मुद्दा छीना लेकिन बना रहेगा हथियार, जातिगत जनगणना पर कैसे अटैकिंग मोड में रहेगी कांग्रेस?

नई दिल्ली। जातिगत जनगणना के सहारे कांग्रेस अपनी खोई हुई सियासी जमीन को वापस पाने की कवायद में जुटी हुई थी. राहुल गांधी ने पिछले पांच सालों में कोई भी मंच नहीं छोड़ा, जहां जातिगत जनगणना की मांग न उठाई हो. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में जातिगत जनगणना कराने का फैसला कर सभी को चौंका दिया. माना जा रहा है कि मोदी सरकार ने बीजेपी के खिलाफ राहुल गांधी की तरफ से चले जा रहे सबसे बड़े ‘ब्रह्मास्त्र’ को छीन लिया है, लेकिन कांग्रेस अपने दावे को जातिगत जनगणना पर मजबूत बनाए रखने की कवायद में जुट गई है.
मोदी सरकार के इस फैसले के बाद राहुल गांधी ने खुद प्रेस कॉफ्रेंस करके कहा कि यह हमारा विजन था और हम इसे सपोर्ट करते हैं. हमने सरकार पर पर्याप्त दबाव डाला है ताकि वह कार्रवाई करें. 11 साल बाद केंद्र सरकार ने अचानक जातिगत जनगणना की घोषणा की है. यह सामाजिक न्याय की दिशा में पहला कदम है. हर कांग्रेस कार्यकर्ता और सामाजिक न्याय के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता बधाई के पात्र हैं. इस तरह कांग्रेस जातिगत जनगणना पर अपना दावा मजबूत करने के साथ-साथ पूरी तरह से पुख्ता रखने की रणनीति के लिए सक्रिय हो गई है.
जातीय जनगणना को राहुल गांधी ने अपनी पार्टी के लिए सबसे अहम मुद्दा बना दिया था. बीजेपी के खिलाफ भी इसे अपनी नैरेटिव में सेंट्रल थीम बना दिया था, उस मुद्दे को प्रधानमंत्री ने भले ही अमलीजामा पहना दिया हो, लेकिन कांग्रेस किसी भी सूरत में अपना क्लेम नहीं छोडऩा चाहती. जातिगत जनगणना पर अपना दावा मजबूत करने के लिए कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) की शुक्रवार को बैठक बुलाई गई है, जिसमें इस मुद्दे पर पार्टी की स्थिति और भविष्य की दिशा तय की जाएगी. कांग्रेस की कोशिश है कि मोदी सरकार इसका श्रेय न ले जा सके.
कांग्रेस की सीडब्ल्यूसी की बैठक न केवल जाति जनगणना के डिजाइन और इसे लागू करने के तरीके पर चर्चा करेगी, बल्कि यह भी तय करेगी कि पार्टी इस मुद्दे पर अपनी पहल को बनाए रखे. राहुल गांधी और अन्य वरिष्ठ नेता इस बैठक में शामिल होंगे, जिसमें कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से भी जातीय जनगणना के विषय पर विचार-विमर्श किया जाएगा.
कांग्रेस के अंदर इस बात पर जोर है कि जनता को यह बताया जाए कि मोदी सरकार का यह फैसला कांग्रेस के लगातार दबाव का नतीजा है. कांग्रेस अब इस मुद्दे पर अपनी नैतिक जीत को भुनाने की कोशिश करेगी, ताकि ओबीसी और अन्य वंचित समुदायों के बीच अपनी पैठ बढ़ा सके. कांग्रेस के नेता कह भी रहे हैं कि जाति जनगणना हमारी लंबे समय से चली आ रही मांग है और बीजेपी तैयार नहीं थी. कांग्रेस यह बताने की कोशिश में है कि राहुल गांधी ने लगातार सडक़ से संसद तक जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाकर मोदी सरकार को मजबूर किया है.
मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना का ऐलान किया है, लेकिन सम सीमा तय नहीं की है. इस तरह से कांग्रेस जातिगत जनगणना को सम सीमा से कराने के लिए दबाव बनाने की कवायद में है. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि राहुल गांधी जी ने बुधवार को कहा था कि हेडलाइन तो दी गई, लेकिन इसमें डेडलाइन नहीं है. हम सब जानते हैं कि ऐसे काम में नरेंद्र मोदी कितने माहिर हैं. इसी को देखते हुए राहुल गांधी जी ने कहा है कि सरकार जातिगत जनगणना को लेकर पूरा रोडमैप सामने रखे. हम 6 साल से जनगणना का इंतजार कर रहे हैं और इससे पहले तो जाति शब्द का कोई जिक्र नहीं था, लेकिन कल अचानक जातिगत जनगणना की बात कह दी गई.
