वोट चोरी पर अब तक का सबसे बड़ा खुलासा, सीसीटीवी नष्ट करने के पीछे किसका हाथ?

क्या चुनाव आयोग ने कोर्ट रूम में वोट चोरी कबूल कर ली है? क्या कोर्ट में चुनाव आयोग ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को सही बता दिया है? क्या चुनाव आयोग ने जानबूझकर कर सीसीटीवी फुटेज को डिलीट किया है?

4पीएम न्यूज नेटवर्क: क्या चुनाव आयोग ने कोर्ट रूम में वोट चोरी कबूल कर ली है? क्या कोर्ट में चुनाव आयोग ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को सही बता दिया है? क्या चुनाव आयोग ने जानबूझकर कर सीसीटीवी फुटेज को डिलीट किया है?

जब से मोदी-शाह ने सत्ता की कमान संभाली है इस देश के हर संस्थान को उन्होंने अपने कब्जे में कर लिया हैै। लेकिन अब समझिये कि ये खेल ज्यादा दिन तक चलने वाला नहीं है। क्योंकि बहुत जल्द मोदी शाह का असली चेहरा सबके सामने आनी वाला है। गोदी मीडिया जो मोदी शाह को हर आरोपों को ये कहकर खारिज कर देती थी कि वो चुनाव जीत जाते हैं, उसपर से भी पर्दा उठने वाला है। क्योंकि मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार जो प्रेस कॉन्फ्रेंस में आकर बड़ी-बड़ी बातें करते थे, वह अब कोर्ट रूम में अपनी गलतियां मान चुके हैं।

दरअसल, कोर्ट में एक याचिका के जरिये चुनाव आयोग से एक अहम सवाल पूछा गया था, जिसका जवाब देकर चुनाव आयोग बुरी तरह फंस गया है। जिसके बाद अब ज्ञानेश कुमार पर ही नहीं बल्कि पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार पर भी बड़ी गाज गिर सकती है। वहीं इसको लेकर अब राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर बड़ा हमला बोला है। तो चुनाव आयोग ने ऐसा क्या कह दिया है कोर्ट रूम जिसके बाद सियायी हलचल तेज हो गई है बताएंगे आपको इस वीडियो में।

दोस्तों आपकों ज्ञानेश कुमार का वो बयान तो याद ही होगा जिसमें वह कह रहे थे की क्या हमें वोटिंग करने आईं अपनी माताओं बहनों का सीसीटीवी फुटेज साझा करना चाहिए क्या? (बाइट) उनके इस बयान से दो बाते सामने आई थी, पहली ये कि चुनाव आयोग के पास सीसीटीवी फुटेज है। और दूसरी ये कि वो किसी के साथ साझा नहीं करना चाहते हैं। लेकिन अब ये साबित हो गया है कि उस दिन भी ज्ञानेश कुमार देश के सामने झूठ बोल रहे थे। क्योंरिू उवे का आयोग ने एक याचिका जवाब देते हुए एकदम अलग बात बताई है।

आप हिंदुस्तान में छपी इस रिपोर्ट को देखिए। इस रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2024 में हुए लोकसभा चुनावों के सीसीटीवी को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। इस याचिका में चुनाव के दौरान मतदान केंद्रों के सभी वीडियो और सीसीटीवी को संरक्षित करने का अनुरोध किया गया था। याचिका पर सुनवाई में कोर्ट में चुनाव आयोग ने बताया कि सभी सीसीटीवी फुटेज और सामग्री को नियमों के अनुसार नष्ट कर दिया गया है। जी हां, चुनाव आयोग (ईसीआई) ने दिल्ली हाईकोर्ट को खुद बताया है कि साहब हमने 2024 लोकसभा चुनाव की सीसीटीवी फुटेज नष्ट कर दी है। अब हमसे कोई सीसीटीवी फुटेज न मांगे।

