ओपीएस बहाली, वोटों की खुशहाली!

पंजाब व झारखंड में भी बहाल है पुरानी पेंशन योजना

  • 2024 में मिल सकता है फायदा
  • राजस्थान व छत्तीसगढ़ में पहले से है स्कीम
  • भाजपा शासित राज्यों में बनेगा बड़ा मुद्दा!

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) हिमाचल में लागू करके कांग्रेस सरकार ने 2024 लोक सभा चुनाव के लिए अपनी मंशा जता दिए हैं। हिमाचल इस फैसले को लेने वाला पांचवां राज्य बन गया है। जो अन्य राज्य हैं उनमें राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब व झारखंड शामिल है। पश्चिम बंगाल में भी ओपीएस लागू है, इनमें जहां राजस्थान व छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें है वहीं पंजाब में आप व झारखंड में झामुओ की सरकार है जबकि बंगाल में टीएमसी काबिज है। इस हिसाब से माने तो कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकारों ने देश में ओपीएस बहाली में बाजी मारी है। ओपीएस की पुरानी योजना को लागू करवाने की कर्मचारियों की मांग पुरानी है। बीजेपी शासित राज्य हो या अन्य दलों की सरकारों वाले प्रदेश सभी जगह के सरकारी कर्मचारी पुरानी पेंशन चाहते हैं इसके लिए वो समय-समय आंदोलन भी करते रहते हैं। इस मुद्दों को राजनीतिक दलों ने लपक लिया है। जहां-जहां भी चुनाव होते है वहां राजनैतिक दल अपनी घोषणा पत्र में इसे शामिल करके इस पर वेाट हासिल करने की जुगत में लग जाते हैं और उसका लाभ भी उन्हें मिलता है। राजनैतिक रुप से यह मुद दलों की सियासत चमकाने वाला हो सकता है परंतु इस योजना का एक मानवीय पहलू भी। पेंशन कर्मचारी को बुढ़ापे में उसकी जरूरत को पूरा करने में कारगर साबित होता है। साथ ही कर्मचारी के न होने पर उसके परिवार (पत्नी) को भी राहत देता है। इसलिए इसे बहाल होना चाहिए।
गौरतलब हो कि राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड और पंजाब में वर्ष 2022 में पुरानी पेंशन बहाल हुई है। इन फैसलों से कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की सरकारों ने अपने चुनावी वायदे निभा दिए हैं। हालांकि भाजपा शासित राज्यों में अभी भी इस बहाली का इंतजार है। राजस्थान सरकार ने 23 फरवरी 2022 को पुरानी पेंशन बहाल करने का एलान किया था। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने चौथे बजट में यह घोषणा पूरी की। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मार्च 2022 में पेश किए बजट में पुरानी पेंशन देने की घोषणा की। एक सितंबर 2022 से झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार ने पुरानी पेंशन बहाल की है। पंजाब में 21 अक्तूबर 2022 को मुख्यमंत्री भगवंत मान ने मंत्रिमंडल की बैठक में ओपीएस बहाल करने का निर्णय लिया। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें हैं। झारखंड में कांग्रेस के समर्थन से झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व में सरकार बनी है। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है। पश्चिम बंगाल देश का एकमात्र ऐसा राज्य हैं जहां पुरानी पेंशन योजना बंद ही नहीं हुई। पहले वामपंथी सरकारों ने केंद्र सरकार की नई पेंशन योजना को लागू नहीं किया। फिर ममता बनर्जी ने भी मुख्यमंत्री बनने के बाद पुरानी पेंशन योजना को ही जारी रखा। त्रिपुरा में फरवरी 2018 में भाजपा सरकार के बनते ही पुरानी पेंशन योजना को बंद कर नई पेंशन योजना लागू की गई। इससे पूर्व 2017 तक वाम सरकार के समय त्रिपुरा में भी पुरानी पेंशन योजना ही लागू रही। देश के पांच राज्यों में पुरानी पेंशन बहाल होने से भाजपा शासित राज्यों में भी यह मांग जोर पकडऩे लगी है।