जातिगत जनगणना का फैसला होने के साथ ही कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ नया मुद्दा तलाश लिया है. इसी जातिगत जनगणना से ही जुड़ा है. जातिगत जनगणना के आंकड़े आने के साथ ही आरक्षण की मांग तेज पकड़ सकती है. इस बात को कांग्रेस बखूबी तौर पर जानती है. इसीलिए आरक्षण की 50 फीसदी लिमिट को खत्म करने को लेकर आंदोलन चलाने की प्लानिंग कर रही है. राहुल गांधी ने साफ कहा है कि हम आरक्षण की 50 फीसदी लिमिट को हटाने के लिए दबाव बनाएंगे. इस तरह कांग्रेस इस मुद्दे को अपने सामाजिक न्याय के एजेंडे के केंद्र में रखना चाहती है. कांग्रेस ने यह भी स्पष्ट किया कि वह जाति जनगणना को केवल आरक्षण तक सीमित नहीं रखना चाहती, बल्कि इसका इस्तेमाल देश के संस्थानों और शक्ति संरचना में विभिन्न समुदायों की भागीदारी को समझने के लिए करना चाहती है.
जाति जनगणना की मांग कांग्रेस के सामाजिक न्याय एजेंडे का भी केंद्र बिंदु रही है, ताकि ओबीसी तक पहुंच बनाई जा सके. कांग्रेस के अंदर यह आशंका है कि मोदी ने एक झटके में उसके एक अहम मुद्दे को छीन लिया है. जाति जनगणना कराने के अपने फैसले की घोषणा करते हुए सरकार ने विपक्षी दलों पर इसे ‘राजनीतिक हथियार’ के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप लगाया. अब सवाल यह है कि जाति जनगणना पर कांग्रेस ने जो राजनीतिक गेंद उछाली थी, क्या उस पर बीजेपी अपना कब्जा जमाने में कामयाब रहेगी या फिर कांग्रेस अपने दावे को पुख्ता तौर पर रख पाएगी.
1951 में जाति जनगणना पर रोक लगाने और मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने में देरी ने कांग्रेस की छवि ह्रक्चष्ट-विरोधी बना दी थी, लेकिन राहुल गांधी धीरे-धीरे इस छवि को सुधार रहे हैं. बीते दिनों उन्होंने जाति जनगणना को लेकर जितने मजबूत तरीके से अपनी बात रखी उसके बाद उनकी छवि एक सामाजिक न्याय समर्थक नेता के तौर पर बन रही है, खासकर युवाओं और पिछड़े वर्गों में. इसीलिए कांग्रेस के कार्यकर्ता और नेता इसे ‘राहुल की जीत’ बताकर प्रचार कर रहे हैं.
कांग्रेस की कोशिश है कि राहुल गांधी इस मुद्दे को लगातार मजबूती से उठाते रहे और बीजेपी पर दबाव बनाते रहे ताकि उनके लिए सामाजिक न्याय के एजेंडे को पुनर्जीवित रखने और श्रेय लेने में आसानी होगी. सडक़ से लेकर संसद तक राहुल अपने हर भाषण में जातीय जनगणना कराने की मांग करते रहे. राहुल गांधी ने अपनी यह मांग नहीं छोड़ी और उन्होंने कई राज्यों में संविधान बचाओ सम्मेलन आयोजित करके जातीय जनगणना की मांग को लगातार उठाया और संसद में भी यहां तक कह दिया कि हम इसी लोकसभा में सरकार से जातीय जनगणना करवा कर मानेंगे.
अब जब मोदी सरकार जातिगत जनगणना कराने के लिए तैयार हो गई है तो उसका श्रेय बीजेपी को कैसे ले लेने दे. कांग्रेस राहुल और बीजेपी नेताओं के पुराने भाषणों का हवाला देकर जातिगत जनगणना फैसले को अपने दबाव का नतीजा बता रही है तो बीजेपी उसे 77 सालों तक न कराए जाने का ताना देकर श्रेय लेने की कोशिश में है.
ऐसे में राहुल गांधी ने जातीय जनगणना के आगे की बात शुरू कर दी है. उन्होंने निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण संबंधी संवैधानिक प्रावधानों 15(5) को लागू करने और आरक्षण की 50 फीसदी अधिकतम सीमा को बढ़ाने की मांग शुरू कर दी है.

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