जस्टिस मिनी पुष्करणा ने चुनाव आयोग के इस बयान को रिकॉर्ड पर लिया है। आपको बता दें कि अदालत वकील महमूद प्राचा द्वारा दायर एक आवेदन पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान देश भर के मतदान केंद्रों के अंदर की फुटेज मांगी गई थी। जिसके जवाब में चुनाव आयोग का ये सीसीटीवी फुटेज को नष्ट करने की बात कबूली है। लेकिन ऐसे में सवाल उठा रहा है कि आखिर चुनाव आयोग ने ऐसा क्यों किया। क्या चुनाव आयोग के पास हार्ड डिस्क की कमी है? क्या चुनाव आयोग एक सीसीटीवी फुटेज तक संभाल कर नहीं रख सकता है? और चुनाव आयोग फुटेज बनाता ही क्यों है जब उसको नष्ट ही करना होता है?

आप सोचिए, हर न्यूज़ चैनल के पास अपने सालों के प्रोग्राम के फुटेज आरकाईव में सेव रहते हैं। लेकिन चुनाव आयोग के पास मतदान के फुटेज को सेफ रखने की जगह नहीं है। जब कोर्ट में चुनाव आयोग की तरफ से ऐसे बयान सामने आते हैं तो जाहिर है चुनाव आयोग पर वोट चोरी का आरोप लगाने वाली पार्टियों का शक और बढ़ेगा। यही कारण है कि अब राहुल गांधी ने इसको लेकर चुनाव आयोग पर हमला बोला है।

नेता विपक्ष राहुल गांधी ने इसे धांधली बताते हुए वोट चोरी से जोड़ा है। राहुल गांधी ने एक्स पर लिखा है कि, “BJP के लाखों लोग खुलेआम अलग-अलग राज्यों में घूम-घूमकर वोट डालते हैं। और इस चोरी को छुपाने के लिए सारे सबूत मिटा दिए जाते हैं। BJP और EC मिलकर खुलेआम vote चोरी कर रहे हैं। लोकतंत्र की हत्या लाइव चल रही है।” अब ज़रा सोचिए, जो चुनाव आयोग कल तक खुद कह रहा था कि हमारे पास फुटेज है, आज वही कोर्ट में जाकर साफ-साफ कबूल कर रहा है कि “वो फुटेज अब हमारे पास नहीं है, हमने उसे नष्ट कर दिया।”

यानी सच्चाई कोर्ट रूम में खुद उनके बयान से बाहर आ गई। जिस आयोग को लोकतंत्र का पहरेदार कहा जाता है, वही आज इस देश के सबसे बड़े लोकतांत्रिक अपराध का गवाह बन गया है। और यह कबूलनामा किसी पत्रकार ने नहीं, किसी विपक्षी नेता ने नहीं, बल्कि खुद चुनाव आयोग ने अदालत में दिया है। वकील महमूद प्राचा ने जब चुनाव आयोग से मांग की कि देशभर के डीईओ यानी जिला निर्वाचन अधिकारियों को आदेश दिया जाए कि वे चुनाव की पूरी प्रक्रिया के सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध कराएं और जब तक मामला अदालत में लंबित है, तब तक फुटेज को नष्ट न किया जाए।

यह एक कानूनी तौर पर बेहद जायज़ आग्रह था। लेकिन चुनाव आयोग ने अदालत को बताया कि साहब, “वो फुटेज अब दिल्ली के डीईओ के पास नहीं है, और उसे पहले ही नष्ट किया जा चुका है।” अब सवाल ये उठता है कि इतनी जल्दी क्या थी? किसके आदेश पर ये फुटेज मिटाई गई? जब अदालत में मामला चल ही रहा था, तो किसने आयोग को यह अधिकार दिया कि वह सबूतों को खत्म कर दे?

