SIR विवाद में राष्ट्रपति की एंट्री, कांग्रेस हमलावर- मोदी सरकार आई बैकफुट पर

दोस्तों अपने सूटबूट वाले पीएम साहब और उनकी सरकार दो बड़े मामलों में बुरा फंस गई है। एक ओर जहां मोदी सरकार ने एक्शन में आए सीजेआई बीआर गवई के सामने न सिर्फ घुटने टेक दिए है बल्कि सरेआम माफी भी मांगी है तो वहीं दूसरी ओर एसआईआर में आचानक राष्ट्रपति की इंट्री ने हड़कंप मचा दिया है।

4पीएम न्यूज नेटवर्क: दोस्तों अपने सूटबूट वाले पीएम साहब और उनकी सरकार दो बड़े मामलों में बुरा फंस गई है। एक ओर जहां मोदी सरकार ने एक्शन में आए सीजेआई बीआर गवई के सामने न सिर्फ घुटने टेक दिए है बल्कि सरेआम माफी भी मांगी है तो वहीं दूसरी ओर एसआईआर में आचानक राष्ट्रपति की इंट्री ने हड़कंप मचा दिया है।

आपको बता दें कि इन दोनों मामलों के बाद मोदी सरकार की सिट्टी पिट्टी गुम है। कैसे सीजेआई गवई की फटकार के बाद मोदी सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा है और कैसे पूरे देश में शुरु होने जा रहे एसआईआर में राष्ट्रपति की इंटी से हड़कंप मचा है, ये हम आपको आगे अपनी इस आठ मिनट की रिपोर्ट में बताने वाले हैं।

दोस्तों, बात शुरु करते हैं सीजेआई गवई के मामले से। आपको बता दें कि पिछले दिनों सीजेआई गवई का एक बयान देकर हंगामा मचा दिया था साथ ही उन्होेंने मोदी सरकार को फटकार भी लगाई थी। दरसअल सीजेआई बीआर गवई को इग्नोर करने के मामले में मोदी सरकार आखिरकार बैकफुट पर आ गई है। न सिर्फ मोदी सरकार के सबसे बड़े वकील ने न सिर्फ सीजेआई गवई से माफी मांगी है बल्कि गवई की पीठ में सुनवाई के लिए भी हामी पर भर ली है। आपको बता दें कि सीजेआई बी. आर. गवाई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने गुरुवार को ही अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से कहा था कि वे अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी की शुक्रवार को अनुपस्थिति के अनुरोध को स्वीकार करेंगे और वे सोमवार को अपनी दलीलें पेश कर सकते हैं। हालांकि, मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि अब सुनवाई स्थगित करने का कोई और अनुरोध स्वीकार नहीं किया जाएगा।

उन्होंने कहा, लेकिन, सोमवार को या तो आप अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का कार्यक्रम छोड़ दें या भाटी को मामले को संभालने का जिम्मा सौंप दें। रिपोर्ट के अनुसार सीजेआई गवई ने यहां तक कह दिया है कि शायद तारीख पर तारीख लेकर उनको टाला जा रहा है और ऐसा रवैया शायद जानबूझ कर किया जा रहा है। आपको बता दें कि सीजेआई गवई की ये बातें कहीं न कहीं बहुत हद तक सच भी हुई हैं। ज्यादातर हाईप्रोफाइल केस सीजेआई गवई कम सुनते दिखाई दे रहे हैं। आपको बता दें कि पिछले दिनों बिहार एसआईआर का मामला आया लेकिन इस मामले को भी बीआई गवई की पीठ में नहीं आया, एसआईआर का मामला आगामी सीजेआई सूर्यकांत का दिया गया, आपको बता दें कि इस तरह से और भी कई मामले हैं और शायद कहीं न कहीं ये बात सच भी है कि मोदी सरकार सीजेआई गवई की पीठ से पिछले कुछ दिनों से बच रही है खासतौर से जब से सीजेआई ने वक्फ संबंधी फैसला दिया था, जिसको मोदी सरकार और उनकी बैसाखी यानि कि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू सही बता रहे है।

