सावन में शिवभक्ति का विशेष रंग, मथुरा में भूतेश्वर महादेव कोतवाल के रूप में विराजमान
शिवालयों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है, लेकिन श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा में सावन का नजारा कुछ अलग ही होता है।

4पीएम न्यूज नेटवर्क: सावन का पावन महीना शुरू होते ही देशभर में भगवान शिव की भक्ति की गूंज सुनाई देने लगती है। शिवालयों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है, लेकिन श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा में सावन का नजारा कुछ अलग ही होता है।
यहां सावन केवल शिव की पूजा का महीना नहीं, बल्कि एक विशेष आध्यात्मिक अनुभव है, क्योंकि इस नगरी में स्वयं भगवान भोलेनाथ कोतवाल के रूप में विराजमान हैं। मथुरा, जहां हर गली में “राधे-राधे” की मधुर ध्वनि गूंजती है, वहीं इस नगरी की सुरक्षा का भार भगवान शिव ने अपने ऊपर लिया हुआ है। भूतेश्वर महादेव के रूप में वे यहां के कोतवाल माने जाते हैं। जैसे ही सावन की शुरूआत होती है, पूरे शहर का वातावरण शिवमय हो जाता है। एक ओर जहां श्रीकृष्ण और राधारानी के जयकारे लगते हैं, वहीं दूसरी ओर “बोल बम” और “हर-हर महादेव” के नारे भी गूंजने लगते हैं।
भूतेश्वर महादेव मंदिर की विशेषता:
मथुरा के इस प्राचीन शिव मंदिर की महिमा का बखान सदियों से किया जा रहा है। भूतेश्वर महादेव मंदिर को नगर का रक्षक माना जाता है और यह मंदिर भक्तों के लिए एक आस्था का केंद्र बना हुआ है। सावन मास के दौरान यहां विशेष पूजन, रुद्राभिषेक और शिवभक्तों की कतारें देखने को मिलती हैं।
भक्ति और आस्था का संगम
श्रावण मास में जब हरियाली और बारिश की बूंदों के साथ भक्तिभाव चरम पर होता है, तब मथुरा नगरी एक अलौकिक छटा बिखेरती है। यहां कृष्ण भक्ति और शिव भक्ति का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। श्रद्धालु न केवल कान्हा के दर्शन करते हैं, बल्कि नगर के कोतवाल भूतेश्वर महादेव के दर्शन कर खुद को धन्य मानते हैं।
श्रीकृष्ण की नगरी के रक्षक, भूतेश्वर महादेव
उत्तर प्रदेश के मथुरा शहर के भूतेश्वर चौराहे पर स्थित यह मंदिर सिर्फ एक शिवालय नहीं, बल्कि श्रीकृष्ण की नगरी का रक्षक स्थल माना जाता है. मान्यता है कि जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था और उन्होंने कंस का वध किया, तब उन्होंने मथुरा और बृजवासियों की रक्षा के लिए भगवान शिव को इस नगरी का कोतवाल नियुक्त किया. तभी से भोलेनाथ यहां भूतेश्वर महादेव के रूप में विराजमान हैं.
मंदिर की प्राचीनता और रहस्य
इस मंदिर को लेकर विभिन्न मान्यताएं प्रचलित हैं. कुछ इतिहासकार और श्रद्धालु इसे लगभग 400-500 वर्ष पुराना मानते हैं, जबकि कई लोगों का दावा है कि यह मंदिर 2000 वर्षों से भी अधिक पुराना है. तारकासुर नामक राक्षस ने यहीं भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी.
भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा न केवल वैष्णव परंपरा का केंद्र है, बल्कि यह नगरी भगवान शिव की विशेष उपस्थिति के कारण भी धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। मथुरा के भूतेश्वर चौराहे पर स्थित भूतेश्वर महादेव मंदिर केवल एक शिवालय नहीं, बल्कि इस नगरी का रक्षक स्थल माना जाता है। जनमान्यता है कि भगवान शिव स्वयं यहां कोतवाल के रूप में विराजमान हैं।
भगवान शिव को कोतवाल क्यों माना जाता है?
धार्मिक मान्यता के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का वध कर मथुरा को उसके अत्याचारों से मुक्त कराया, तब उन्होंने नगरवासियों की सुरक्षा हेतु भगवान शिव को मथुरा का रक्षक नियुक्त किया। तभी से भोलेनाथ भूतेश्वर महादेव के रूप में इस नगरी की रक्षा कर रहे हैं। यहां के श्रद्धालु मानते हैं कि जब तक कोतवाल भूतेश्वर के दर्शन न कर लिए जाएं, तब तक मथुरा की यात्रा अधूरी मानी जाती है। मंदिर की प्राचीनता और रहस्य भूतेश्वर महादेव मंदिर को लेकर कई धार्मिक और ऐतिहासिक मान्यताएं प्रचलित हैं। कुछ इतिहासकारों और स्थानीय श्रद्धालुओं का मानना है कि यह मंदिर लगभग 400-500 वर्ष पुराना है। वहीं, कई लोगों का दावा है कि इसकी स्थापना 2000 वर्षों से भी अधिक पहले हुई थी।
पूजा का विशेष महत्व
सावन मास में इस मंदिर में विशेष पूजा और रुद्राभिषेक होते हैं. श्रद्धालु शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, चंदन और दूध चढ़ाकर भगवान से अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने की प्रार्थना करते हैं. मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से यहां आराधना करता है, उसकी हर मनोकामना अवश्य पूरी होती है.


