राजस्थान का रण: रणबांकुरे तैयार

एक तीर से कई निशाने लगाने को सियासी दल बेकरार

  • भाजपा ने मोदी-राजे को आगे कर किया चुनावी आगाज
  • कांग्रेस ने गहलोत-पायलट को दी कमान
  • जाट और मुस्लिम वोटरों पर फोकस

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
जयपुर। कर्नाटक जैसा बड़ा राज्य गंवाने के बाद बीजेपी उसकी भरपाई के लिए राजस्थान को हर प्रकार से अपने पाले में लाने की जुगत में लग गई है। हालांकि सत्तारुढ़ कांग्रेस की गहलोत सरकार भी राज्य की सत्ता को दोबारा अपने पास बरकरार रखने के लिए मेहनत कर रही है। जहां बीजेपी ने पीएम नरेंद्र मोदी क ो पुष्कर में पहला दौरा करवाकर अपने इरादे जता दिए हैं वहीं सीएम अशोक गहलोत राज्य के लोगों को कई लोक लुभावन वादे पूरे करने की बात करके अपनी सरकार को लाभ दिलाने की योजना बना ली है। दोनों प्रमुख पार्टियां जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएंगे अपने तरकश से तीर निकलाने शुरू कर देेंगे। भाजपा ने अजमेर रैली के जरिए राजस्थान विधानसभा चुनाव और मिशन 2024 पर एक तीर से दो निशाने लगा दिए है। वहीं कांग्रेस भी सत्ता को कायम रखने व लोक सभा चुनाव में सीटों पर कब्जे की तैयारी में लगने को बेताब दिख रही है।
राजस्थान में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं और अगले साल देश में लोकसभा का चुनाव होना है। हाल ही में बीजेपी को कर्नाटक विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। ऐसे में भाजपा का पूरा फोकस इस साल होने वाले राजस्थान चुनाव पर है। मोदी ने राजस्थान से जनसंपर्क अभियान की शुरुआत कर दी है। राजस्थान में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में भाजपा का पूरा फोकस राजस्थान की सत्ता में वापसी पर है। भाजपा ने पीएम मोदी के कार्यक्रम के लिए अजमेर को चुना है। अगले साल देश में लोकसभा का चुनाव होना है। हाल ही में बीजेपी को कर्नाटक विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। ऐसे में भाजपा का पूरा फोकस उन राज्यों पर है, जहां इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें एक राज्य राजस्थान भी है। यहां इस साल के अंत (दिसंबर) में चुनाव होना है। बीजेपी ने केंद्र की सत्ता में 9 साल पूरे होने पर देश भर में एक महीने तक जनसंपर्क अभियान को शुरू करने का फैसला किया है। भाजपा का दावा है कि पीएम मोदी की इस रैली में करीब दो लाख लोगों की भीड़ जुट सकती है।
पिछले 8 महीने में पीएम मोदी का राजस्थान का यह छठा दौरा है। राजस्थान चुनाव में कोई कसर न छूटे इसके लिए बीजेपी हर कमी को दूर करना चाहती है। साथ ही भाजपा का फोकस यहां के जातिगत वोटरों पर भी है। अजमेर के आसपास के क्षेत्र में जाट और मुस्लिमों की बड़ी संख्या है। राजस्थान की सियासत में मुस्लिम वोटर कांग्रेस के पक्ष में ही मतदान करते रहे हैं, जबकि कांग्रेस को जाट वोटरों का भी साथ मिलता है। बता दें कि पीएम मोदी अपने अजमेर दौरे के दौरान पुष्कर में ब्रह्मा मंदिर का दर्शन किया। इसके बाद पीएम मोदी अजमेर की कायड़ विश्राम स्थली में एक सभा को संबोधित किया। सभा के लिए एक विशाल पंडाल बनाया गया ै। यहां सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए । इसके अलावा व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी भाजपा नेताओं को दी गई है, ताकि पीएम मोदी की सभा को भव्य और आलीशान बनाया जा सके। इस साल अब मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव होना बचा है। इनमें राजस्थान और छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है, जहां फिलहाल कांग्रेस की सरकार है। इन दोनों राज्यों में इस बार बीजेपी चाहेगी कि वो किसी भी तरह से कांग्रेस से सत्ता छीन सके।

कांग्रेस के पास सचिन व गहलोत मजबूत ताकत

राजस्थान विधानसभा का कार्यकाल 14 जनवरी 2023 को खत्म हो रहा है, ऐसे में यहां मध्य प्रदेश के साथ नवंबर-दिसंबर 2023 में चुनाव हो सकता है, राजस्थान में 200 विधानसभा सीटें हैं और सरकार बनाने के लिए 101 सीटें चाहिए। राजस्थान में भले ही गहलोत और पायलट के बीच पिछले 4 साल से तनातनी है, उसके बावजूद कांग्रेस के लिए ये एक ताकत ही है।