तो आपको बता दें कि जून में ज्ञानेश कुमार ने एक गुप्त आदेश जारी किया था। इस आदेश के मुताबिक, राज्य चुनाव अधिकारियों को कहा गया था कि अगर 45 दिनों के भीतर चुनाव परिणामों को अदालत में चुनौती नहीं दी जाती है, तो सीसीटीवी, वेबकास्टिंग और वीडियो फुटेज को नष्ट कर दिया जाए। सुनने में ये आदेश “तकनीकी प्रक्रिया” जैसा लगता है, लेकिन इसके पीछे की मंशा बेहद गहरी थी। आयोग ने कहा था कि यह कदम “दुर्भावनापूर्ण नैरेटिव” को रोकने के लिए उठाया गया है, यानी जनता सवाल न पूछे, विपक्ष सबूत न मांगे, कोई यह न देख सके कि मतदान केंद्रों के अंदर क्या हुआ था।

लेकिन ज्ञानेश जी ने आखिर ऐसा आदेश क्यों दि या तो सामने आया कि पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में जब कांग्रेस ने एक याचिका दायर कर वोटिंग के दिन की सीसीटीवी फुटेज मांग ली थी। तब अदालत ने जब चुनाव आयोग से कहा कि फुटेज दी जाए, तभी से आयोग के माथे पर पसीना आ गया। और ठीक उसी के बाद ज्ञानेश जी यह नियम लिया है कि 45 दिन के बाद फुटेज डिलीट कर दी जाएगी। अब क्या ये किसी संयोग से हुआ? बिल्कुल नहीं। ये एक सोची-समझी चाल थी ताकि भविष्य में कोई भी अदालत या विपक्ष इन फुटेज का इस्तेमाल कर न सके।

और जब राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस पूरे मुद्दे पर सवाल उठाया, तब मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने महिलाओं की आड़ लेकर कहा था कि “हम अपनी मां, बहनों की फुटेज कैसे दे सकते हैं?” अब ज़रा सोचिए, वोट डालने आई महिलाओं की प्राइवेसी का हवाला देकर आयोग ने अपने ऊपर लगे आरोपों से पल्ला झाड़ लिया। लेकिन असली सच्चाई अब सामने है कि आयोग के पास वो फुटेज है ही नहीं, क्योंकि उसे मिटा दिया गया है। तो फिर ज्ञानेश कुमार ने झूठ क्यों बोला? सोशल मीडिया पर उस बयान का खूब मज़ाक उड़ा था, लेकिन अब वो मज़ाक एक गंभीर अपराध में बदल चुका है। क्योंकि अगर चुनाव आयोग यह मान चुका है कि उसने फुटेज डिलीट की है, तो इसका मतलब यह भी हुआ कि उसने अपने ऊपर लगे सारे आरोपों की जांच से खुद को बचाने के लिए सबूतों को मिटा दिया। और यही बात अब अदालत में भी दर्ज है।

वकील महमूद प्राचा ने जब कोर्ट में कहा कि ये आदेश उनकी याचिका को नाकाम करने और सबूतों को खत्म करने की साजिश है, तो अदालत ने भी माना कि मामला गंभीर है। लेकिन चुनाव आयोग ने चालाकी दिखाते हुए कहा कि प्राचा ने हमारे नए निर्देशों को चुनौती ही नहीं दी। और इसी बहाने अदालत ने आवेदन का निपटारा कर दिया। यानि खेल पूरा हुआ, पर्दा गिर गया, और लोकतंत्र फिर से हार गया। अब राहुल गांधी का गुस्सा लाजमी है। क्योंकि हमने देखा कि पिछले दिनों ऐसे कई लोग सामने आए जो भाजपा के ही थे और वो अलग अलग राज्यों में वोटिंग करके फोटो डाल चुके हैं। सोचिए अगर चुनाव आयोग सीसीटीवी फुटेज दे देता तो ऐसे कितने और लोग पकड़े जाते लेकिन ज्ञानेश कुमार को अपनी कुर्सी प्यारी है।

वह मोदी शाह के कहने पर आयोग के नियमों में ही बदलाव कर देते हैं। अब इसे वोट चोरी न कहें तो क्या कहा जाए? लोकतंत्र का मतलब सिर्फ वोट डालना नहीं होता, बल्कि उस वोट की हिफाज़त करना भी उतना ही जरूरी होता है। और जब वो हिफाज़त करने वाला ही सबूतों को मिटा दे, तो कितने दिनों तक हम खुद को लोकतांत्रिक देश का वासी मान सकते हैं।

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