गवई ने माना था कि कुछ धाराएं ठीक नहीं है और उनपर रोक लगा दी थी और शायद तभी से उनको इग्नोर करने का खेल मोदी सरकार खेल रही थी लेकिन जैसे ही सीजेआइ्र गवई ने फटकार लगाई है आपको बता दें कि मोदी सरकार बैकफुट पर आ गई है और माफी तक मंागी है। आपको बातें दें कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल में ही केंद्र सरकार की ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के बीच में ही मामले को पांच-न्यायाधीशों की बेंच को भेजने की मांग पर नाराजगी जताई थी। इस पर अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट से माफी मांगी है।

अटॉर्नी जनरल ने सर्वाेच्च न्यायालय से कहा कि वे अदालत को हुई असुविधा के लिए खेद व्यक्त करते हैं और सोमवार को व्यक्तिगत रूप से पेश होकर ट्रिब्यूनल रिफॉर्म एक्ट की वैधता पर अपनी दलीलें रखेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार याचिकाकर्ताओं की चिंताओं पर विचार करेगी और यदि संभव हुआ तो सुधार किए जाएंगे। आपको बता दें कि दरअसल पेंच यह है कि ट्रिब्यूनल रिफॉर्म एक्ट विभिन्न ट्रिब्यूनलों के सदस्यों और अध्यक्षों के लिए चार साल का समान कार्यकाल निर्धारित करता है। याचिकाकर्ताओं की एक बड़ी शिकायत यह थी कि नियुक्ति की छोटी अवधि के कारण, महत्वपूर्ण न्यायिक कार्य करने वाले ट्रिब्यूनल युवाओं को आकर्षित नहीं करते और केवल सेवानिवृत्त व्यक्ति ही इन पदों के लिए आवेदन करते हैं।

वहीं वरिष्ठ वकील अरविंद का कहना है कि कार्यकाल रिनिवल का वादा ट्रिब्यूनलों की स्वतंत्रता को नष्ट कर देगा और एक मजबूत स्वतंत्र ट्रिब्यूनल प्रणाली की आवश्यकता पर जोर दिया। मुख्य न्यायाधीश गवाई ने इस बात से सहमति जताई और पूछा, कि यदि ट्रिब्यूनल के सदस्य और अध्यक्ष अपने कार्यकाल के नवीनीकरण के लिए सरकार पर निर्भर हैं, तो क्या यह ट्रिब्यूनलों के न्यायिक कार्यों की स्वतंत्रता को प्रभावित नहीं करेगा? इसको लेकर रार और तकरार का दौर चल रहा है हालांकि अब सीजेआइ्र गवई की फटकार के बाद सरकार सरेेंडर हुई है और बहस का न सिर्फ आगे ले जाने को तैयार है बल्कि जरुरी संशोधन भी कराने को राजी हो गई है।

आपको बता दें कि एक ओर जहां सरकार सीजेआई गवई के सामने बैकफुट पर आई है तो वहीं दूसरी ओर एसआईआर में भी राष्ट्रपति की इंटी हुई है। आपको बता दें कि एसआईआर को लेकर कांग्रेस पार्टी क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर बहुत बड़ी लड़ाई सड़क से सदन तक लड़ने जा रही है। एक ओर जहां ज्ञानेश जी ने बिहार के बाद एसआईआर की प्रक्रिया को पूरे देश में लागू करने का फैसला ले लिया है और आज 11 नंबवर से सुप्रीम कोर्ट में इस पर फाइनल सुनवाई होनी है तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस बिहार चुनाव के बाद बहुत बड़े आंदोलन की तैयारी में जुट गई है। आपको बता दें कि कांग्रेस ने एसआईआर की प्रक्रिया में खामियों का हवाला देते हुए केंद्र सरकार और चुनाव आयोग के साथ मिलकर वोटचोरी का आरोप लगाया था।

अपने इस आरोप को लेकर कांग्रेस ने अक्टूबर महीने में देश भर में 5 करोड़ लोगों का हस्ताक्षर अभियान चलाया था. वहीं 5 नवम्बर को ही 5 करोड़ से ज़्यादा का अभियान पूरा हुआ है और अब इस लड़ाई को कांग्रेस आगे ले जाना चाहती है। इसके बाद कांग्रेस टॉप लीडरशिप ने तय किया कि 8 नवम्बर को हर राज्य के पार्टी के मुख्यालय में हस्ताक्षर के साथ विरोध जताया जाएगा. इसके बाद राज्यों से सभी हस्ताक्षर अभियान के तहत आए कागजात को दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय भेजा जाएगा, जिसे मीडिया के सामने रखा जाएगा और फिर कांग्रेस का एक प्रतिनिधि मंडल कांग्रेस राष्ट्रपति से मिलकर एसआईआर को रद करने की मांग करेगा।