पायलट के गढ़ में सेंध लगाने में जुटी बीजेपी

माना जा रहा है कि पीएम मोदी के अजमेर से अभियान की शुरुआत करने से कांग्रेस को बड़ा नुकसान हो सकता है। बता दें कि कांग्रेस नेता और राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट अजमेर से ही आते हैं। साल 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने पार्टी की जीत में अहम भूमिका निभाई थी। इसलिए पीएम मोदी की रैली के लिए अजमेर को चुनना एक बड़ी वजह माना जा रहा है।

कर्नाटक में हार से बीजेपी लेगी सबक

कर्नाटक चुनाव नतीजों के बाद ही बीजेपी ने राजस्थान के लिए अपनी रणनीति को अंजाम देना शुरू किया है। वसुंधरा राजे और सतीश पूनिया के बीच तनातनी का असर पार्टी पर पड़ सकता था। इसको देखते हुए पार्टी ने दोबारा प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी को लिए सतीश पूनिया पर भरोसा नहीं जताया। मार्च में उनकी जगह चित्तौडग़ढ़ से सांसद चंद्र प्रकाश जोशी को राजस्थान बीजेपी का अध्यक्ष बना दिया जाता है और यहीं से वसुंधरा राजे को लेकर पार्टी के रवैये में बदलाव का सिलसिला दिखने लगता है. ये बात और है कि वसुंधरा राजे को लेकर रवैये में जिस तरह से बदलाव आ रहा है, उसे कर्नाटक की हार को देखते हुए बीजेपी की बदली रणनीति के तौर पर सियासी जानकार देख रहे हैं। ऐसा नहीं है कि सिर्फ कर्नाटक हार ही एक मुद्दा है, जिससे बीजेपी के लिए पार्टी की अहमियत और बढ़ जाती है, दरअसल वसुंधरा राजे का कद राजस्थान में इतना बड़ा है कि बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व चाहकर भी उनकी उपेक्षा चुनाव में नहीं कर सकता है।

रैली से मिलते हैं संकेत : वसुंधरा राजे ही होंगी बीजेपी का चेहरा

ऐसे तो वसुंधरा राजे के तौर पर बीजेपी के पास राजस्थान में बहुत बड़ा चेहरा है, लेकिन जिस तरह से पिछले 4 साल से राज्य की पार्टी गतिविधियों में वसुंधरा राजे की उपेक्षा होते रही है, उससे ये कयास लगाया जाने लगा कि आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी कोई स्थानीय चेहरा घोषित करेगी या फिर पार्टी के वरिष्ठ नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही चेहरा होंगे। कर्नाटक नतीजों के बाद बीजेपी अपनी रणनीति बदलने को मजबूर हो सकती है। कर्नाटक में बीजेपी की हार का एक प्रमुख कारण यहीं था कि उसके पास केंद्रीय नेता के तौर पर नरेंद्र मोदी चेहरा थे, बीएस येदियुरप्पा के चुनावी राजनीति से अलग होने के बाद सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार की काट के तौर पर बीजेपी के पास कोई दमदार स्थानीय चेहरा नहीं था, जिसे आगे कर वो चुनाव लड़ पाती, यही वजह है कि राजस्थान में बीजेपी को स्थानीय चेहरे को आगे करने की रणनीति पर बढऩा होगा। प्रधानमंत्री ने अजमेर में विशाल रैली कर एक तरह से राजस्थान में पार्टी के लिए चुनाव अभियान शुरू करने का बिगुल बजा दिया। इस रैली में मंच पर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी मौजूद थीं। इस दौरान दोनों के हाव-भाव से ये संकेत मिलते हैं कि बीजेपी राजस्थान में कर्नाटक वाली ग़लती नहीं दोहराएगी और इसकी भरपूर संभावना है कि वसुंधरा राजे को ही आगे कर विधानसभा चुनाव के दंगल में उतरेगी। पिछले कुछ सालों में सतीश पूनिया के प्रदेश अध्यक्ष रहने के दौरान जिस तरह का रवैया बीजेपी राज्य इकाई और वसुंधरा राजे का एक-दूसरे के प्रति रहा था, उसकी वजह से अजमेर रैली में सबकी नजऱ वसुंधरा राजे पर टिकी थी। हालांकि जो जेस्चर वसुंधरा राजे का रहा, ये बीजेपी के लिए सकारात्मक संदेश है। कुछ वक्त पहले तक ये भी कहा जाता था कि वसुंधरा राजे को लेकर शीर्ष नेतृत्व का व्यवहार रुखा-सूखा रहा है। लेकिन अजमेर रैली में जिस तरह की तस्वीर दिखी, उससे एक संकेत मिला है कि अब वसुंधरा राजे ही पार्टी का चेहरा होंगी। इस रैली में पीएम मोदी ने हाथ जोडक़र वसुंधरा राजे का अभिवादन भी स्वीकार किया और दोनों नेताओं के बीच कुछ देर बातचीत भी हुई। अजमेर रैली में एक और बदलाव देखने को मिला। 2018 में राजस्थान विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार होती है। उसके बाद सितंबर 2019 में अंबर से बीजेपी विधायक सतीश पूनिया यहां वसुंधरा राजे के न चाहने के बावजूद पार्टी प्रदेश अध्यक्ष बनते है। सतीश पूनिया इस साल मार्च तक इस पद पर रहते हैं। 2018 में बीजेपी की हार के बाद से ही वसुंधरा राजे राजनीतिक तौर से कम सक्रिय दिख रहीं थीं। सतीश पूनिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद बीजेपी की प्रदेश स्तरीय राजनीति में वसुंधरा राजे हाशिये पर थीं। इस दौरान बीजेपी राज्य इकाई के कार्यक्रमों के दौरान कई बार वसुंधरा राजे नहीं दिखीं. इसके साथ ही राज्य में बीजेपी के होर्डिंग और पोस्टरों से भी वसुंधरा राजे गायब हो गई थीं। लेकिन 31 मई को अजमेर रैली के दौरान वसुंधरा राजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ठीक बगल में बैठी दिखाई दीं। रैली के लिए लगाए गए होर्डिंग और पोस्टरों में भी वसुंधरा राजे हर जगह नजऱ आ रही थी। अजमेर रैली के दौरान जो बदला-बदला माहौल था, उससे साफ संकेत मिल रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी वसुंधरा राजे को कमान सौंप सकती है।

