Ram Mandir पर ध्वजारोहण कर फंसे PM Modi, विरोध में उतरे शंकराचार्य।

अयोध्या में भव्य राम मंदिर के शिखर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए ध्वजारोहण के कार्यक्रम को लेकर देश में एक नया विवाद खड़ा हो गया है....गोदी मीडिया इस कार्यक्रम की तस्वीरों और कवरेज से भरा पड़ा है.....

4पीएम न्यूज नेटवर्क: अयोध्या में भव्य राम मंदिर के शिखर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए ध्वजारोहण के कार्यक्रम को लेकर देश में एक नया विवाद खड़ा हो गया है….गोदी मीडिया इस कार्यक्रम की तस्वीरों और कवरेज से भरा पड़ा है…..

लेकिन इसी बीच दो महत्वपूर्ण धार्मिक हस्तियों….जिनमें एक पीएम मोदी के गुरु माने जाने वाले जगद्गुरु रामभद्राचार्य और शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद की गंभीर आपत्तियों ने बीजेपी के इस पूरे कथित राजनातिक कार्यक्रम पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं……..तो जगद्गुरु रामभद्राचार्य और शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए ध्वजारोहण कार्यक्रम पर ऐसा क्या दिया बयान…जिससे धर्मसत्ता और राजसत्ता के बीच छिड़ गई बहस…..

अयोध्या… जहाँ सदियों के इंतजार के बाद श्रीराम का मंदिर आकार ले रहा है…वो पवित्र स्थान जो अब केवल एक आस्था का केंद्र नहीं….बल्कि भारत की राजनीतिक शक्ति का सबसे बड़ा प्रतीक बन चुका है…आज इसी पवित्र भूमि पर हुए एक विशेष अनुष्ठान….राम मंदिर के ध्वजारोहण कार्यक्रम ने आज देश की धर्मसत्ता और राजसत्ता के बीच एक गहरी दरार पैदा कर दी है…जगतगुरु रामभद्राचार्य का ये कहना कि हमको आमंत्रण नहीं भेजा गया..

और द्वारका-शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य… स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का ये आरोप कि पूरा कार्यक्रम ही शास्त्र के विपरीत है…ये बयान सीधे तौर पर उन आयोजकों को कठघरे में खड़ा करते हैं…जो इस पूरे उत्सव को संचालित कर रहे हैं… यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, RSS और BJP……..

आज हमारी इस रिपोर्ट का अहम सवाल यही है कि क्या आज पीएम मोदी… संघ और भाजपा… अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए… शंकराचार्यों जैसे धर्म के सर्वोच्च स्तंभों का भी अपमान कर रहे हैं… और क्या वे केवल अपने राजनैतिक फायदे के लिए… मंदिर के ध्वजारोहण जैसे पवित्र अनुष्ठानों को भी शास्त्रों की मर्यादा से ऊपर रख रहे हैं…आइए आज इन्ही सवालों को हर पहलू की गहराई से समझते हैं…..

हिंदू मंदिर निर्माण और अनुष्ठानों में…ध्वजारोहण का एक बहुत ही पवित्र और खास स्थान होता है…ये केवल कपड़े का एक टुकड़ा फहराना नहीं है…….ये मंदिर के ऊपर…धर्म की विजय का प्रतीक होता है… ध्वज… मंदिर की दैवीय पहचान को स्थापित करता है और ये घोषणा करता है कि ये स्थान अब ईश्वर को समर्पित है……………..शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का ध्वजारोहण कार्यक्रम पर सवाल उठाना… इसलिए गंभीर है क्योंकि उनकी आपत्ति इसकी विधि पर केंद्रित है…उन्होंने स्पष्ट कहा कि…

.यहां सिर्फ और सिर्फ सब मनमाने तरीके से किया जा रहा है….शास्त्रों का ध्यान नहीं रखा…उन्होंने कहा कि……………..मेरे हिसाब से शास्त्र में ऐसा उल्लेख कहीं नहीं है कि मंदिर पर ध्वजारोहण किया जाए…ध्वजारोहण का कार्यक्रम धार्मिक रूप से कहीं नहीं होता है. मैंने कहीं पढ़ा भी नहीं है. ध्वज बदला जाता है, एक बार जब ध्वज स्थापित होता है……शिखर की प्रतिष्ठा होती है……..उसके बाद……..यहां तो शिखर की प्रतिष्ठा हुई ही नहीं…..

यानीकि शंकराचार्यों के अनुसार… अयोध्या में ये ध्वजारोहण…..शास्त्रों की मर्यादा का सीधा उल्लंघन है…….ये मनमाना तरीका…सीधे तौर पर ये दिखाता है कि BJP और RSS के लिए… धार्मिक शुद्धता से ज़्यादा… एक विशेष राजनीतिक डेटलाइन का पालन करना ज्यादा जरूरी था……जैसे कि ये ध्वजारोहण धार्मिक अनुष्ठान न होकर… आगामी चुनावों के लिए एक राजनीतिक उद्घोषणा हो…….जो धार्मिक नियमों को ताक पर रखकर की गई…

राम मंदिर के निर्माण से लेकर ध्वजारोहण तक… हर कदम पर शंकराचार्यों जैसे प्रमुख धर्मगुरुओं को न केवल आमंत्रित किया जाना चाहिए था…बल्कि उनसे परामर्श भी लिया जाना चाहिए था…….लेकिन बीजेपी ने उनसे राय लेना तो दूर बल्कि, उन्हें बुलाना भी जरूर नहीं समझा….जी हां, जगतगुरु रामभद्राचार्य को इस ध्वजारोहण कार्यक्रम में आमंत्रित तक नहीं किया गया…….