पुरानी पेंशन योजना में ये हैं प्रावधान

इस योजना में सेवानिवृत्ति के समय कर्मचारी के वेतन की आधी राशि पेंशन के रूप में दी जाती है। पेंशन के लिए कर्मचारी के वेतन से कोई पैसा नहीं कटता है। भुगतान सरकार की ट्रेजरी के माध्यम से होता है। 20 लाख रुपये तक ग्रेच्युटी की रकम मिलती है। सेवानिवृत्त कर्मचारी की मृत्यु होने पर उसके परिजनों को पेंशन राशि मिलती है। पुरानी योजना में जनरल प्रोविडेंट फंड यानी जीपीएफ का प्रावधान है। इसमें महंगाई भत्ते को भी शामिल किया जाता है।

नई और पुरानी पेंशन योजना में कई बड़े अंतर हैं

इस स्कीम में रिटायरमेंट के समय कर्मचारी के वेतन की आधी राशि पेंशन के रूप में दी जाती है। जबकि नई पेंशन स्कीम में कर्मचारी की बेसिक सैलरी+डीए का 10 फीसद हिस्सा कटता है। पुरानी पेंशन स्कीम में पेंशन के लिए कर्मचारी के वेतन से कोई पैसा नहीं कटता है। वहीं नई पेंशन स्कीम में छह महीने बाद मिलने वाले डीए का प्रावधान नहीं है। पुरानी पेंशन स्कीम में भुगतान सरकार की ट्रेजरी के माध्यम से होता है। वहीं नई योजना में रिटायरमेंट के बाद निश्चित पेंशन की गारंटी नहीं होती। पुरानी स्कीम में रिटायर्ड कर्मचारी की मृत्यु होने पर उसके परिजनों को पेंशन की राशि मिलती है। नई योजना में एनपीएस शेयर बाजार पर आधारित है, इसलिए यहां टैक्स का भी प्रावधान है। नई और पुरानी पेंशन योजना का कर्मचारियों की पेंशन पर बड़ा अंतर है। इसे ऐसे समझें कि अगर अभी 80 हजार रुपये सैलरी पाने वाला कोई शिक्षक रिटायर होता है तो पुरानी पेंशन योजना के हिसाब से उसे करीब 30 से 40 हजार रुपये की पेंशन मिलेगी। वहीं अगर नई पेंशन योजना के हिसाब से देखें तो उस शिक्षक को बमुश्किल 800 से एक हजार रुपये की ही पेंशन मिलेगी।

अर्थव्यवस्था के लिए घातक हो सकती है योजना

बीते महीने आईएसबीआई के अर्थशास्त्रियों की लिखी एक रिपोर्ट के मुताबिक, पुरानी पेंशन योजना आने वाले समय में इकनॉमी के लिए घातक साबित हो सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक, गरीब राज्यों की श्रेणी में आने वाले छत्तीसगढ़, झारखंड और राजस्थान में सालाना पेंशन देनदारी तीन लाख करोड़ रुपये अनुमानित है। झारखंड के मामले में यह 217 फीसदी, राजस्थान में 190 फीसदी और छत्तीसगढ़ में 207 फीसदी है। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति ऐसे खर्चों को राज्य की जीडीपी या राज्य के कर संग्रह के एक फीसदी तक सीमित कर दे। इधर एक्सपर्ट् के मुताबिक, पहले से ही कर्ज में डूबे राज्यों के लिए यह योजना नई मुसीबत ला सकती है। इससे आगामी सरकारों पर बड़ा वित्तीय बोझ पड़ेगा। वहीं कुछ समय पहले केंद्रीय वित्त आयोग के चेयरमैन एनके सिंह ने पुरानी पेंशन योजना को देश की अर्थव्यवस्था के लिए अन्यायपूर्ण बताया था। वहीं उन्होंने इस विषय में सभी राज्य सरकारों को कड़ी आपत्तियों के साथ चेतावनी पत्र भेजा था। नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी ने भी कुछ राज्यों द्वारा पुरानी पेंशन योजना को दोबारा शुरू करने पर चिंता जताई थी।

