समाजवाद से दंभवाद तक का सफर

  • सरकारी कार्यक्रम में महिला डाक्टर के चेहरे से हिजाब खींचने की कोशिश
  • मुस्लिम समुदाय में उबाल, विपक्ष ने मांगा इस्तीफा
  • आरजेडी ने उठाये मानसिकता पर सवाल

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
पटना। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर चर्चा में है। उन पर गंभीर आरोप लग रहे हैं। विपक्ष ने उन्हें तत्काल पद से त्यागपत्र देने की बात कही है। दरअसल सीएम नीतीश कुमार पटना में नियुक्ति पत्र बांटने के एक कार्यक्रम के दौरान एक मुस्लिम महिला डाक्टर के हिजाब हटाने को लेकर विवादों में घिर गए हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद आगा रुहुल्ला मेंहदी ने इसकी कड़ी निंदा की। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा सार्वजनिक रूप से एक मुस्लिम महिला के बुर्के को खींचने जैसा व्यवहार न तो स्वीकार्य है और न ही इसका कोई औचित्य है। वही मुस्लिम धर्मगुरूओं और दूसरे अन्य कई राजनीतिक दलों ने भी इस घटना की घोर निंदा की है।

नीतीश कुमार की सबसे बड़ी विफलता

नीतीश कुमार की सबसे बड़ी विफलता यह नहीं है कि उन्होंने पाला बदला। भारतीय राजनीति में यह कोई नई बात नहीं है। उनकी विफलता यह है कि उन्होंने अपने नैतिक ब्रांड को गिरवी रख दिया। एक समय था जब नीतीश कुमार का नाम लेते ही अल्पसंख्यक सुरक्षा, सामाजिक न्याय और संतुलित शासन अपने आप जुड़ जाते थे। आज उनका नाम लेते ही असहज चुप्पी सफाई की जरूरत और विपक्ष के तीखे सवाल साथ आते हैं। बीजेपी के साथ सत्ता में बने रहने की कीमत सिर्फ सीटों से नहीं चुकाई जाती। यह कीमत भाषा, बाडी लैंग्वेज और प्राथमिकताओं में भी चुकानी पड़ती है। और नीतीश कुमार आज उसी कीमत को चुका रहे हैं।

महिला विरोधी हैंनीतीश कुमार

जमीयत दावातुल मुस्लिमीन के संरक्षक और देवबंदी उलेमा मौलाना कारी इसहाक गोरा ने इस पूरे मामले को शर्मनाक और निंदनीय बताया है। मौलाना का कहना है कि यह सिर्फ एक महिला का नहीं बल्कि पूरे देश की महिलाओं के सम्मान और निजता से जुड़ा गंभीर मुद्दा है। मौलाना कारी इसहाक गोरा ने कहा कि किसी भी महिला के पहनावे में उसकी मर्जी के बिना दखल देना पूरी तरह गलत है। महिला क्या पहनेगी यह उसका निजी और संवैधानिक अधिकार है। नकाब हो बुर्का हो साड़ी हो या कोई और पहनावा किसी को भी यह अधिकार नहीं है कि वह जबरदस्ती किसी महिला की निजता को तोड़े। उन्होंने कहा कि जब ऐसी हरकत सत्ता में बैठे किसी बड़े नेता की ओर से होती है तो मामला और भी गंभीर हो जाता है।

क्या इतने दयनीय हो गये नीतीश!

राष्ट्रीय जनता दल ने इस घटना को लेकर मुख्यमंत्री के बर्ताव पर सवाल उठाया है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट के जरिये आरजेडी ने लिखा है कि क्या हो गया है नीतीश जी कोड़ मानसिक स्थिति बिल्कुल ही अब दयनीय स्थिति में पहुंच चुकी है या नीतीश बाबू अब 100 फीसदी संघी हो चुके हैं। इस घटना से जुड़ा एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। वीडियो में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कार्यक्रम के दौरान मंच पर उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे के साथ दिख रहे हैं। गौरतलब है कि नीतीश कुमार जब उक्त डाक्टर के हिजाब को उनके चेहरे से हटाने की कोशिश कर रहे थे तब उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने उन्हें रोकने की असफल कोशिश की थी।

