हमारा काम देश की सेना को चलाना नहीं: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सेना में सेवा से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि उसका काम सेना का संचालन करना नहीं है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें सेना में इकाइयों की कमान दिए जाने में महिला अधिकारियों के साथ भेदभाव का आरोप लगाया गया था \ठ्ठनितीशा बनाम भारत संघ के मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष न्यायालय ने कहा कि वह सेना नहीं चला सकती, लेकिन सेना से जुड़े किसी भी मामले में तभी हस्तक्षेप कर सकती है, जब उस केस में कानून के सिद्धांत शामिल होंगे। देश की चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़,जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ को वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने बताया कि सेना में पुरुष कनिष्ठ अधिकारी इकाइयों की कमान संभाल रहे हैं, लेकिन महिला कर्नलों को केवल कंपनियों की कमान दी जा रही है। उन कंपनियों का प्रबंधन भी कर्नल रैंक से नीचे के पुरुष अधिकारी करते हैं। अरोड़ा ने कहा कि यह स्थिति महिला अफसरों का घोर अपमान है। हालांकि, सीजेआई ने मुद्दे की गंभीरता को स्वीकार किया लेकिन इस बात पर जोर दिया कि अदालत का काम सेना के संचालन या प्रत्यक्ष प्रबंधन में हस्तक्षेप करना शामिल नहीं है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि न्यायालय केवल कानून के सिद्धांतों में ही हस्तक्षेप कर सकता है। सीजेआई ने कहा, लेकिन हम सेना का संचालन नहीं कर सकते हैं और कंपनियों (सेना में) को कैसे आदेश दिया जाता है, इसका आदेश हम नहीं दे सकते हैं। हम केवल कानून के सिद्धांतों में ही हस्तक्षेप कर सकते हैं। हम निश्चित रूप से सेना को नहीं चला सकते। हालाँकि, उन्होंने अटॉर्नी जनरल (एजी) आर वेंकटरमणी से शिकायत पर गौर करने का अनुरोध किया, जिस पर एजी ने अपनी सहमति जताई।

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