भाजपा के सुशासन उठे पर सवाल! 8 नगर निगम का सालों से ऑडिट नहीं

गुजरात मॉडल पर फिर उठे सवाल... राज्य के 8 बड़े नगर निगमों में सालों से ऑडिट नहीं हुआ है... अहमदाबाद, वडोदरा और सूरत...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर गुजरात मॉडल की बात करते हैं.. वे कहते हैं कि गुजरात में सुशासन यानी अच्छा शासन है.. जहां पारदर्शिता, जवाबदेही और कुशलता है.. लेकिन हाल ही में एक आरटीआई से जो जानकारी सामने आई है.. वह इन दावों पर बड़ा सवाल खड़ा करती है.. गुजरात के 8 प्रमुख नगर निगमों में पिछले कई सालों से कोई ऑडिट नहीं हुआ है.. मतलब हिसाब-किताब की जांच तक नहीं की गई है.. इन नगर निगमों के पास कुल मिलाकर 2 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का पैसा है.. जो जनता का है, लेकिन उसकी कोई जांच नहीं हुई.. अहमदाबाद, वडोदरा और सूरत जैसे बड़े शहरों के नगर निगमों का तो 7 साल से ऑडिट नहीं हुआ है..

आपको बता दें कि यह खुलासा अक्टूबर 2025 में हुआ.. जब एक आरटीआई के जवाब में गुजरात सरकार ने खुद स्वीकार किया कि इन नगर निगमों के खातों की जांच नहीं हुई.. यह बात न्यू इंडियन एक्सप्रेस जैसे प्रमुख अखबारों में छपी.. और सोशल मीडिया पर भी खूब चर्चा हुई.. लोग पूछ रहे हैं कि अगर सुशासन है, तो इतनी बड़ी लापरवाही कैसे.. नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे.. उन्होंने गुजरात को विकास का मॉडल बताया.. वे कहते थे कि यहां सुशासन है, मतलब सरकार पारदर्शी है, भ्रष्टाचार कम है.. और जनता का पैसा सही जगह लगता है.. 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वे गुजरात मॉडल को पूरे देश के लिए उदाहरण बताते रहे..

गुजरात में भाजपा की सरकार है.. और मोदी के बाद अमित शाह जैसे नेता भी वहां से हैं.. सरकार दावा करती है कि गुजरात में इंफ्रास्ट्रक्चर अच्छा है, शहर साफ-सुथरे हैं, और अर्थव्यवस्था मजबूत है.. अहमदाबाद को स्मार्ट सिटी कहा जाता है.. लेकिन ऑडिट न होने की खबर से पता चलता है कि सतह के नीचे कुछ गड़बड़ है.. ऑडिट CAG (कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया) या राज्य स्तर के ऑडिटर द्वारा होता है.. जो यह जांचता है कि पैसा कहां खर्च हुआ, कोई घोटाला तो नहीं हुआ.. अगर ऑडिट नहीं होता, तो भ्रष्टाचार बढ़ सकता है..

आरटीआई से पता चला कि 8 नगर निगमों में कुल 2 लाख करोड़ रुपये का हिसाब अनऑडिटेड है.. यह पैसा जनता के टैक्स से आता है.. जिसमें प्रॉपर्टी टैक्स, वॉटर चार्ज, और केंद्र-राज्य से मिलने वाली ग्रांट्स शामिल है.. अगर जांच नहीं होती, तो कौन जानता है कि पैसा सड़क, पानी, सफाई पर लगा या कहीं और.. यह सुशासन के दावों पर सीधा हमला है..

यह पूरा मामला एक आरटीआई से शुरू हुआ.. गुजरात के एक एक्टिविस्ट या नागरिक ने सूचना का अधिकार इस्तेमाल करके पूछा कि गुजरात के नगर निगमों का आखिरी ऑडिट कब हुआ था.. जवाब में सरकार ने बताया कि 8 बड़े नगर निगमों में सालों से ऑडिट पेंडिंग है.. अहमदाबाद नगर निगम गुजरात का सबसे बड़ा शहर है.. यहां का बजट 2024-25 में करीब 12,000 करोड़ रुपये था.. लेकिन ऑडिट आखिरी बार 2017-18 में हुआ.. मतलब 7 साल से कोई जांच नहीं हुई.. इतने सालों में हजारों करोड़ खर्च हुए, लेकिन कोई हिसाब नहीं..

वडोदरा नगर निगम में भी 7 साल से ऑडिट नहीं हुआ है.. शहर में विकास कार्य चल रहे हैं, लेकिन पैसा कहां गया, कोई नहीं जानता है.. डायमंड सिटी कहा जाने वाला सूरत भी 7 साल से अनऑडिटेड है.. यहां का बजट भी बड़ा है, लेकिन जांच शून्य है.. राजकोट नगर निगम में भी पिछले 6 साल से ऑडिट नहीं हुई है.. जामनगर और भावनगर नगर निगम में 5 साल से कोई ऑडिट नहीं हुई है.. जूनागढ़ और गांधीनगर नगर निगम में 4 साल से ऑडिट पेंडिंग है..

आपको बता दें कि ये 8 नगर निगम गुजरात के मुख्य शहरों को कवर करते हैं.. इनके पास कुल मिलाकर 2 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का फंड है.. जो अनचेक है.. आरटीआई के जवाब में यह भी कहा गया कि ऑडिट की प्रक्रिया चल रही है.. लेकिन सालों से पूरी नहीं हुई.. यह जानकारी न्यू इंडियन एक्सप्रेस में 11 अक्टूबर 2025 को छपी.. और उसके बाद टाइम्स ऑफ इंडिया, गुजरात समाचार जैसे अखबारों में भी आई.. आरटीआई 2005 का कानून है.. जो नागरिकों को सरकार से जानकारी मांगने का अधिकार देता है.. इसने कई घोटाले उजागर किए हैं.. यहां भी यही हुआ.. अगर आरटीआई न होती, तो शायद यह बात छिपी रहती..

बता दें कि ऑडिट एक चार्टर्ड अकाउंटेंट जैसा काम है.. लेकिन सरकार के लिए.. CAG या राज्य ऑडिटर जांचते हैं कि बजट में जो पैसा आया.. वह सही तरीके से खर्च हुआ या नहीं.. कोई फर्जी बिल तो नहीं, कोई रिश्वत तो नहीं.. अगर ऑडिट नहीं होता है… तो भ्रष्टाचार बढ़ता है.. अधिकारी बिना डर के पैसा गबन कर सकते हैं.. शहरों में पानी, बिजली, सफाई जैसी सेवाएं खराब हो सकती हैं.. क्योंकि पैसा गलत जगह जाता है.. 2 लाख करोड़ रुपये बड़ा अमाउंट है.. यह पूरे गुजरात के बजट का बड़ा हिस्सा है.. गुजरात में पहले भी ऐसे मामले हुए हैं.. 2010 के दशक में GSPC (गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन) में घोटाले के आरोप लगे.. जहां हजारों करोड़ का कर्ज हुआ.. CAG ने तब रिपोर्ट में गड़बड़ियां बताईं.. लेकिन अब तो ऑडिट ही नहीं हो रहा..

 

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