राजग के समय में हुई थी ओल्ड पेंशन स्कीम बंद

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने एक अप्रैल, 2004 से ओल्ड पेंशन स्कीम को बंद कर दिया था। ओल्ड पेंशन स्कीम के तहत पेंशन की पूरी राशि सरकार देती थी। यह पेंशन रिटायरमेंट के समय कर्मचारी के वेतन पर आधारित होती थी। इस स्कीम के तहत रिटायर्ड कर्मचारी की मौत के बाद उसके परिजनों को भी पेंशन का प्रावधान था। नई पेंशन योजना के तहत कर्मचारी अपने मूल वेतन का 10 फीसदी हिस्सा पेंशन के लिए देते हैं। जबकि राज्य सरकार इसमें 14 फीसदी का योगदान देती है। अटल बिहारी वाजपेई की सरकार ने अप्रैल 2005 के बाद नियुक्त होने वाले कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन स्कीम को बंद कर दिया था। इसकी जगह नई पेंशन योजना लागू की गई थी। इसके बाद राज्यों ने भी नई पेंशन योजना को अपना लिया। इसके बाद से नई पेंशन योजना चल रही है।

हिमाचल प्रदेश की चारों लोकसभा सीटों पर है कांग्रेस की नजर

पुरानी पेंशन स्कीम (ओपीएस) समेत कांग्रेस के प्रतिज्ञा पत्र की दो और गारंटियों को लागू कर मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू मिशन 2024 की चुनावी बिसात बिछा रहे हैं। अगले साल होने जा रहे लोकसभा चुनाव में सुक्खू के लक्ष्य में हिमाचल प्रदेश की चारों लोकसभा सीटें होंगी। अभी कांग्रेस के पास केवल एक ही सीट मंडी है, तीन अन्य सीटों कांगड़ा, हमीरपुर और शिमला पर भाजपा काबिज है। मंडी संसदीय क्षेत्र में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 17 में से केवल पांच सीटें ही मिल पाई हैं। सुक्खू ने पहली कैबिनेट बैठक के बाद ओपीएस को तत्काल लागू करने और दो अन्य गारंटियों को इसी वर्ष धरातल पर उतारने की बात की है। राजनीतिक पंडितों के अनुसार सुक्खू ने पूर्व मुख्यमंत्री व नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर के इस गृह क्षेत्र में आभार रैली की सलाह भी इसी रणनीति के तहत दे डाली है। संगठन के पहले पायदान एनएसयूआई से अपनी यात्रा शुरू करने वाले सुखविंद्र सिंह सुक्खू को कांग्रेस हाईकमान ने हिमाचल का मुख्यमंत्री बनाकर उन पर बड़ा भरोसा जताया है। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को वीरभद्र सिंह के न रहने के बाद वही हिमाचल में कांग्रेस के खेवनहार लगे हैं। ऐसे में हिमाचल में लोकसभा चुनाव में चारों सीटों को अगर सुक्खू सोनिया, राहुल, प्रियंका और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की झोली में डाल पाए तो वह इस विश्वास को कायम रख पाएंगे। इसी के चलते सुक्खू सरकार ने चुनाव से पहले कांग्रेस के प्रतिज्ञा पत्र मेें शामिल तीन गारंटियों को वायदे के अनुरूप पहली कैबिनेट में मंजूरी दे डाली है। वायदे के मुताबिक ओपीएस के पहली कैबिनेट बैठक से ही लागू करने के आदेश जारी हो गए हैं तो राज्य में 18 से 60 साल की हर महिला को 1500 रुपये देने और एक लाख युवा बेरोजगारों को रोजगार दिलाने की गारंटियों पर भी मंत्रिमंडलीय उपसमितियां बनाई हैं, जिन्हें एक महीने में रिपोर्ट देकर एक साल में लागू करने की योजना भी बना ली है। यानी सुक्खू ने हिमाचल की आधी आबादी महिला वर्ग और प्रदेश के युवाओं पर फोकस किया है।

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