गहलोत लगातार लोकलुभावन घोषणाएं कर रहे हैं

अशोक गहलोत ने 31 मई को बड़ा चुनावी दांव चलते हुए राज्य के हर लोगों के लिए पहली 100 यूनिट बिजली फ्री करने की घोषणा की, इसमें साफ किया गया कि चाहे बिजली बिल कितना भी आए, पहले 100 यूनिट का कोई भी शुल्क किसी से नहीं वसूला जाएगा। एंटी इनकंबेंसी से निपटने और सचिन पायलट से मनमुटाव के असर को कम करने के लिए अशोक गहलोत लगातार लोकलुभावन योजनाओं का ऐलान कर रहे हैं। इस साल के बजट में भी ऐसी की घोषणाएं की गई थी, जिनमें कई नए जिले बनाने और महिलाओं को स्मार्ट फोन देने जैसी योजनाएं भी शामिल हैं। इस बीच कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व भी अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच तकरार को दूर करने के लि पहले से ज्यादा सक्रिय दिख रहा है, यही वजह है कि कुछ दिनों पहले पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी ने गहलोत-पायलट के साथ दिल्ली में बैठक की थी। ऐसे भी अशोक गहलोत ये बात समझ चुके हैं कि चाहे कुछ हो सचिन पायलट के सामने चुनाव में कांग्रेस के साथ बने रहने के अलावा कोई और बेहतर विकल्प नहीं है। राजस्थान में सचिन पायलट युवा नेता के तौर पर काफी लोकप्रिय हैं, इसमें कोई दो राय नहीं है, इसके बावजूद उन्हें ये एहसास है कि बीजेपी में जाने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि बीजेपी की जो परंपरा और नीति है, उसके तहत हिमंत बिस्वा सरमा को छोड़ दें तो बाहर से आए लोगों को इतनी जल्दी मुख्यमंत्री बनाने का रिकॉर्ड नहीं रहा है. अलग पार्टी बनाना भी उनके लिए आसान नहीं होगा। अपनी उम्र को देखते हुए उन्हें ये भी एहसास होगा कि कांग्रेस में रहते हुए ही वे राज्य के मुख्यमंत्री कभी न कभी बन ही सकते हैं।

अजमेर से 8 लोकसभा व 64 विधान सभा सीटों पर नजर

प्रधानमंत्री मोदी के इस सभा के जरिए बीजेपी अजमेर के आसपास की आठ लोकसभा सीटों को भी साधने में जुटी है। इन आठ लोकसभा क्षेत्रों में 64 सीटें आती हैं। हालांकि, बीजेपी का पूरा फोकस करीब 45 विधानसभा सीटों पर हैं, जो अजमेर से बिल्कुल नजदीक हैं। पीएम मोदी की रैली के लिए आठ लोकसभा और 45 विधानसभा क्षेत्र के लोगों के पहुंचने की उम्मीद है। इन 45 विधानसभा सीटों में से भाजपा के पास 20 सीटें हैं। इसके अलावा 20 सीटें कांग्रेस के पास है और बाकी सीटें अन्य दलों के पास है।

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