जिसे लेकर जगतगुरु रामभद्राचार्य ने कहा कि….राम के उपासकों को आज उचित सम्मान नहीं मिल रहा है….1984 में जब से राम मंदिर आंदोलन शुरू हुआ है…मैं तबसे जुड़ा हूं….पुलिस के डंडों की वजह से मेरी दाहिनी कलाई टेढ़ी हो चुकी है…….यही नहीं उन्होंने आगे कहा कि…..इतना सब करने के बाद भी हमारी उपेक्षाएं पूरी नहीं हुईं…..हमको इस कार्यक्रम का आमंत्रण भी नहीं भेजा गया…..ये लोग किसी की सुनना ही नहीं चाहते……

सोचिए, जगतगुरु रामभद्राचार्य…जो खुद राम कथा के एक बड़े हस्ताक्षर हैं… उनका ये बयान…कि हमको आमंत्रण नहीं भेजा गया… एक गहरा आघात है… ये उस सम्मान और मर्यादा पर सीधा प्रहार है… जिसके वो हिंदू धर्म में अधिकारी हैं…ये उपेक्षा केवल एक चूक नहीं हो सकती…जब देश के प्रधानमंत्री और गृह मंत्री जैसे सर्वोच्च पदों पर बैठे लोग… हर छोटे-बड़े कार्यक्रम की योजना बनाते हैं…

तो क्या ये संभव है कि उन्हें भारत के चार शंकराचार्यों या प्रमुख धर्मगुरुओं को आमंत्रित करने की याद न रही हो…असल में, ये निमंत्रण न देना… BJP-RSS की उस नई राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है…जिसके तहत वो देश में धार्मिक सत्ता शंकराचार्यों को दरकिनार करके…खुद को आस्था का नया संरक्षक स्थापित करना चाहते हैं…

मोदी सरकार ने बड़ी चतुराई ही से… राम मंदिर को अपने राजनीतिक नैरेटिव में बदल दिया है… उन्हें डर है कि अगर शंकराचार्य मंच पर होंगे… तो उनकी धार्मिक अधिकारिता और प्रधानमंत्री की भक्त वाली छवि को चुनौती देगी…इस तरह… शंकराचार्यों को मंच से और निर्णय प्रक्रिया से दूर रखकर…पीएम मोदी और भाजपा ने स्पष्ट संदेश दिया है कि… राम मंदिर की परियोजना पर… अब केवल राजसत्ता का नियंत्रण है…धर्मसत्ता की अब कोई जरूरत नहीं है… ये सीधे तौर पर हिंदू धर्म के सर्वोच्च गुरुओं का अपमान है…

कहा जाता है कि RSS और BJP की राजनीति… हमेशा से ही पारंपरिक धार्मिक संस्थाओं को अपने नियंत्रण में लेने या उन्हें अप्रसांगिक बनाने की रही है…अयोध्या के इस ध्वजारोहण और बाद के कार्यक्रमों में… उन्होंने इसी रणनीति का सफलतापूर्वक उपयोग किया है…उन्होंने शंकराचार्यों को निमंत्रण न देकर…ये संदेश दिया कि पुराने आचार्य अब ज़रूरी नहीं…राम भक्त ही अब धर्म के नए प्रवक्ता हैं………

प्रधानमंत्री मोदी ने खुद को एक मुख्य यजमान के रूप में स्थापित किया…जिससे उनकी छवि एक राजनेता से हटकर…धर्मपुरुष की बनती जा रही है….ये सीधे तौर पर किसी भी शंकराचार्य के आध्यात्मिक कद को चुनौती देता है……ध्वजारोहण और अनुष्ठान में शास्त्र विरुद्ध कार्य करके…उन्होंने ये साबित किया कि उनके लिए 2024 का चुनावी कैलेंडर…….किसी भी प्राचीन धार्मिक नियम या मर्यादा से ज़्यादा पवित्र है…

इस पूरे मामले ने ये साबित कर दिया है कि पीएम मोदी और संघ… आज अपने राजनैतिक फायदे के लिए… न केवल धर्म के रक्षकों, शंकराचार्यों का अपमान कर रहे हैं… बल्कि हिंदू शास्त्रों की सदियों पुरानी मर्यादाओं को भी तोड़ रहे हैं…….मंदिर… जो आस्था का प्रतीक होना चाहिए था…वो आज भाजपा के लिए सिर्फ एक राजनीतिक ध्वज बन गया है…जिसे वो अपने मनमाने तरीके से फहरा रहे हैं……………..

दोस्तों, अयोध्या राम मंदिर का ध्वजारोहण… केवल एक धार्मिक कार्यक्रम की खामी नहीं है…ये आधुनिक भारतीय राजनीति का एक महत्वपूर्ण मोड़ है…जहाँ राजसत्ता….धर्मसत्ता पर हावी हो गई है…प्रधानमंत्री मोदी, RSS और BJP की तिकड़ी ने…इस पूरे आयोजन को… शंकराचार्यों और शास्त्रों के अपमान की कीमत पर….अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए साध लिया है…………

ऐसे में ये धर्म की उपेक्षा… धार्मिक संस्थाओं के पतन की ओर इशारा करती है… ये बताता है कि आने वाले समय में… कोई भी धार्मिक कार्यक्रम…पहले राजनीतिक होगा…और बाद में धार्मिक……और यही भाजपा के कथित सत्ता-केंद्रित धर्म का असली चेहरा है……..सत्ता के लिए धर्म का ये मनमाना उपयोग… हिंदू समाज के लिए एक गंभीर चेतावनी है… क्योंकि जब धर्म के रक्षक ही किनारे कर दिए जाते हैं… तो धर्म खुद खतरे में पड़ जाता है……

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