वैसे तो यह काम 11 तारीख से पहले होने का कार्यक्रम कांग्रेस ने बनाया था लेकिन अब इसको बदल दिया है और बिहार चुनाव के मद्देनजर अगले कदम के तहत नवम्बर के आखिरी हफ्ते में या दिसम्बर के पहले हफ्ते में कांग्रेस दिल्ली के रामलीला मैदान में बड़ी रैली प्लान कर रही है। इसमें इंडिया ब्लॉक के नेताओं को भी न्योता भेजा जा सकता है। इस रैली में 5 करोड़ से ज़्यादा लोगों के हस्ताक्षर अभियान को जनता के बीच रखा जाएगा। इसके बाद इन हस्ताक्षरों के दस्तावेज राष्ट्रपति को सौंपे जाएंगे. दरअसल, कांग्रेस तय कर चुकी है कि, इस मुद्दे पर वो खुद सुप्रीम कोर्ट नहीं जाएगी., वह चाहती है कि सुप्रीम कोर्ट स्वतः संज्ञान ले. कांग्रेस का मानना है कि, उसके नेता राहुल गांधी ने तथ्यों के साथ खुलासे किये हैं, वो जनता के प्रति जवाबदेह हैं।

ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को स्वतः संज्ञान लेना चाहिए, क्योंकि, बिहार में एसआईआर के मुद्दे पर मामला अदालत में है। कांग्रेस का कहना है कि फैसला आया नहीं, लेकिन उसी वोटर लिस्ट पर पहले दौर का मतदान हो गया. इतना ही नहीं चुनाव आयोग ने बिहार का फैसला नहीं आने के बावजूद देश के बाकी राज्यों में एसआईआर कराने का फैसला कर दिया। आपको बता दें कि ऐसे में कहीं न कहीं बीजेपी बुरी तरह से फंसी है क्योंकि जैसे ही राहुल गांधी वोटचोरी के किसी खुलासे को लेकर प्रेस करते हैं तो चुनाव अयोग से पहले बीजेपी एक्टिव हो जाती है और वो सवाल जवाब करने लगती है लेकिन एसआईआर मामले में जिस तरह से राष्ट्रपति के सामने मसौदा पेश करने किया जाएगा और जिस तरह के सबूत दिए जाएंगे,

इसक पर कहीं कहीं राष्ट्रपति जी को न सिर्फ सवाल करना होगा, ऐसे में कहीं न कहीं चुनाव आयोग और ज्ञानेश कुमार जी पर एक बार फिर से बड़ा सवाल खड़ा होने वाला और उनकी वोटचोरी के बाद एसआईआर पर तगड़ी वाली परीक्षा होने वाली है लेकिन क्योंकि 12 प्रदेशों में एसआईआर शुरु हो चुका है और एसआईआर बिहार पर फाइनल डिसीजन नहीं आया है, ऐसे में कहीं न कहीं पेंच फिलहाल फंसा हुआ है और इस पेंच में मोदी सरकार दो तरफ से उलझी हुई है। एक ओर जहां उनको सीजेआइ्र गवई की फटकार के बाद घुटने टेकने को मजबूर होना पड़ा है तो वहीं दूसरी ओर एसआईआर में राष्ट्रपति की इंट्री कहीं न कहीं बीजेपी को हिला रही है क्योंकि एसआईआर के खिलाफ 5 करोड़ लोगों के हस्ताक्षर पूरे सिलसिले की सबसे अहम कड़ी बनने जा रहे हैं।

पूरे मामले पर आपका क्या मानना है कि क्या सीजेआई गवई की फटकार के बाद जिस तरह से मोदी सरकार ने घुटने टेके है, ऐसे में कहीं न कहीं ये बात साबित हो रही है कि मोदी सरकार को सीजेआइ्र गवई झुकाने में कामयाब हो गए है। क्या जिस तरह से एसआईआर को लेकर कांग्रेस बिहार चुनाव बाद बड़ा ऐलान करने जा रही है, क्या इसका असर आने वाले समय में पूरे देश में दिखाई देगा। क्या राहुल गांधी वोट चोरी के बाद एसआईआर को अपना मुद्दा बनाने जा रहे है।

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