सरकारी कार्यक्रम दूर तक संदेश

यह विवाद एक सरकारी कार्यक्रम के दौरान हुआ जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री सचिवालय के संवाद हॉल में 1,283 आयुष डॉक्टरों (आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक और यूनानी) को नियुक्ति पत्र बांटे। इस कार्यक्रम के बाद सीएम नीतीश कुमार ने अपने ऑफिशियल एक्स अकाउंट पर पोस्ट किया जिसमें उन्होंने कहा कि आज मैंने संवाद हॉल में 1,283 आयुष डॉक्टरों के लिए नियुक्ति पत्र वितरण समारोह में भाग लिया। यह कदम हेल्थकेयर सेक्टर में नई प्रतिभाओं को अवसर प्रदान करेगा और पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों को और मजबूत करेगा। सभी नए नियुक्त आयुष डॉक्टरों को मेरी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। अभी तक, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार या बिहार सरकार की ओर से विपक्ष द्वारा लगाए गए आरोपों पर कोई आधिकारिक जवाब नहीं आया है।

छिपी मानसिकता या सत्ता की मजबूरी?

यह कहना आसान है कि नीतीश कुमार ने अजीब मानसिकता ओढ़ ली है। लेकिन सच्चाई शायद इससे ज्यादा कड़वी है। नीतीश कुमार ने वैचारिक छलांग नहीं लगाई है उन्होंने समर्पण किया है। राजनीति में जोर भाषणों पर नहीं संकेतों पर होता है। क्या कहा गया है उससे ज्यादा अहम होता है क्या नहीं कहा गया। अगर किसी सार्वजनिक मंच पर महिला की धार्मिक पहचान को लेकर असहजता दिखाई देती है और सत्ता की ओर से कोई स्पष्टता नहीं आती तो वह मौन खुद एक बयान बन जाता है। और राजनीति में मौन सबसे खतरनाक भाषा होती है। हिजाब यहां सिर्फ कपड़े का टुकड़ा नहीं है। यह सवाल है कि क्या राज्य नागरिक को उसकी पहचान के साथ स्वीकार करता है या शर्तों के साथ? अगर आरोप सही हैं और इस पर जांच होनी ही चाहिए तो यह घटना बिहार की राजनीति में एक खतरनाक मोड़ का संकेत देती है। क्योंकि अब बहस कानून की नहीं सहजता की हो रही है। और जब सत्ता तय करने लगे कि कौन सी पहचान सहज है और कौन सी असहज तब संविधान पीछे छूटने लगता है।

मॉफी मांगे नीतीश कुमार

संघ की राजनीति में जोर भाषणों पर नहीं संकेतों पर होता है। और नीतीश कुमार के जरिये संकेत पारित किये जा चुके हैं कि सरकारों को किस दृष्टिकोण पर आगे बढऩा होगा। बिहार से शुरू हुए हिजाब बमचक का असर पूरे भारत की राजनीति पर पडऩा लाजमी है। आरजेडी/सपा और कश्मीरी सांसद सहित पूरे भारत के मुस्लिम धर्मगुरूओं द्वारा सीएम नीतीश कुमार के इस कृत्य पर आक्रोश भरे बयान आना शुरू हो गये हैं। नीतीश कुमार के इस कृत्य को हिजाब कंट्रोवर्सी के साथ महिलाओं की अस्मिता और सम्मान से जोड़कर भी देखा जा रहा है।

समस्या बुद्धि की नहीं, बेचैनी की है

नीतीश कुमार आज उस मोड़ पर हैं जहां उन्हें न पूरी तरह बीजेपी भरोसे में लेती है और न ही पुराने सहयोगी उन्हें अपना मानते हैं। वह सत्ता में हैं लेकिन नैरेटिव से बाहर। यही स्थिति किसी भी नेता को असहज बनाती है। जब सत्ता बचाने की प्राथमिकता बन जाती है तब संवैधानिक मूल्यों की रक्षा एक वैकल्पिक विषय बन जाती है। और यही वह बिंदु है जहां से नीतीश कुमार की राजनीति आज फिसलती दिख रही है।

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