सत्ता में बैठे लोग धर्मनिरपेक्ष शब्द को अपमानित कर रहें हैं: सोनिया

कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष ने केंद्र पर साधा निशाना

हमें अपनी चुनौतियों का समाधान खुद ढूंढऩा होगा

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। कांग्रेस वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी ने धर्मनिरपेक्षता को भारत के लोकतंत्र का मूलभूत स्तंभ बताया है। उन्होंने कहा कि सत्ता में बैठे लोगों द्वारा धर्मनिरपेक्ष शब्द का इस्तेमाल अपमान के तौर पर किया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप समाज में ध्रुवीकरण फैल रहा है। सोनिया गांधी ने एक सामान्य ज्ञान की किताब में अपने एक आर्टिकल के जरिए लोकतंत्र को लेकर केंद्र पर निशाना साधा है।
उन्होंने कहा, उनका कहना है कि वे लोकतंत्र के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन वे इसके साथ ही लोकतंत्र की सुरक्षा को कमजोर कर रहे हैं। हमारे देश को एकता की तरफ ले जाने वाली पटरियां नष्ट हो रही है जिसके कारण समाज में ध्रुवीकरण फैल रहा है।
कांग्रेस नेता ने कहा, सरकार धार्मिक विचारधाराओं की रक्षा करती है। उनके पास अल्पसंख्यकों की रक्षा करने के लिए विशेष प्रावधान भी है। भारतीय धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र हमेशा हमारे समाज में सद्भाव और समृद्धि को बढ़ावा देती है। उन्होंने लोकतंत्र के कार्यप्रणाली को लेकर सवाल उठाते हुए कहा कि लेकतंत्र में सरकार बहुमत से बनती है। उन्होंने पूछा, यदि अधिसंख्यक लोग किसी बात से सहमत हों, तो क्या बाकी लोगों पर हमेशा उनकी राय थोपी जाती रहेगी? यदि किसी छोटे समूह के हितों का ध्यान नहीं रखा जाएगा तो क्या होगा? क्या होगा अगर अस्थाई बहुमत वाली सरकार ऐसे फैसले लेने लगे जिनका भविष्य पर दूरगामी असर होगा? दूसरी तरफ अगर यही बहुमत कमजोर होता तो क्या उन्हें बिना चुनौती के सत्ता चलाने का अधिकार मिल जाता? सोनिया गांधी ने इन सवालों को भारत जैसे देशों के लिए गंभीर बताया है।
कांग्रेस नेता ने कहा, यदि लोगों को चिंता है कि उनकी भाषा या धार्मिक प्रथा या जीवन शैली को केवल इसलिए स्थायी रूप से खतरा हो सकता है क्योंकि उनकी संख्या अधिक नहीं है, तो इससे समाज में शांति या सद्भाव में मदद नहीं मिलेगी। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि हम अपनी चुनौतियों का समाधान खुद ढूंढे और अपने देश का सम्मान करें।

एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्ष

कांग्रेस नेता ने बताया कि लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्ष एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। उन्होंने बताया कि धर्मनिरपेक्षता की व्याख्या कई तरीकों से की जाती है, लेकिन भारत के लिए इसका अर्थ वही है जो महात्मा गांधी ने कहा है-सर्व धर्म समा भाव। उन्होंने कहा, कि महात्मा गांधी और जवाहर नेहरू सभी धर्मों की एकता को समझते हुए धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की स्थापना का प्रयास किए। संविधान निर्माता डॉ. बीआर अम्बेडकर ने भी इस विचार को विकसित करते हुए सरकार पर लागू किया, जिससे एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र बना।

 

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