण है.. राहुल ने बिहार चुनाव में कहा कि मोदी पूंजीपतियों के साथ हैं.. जबकि कांग्रेस गरीबों के लिए.. पार्टी का दिल किसानों-मजदूरों के लिए धड़कता है.. जैसा कि उनके अभियानों से साफ है..



