गुजरात लॉबी का जादू खत्म, राज्यसभा में BJP की करारी हार, एक सीट पर सिमटी!
गुजरात में बीजेपी को बड़ा झटका लगा है... राज्यसभा चुनाव में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा है... कभी मोदी-शाह की मजबूत पकड़...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः जम्मू-कश्मीर की राजनीति में एक बड़ा मोड़ आ गया है.. अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद पहली बार हुए राज्यसभा चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने चार में से तीन सीटें जीत लीं.. जबकि भारतीय जनता पार्टी को सिर्फ एक सीट मिली.. यह नतीजा एनसी की मजबूत पकड़ और बीजेपी की सीमित पहुंच को दर्शाता है.. एनसी के उम्मीदवार चौधरी मोहम्मद रमजान, सजाद किचलू और शम्मी ओबेरॉय ने जीत हासिल की.. वहीं बीजेपी के सत पॉल शर्मा ने चौथी सीट पर कब्जा जमाया.. यह चुनाव जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की दिशा में एक कदम माना जा रहा है.. लेकिन साथ ही स्थानीय दलों की ताकत भी उजागर हुई है..
यह चुनाव न सिर्फ विधानसभा की ताकत का आईना है.. बल्कि अनुच्छेद 370 के हटने के बाद की राजनीतिक हकीकत को भी दिखाता है.. एनसी, जो जम्मू-कश्मीर की सत्ताधारी पार्टी है.. उसने कांग्रेस, पीडीपी और अन्य छोटे दलों के समर्थन से यह जीत हासिल की.. बीजेपी को अपनी एकजुट वोटिंग से ही एक सीट मिली..
जम्मू-कश्मीर में राज्यसभा चुनाव का इतिहास पुराना है.. लेकिन 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद यह पहला मौका था.. जब यूनियन टेरिटरी की विधानसभा ने ऊपरी सदन के सदस्य चुने.. अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश बन गया था.. और राज्यसभा में इसकी कोई सीट नहीं बची थी.. वहीं अब, 2025 में चार सीटें खाली होने पर चुनाव हुए.. ये सीटें छह साल के लिए हैं.. और इन्हें भरने के लिए विधानसभा के 90 सदस्यों ने वोट डाले..
चुनाव 24 अक्टूबर को श्रीनगर के विधानसभा भवन में सुबह 9 बजे शुरू हुआ.. और शाम 4 बजे समाप्त हो गया.. तीन पोलिंग बूथ लगाए गए थे.. और वोटिंग गुप्त थी.. कुल 54 विधायक वोटिंग के लिए उपलब्ध थे.. क्योंकि कुछ सीटें खाली हैं.. यह चुनाव जम्मू-कश्मीर को मुख्यधारा में लाने का प्रतीक था.. लेकिन राजनीतिक दलों के लिए यह अपनी ताकत साबित करने का मौका भी था.. एनसी के पास विधानसभा में बहुमत है.. जबकि बीजेपी के पास करीब 29 विधायक हैं.. बाकी सीटें अन्य दलों और निर्दलीयों के पास हैं..
आपको बता दें कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद 2024 के विधानसभा चुनावों में एनसी-कांग्रेस गठबंधन ने जीत हासिल की थी.. और उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने.. यह राज्यसभा चुनाव उसी जीत का एक्सटेंशन था.. बीजेपी ने इसे ‘गुजरात लॉबी’ का जिक्र करते हुए अपनी हार को कश्मीरी राजनीति की साजिश बताया.. लेकिन तथ्य कुछ और कहते हैं..
चुनाव आयोग ने दोपहर में ही अनौपचारिक नतीजे घोषित कर दिए.. पहली सीट पर एनसी के चौधरी मोहम्मद रमजान निर्विरोध चुने गए.. वे जम्मू के वरिष्ठ नेता हैं.. और किसान मुद्दों पर सक्रिय रहे हैं.. दूसरी सीट सजाद किचलू को मिली.. जो कश्मीर घाटी के प्रभावशाली चेहरे हैं.. तीसरी सीट पर शम्मी ओबेरॉय ने जीत दर्ज की.. वे एनसी के युवा नेताओं में शुमार हैं और जम्मू क्षेत्र से हैं..
चौथी सीट पर सबसे रोमांचक मुकाबला हुआ.. यहां बीजेपी के सत पॉल शर्मा ने एनसी के इमरान नबी डार को 32-22 से हरा दिया.. कुल 54 वोटों में से शर्मा को 32 मिले.. जबकि डार को 22 वोट मिले.. बाकी वोट अमान्य या न्यूट्रल रहे.. यह बीजेपी की अनुशासित वोटिंग का नतीजा था.. क्योंकि उनके विधायकों ने एकजुट होकर वोट डाला.. एनसी को अन्य दलों का समर्थन मिला.. लेकिन इस सीट पर वे चूक गए..
ये नतीजे एनसी की कुल ताकत दिखाते हैं.. विधानसभा में एनसी के 42 विधायकों के अलावा कांग्रेस (6), पीडीपी (3), सीपीआई(एम) (1) और कुछ निर्दलीयों ने उनका साथ दिया.. बीजेपी के 29 विधायकों ने अपनी एक सीट सुरक्षित रखी.. कुल मिलाकर, एनसी को 80% सीटें मिलीं, जो उनकी राजनीतिक मजबूती का प्रमाण है..
एनसी ने इस चुनाव को ‘कश्मीर की आवाज’ के रूप में प्रचारित किया.. मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने खुद वोटिंग में हिस्सा लिया.. और पार्टी कार्यकर्ताओं को निर्देश दिए कि वे अनुशासन बनाए रखें.. एनसी ने अपने उम्मीदवारों को क्षेत्रीय संतुलन के साथ चुना.. जिसमें दो कश्मीर से और एक जम्मू से है.. यह रणनीति काम आई, क्योंकि जम्मू क्षेत्र में भी एनसी की पकड़ मजबूत हुई है..
बीजेपी की ओर से जम्मू को फोकस किया गया.. सत पॉल शर्मा जम्मू के पूर्व मंत्री हैं.. और स्थानीय मुद्दों पर सक्रिय है.. पार्टी ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ जैसे राष्ट्रीय एजेंडे को जोड़कर प्रचार किया.. लेकिन कश्मीरी मतदाताओं (विधायकों) को यह ज्यादा प्रभावित नहीं कर सका.. बीजेपी ने दावा किया कि उनकी एक सीट ‘गुजरात मॉडल’ की सफलता है.. लेकिन विपक्ष ने इसे ‘लॉबी’ का हार मान लिया.. वास्तव में बीजेपी के पास विधानसभा में तीन सीटें जीतने की पर्याप्त संख्या नहीं थी..
अन्य दल जैसे पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने एनसी का समर्थन किया.. क्योंकि वे अनुच्छेद 370 की बहाली के मुद्दे पर एकजुट हैं.. कांग्रेस ने भी गठबंधन के तहत वोट दिए.. यह गठबंधन 2024 विधानसभा चुनावों का विस्तार था.. जहां एनसी-कांग्रेस ने 49 सीटें जीतीं.. नतीजों के बाद एनसी मुख्यालय में जश्न का माहौल था.. उमर अब्दुल्ला ने एक्स पर पोस्ट किया कि एनसी के सभी उम्मीदवारों को बधाई.. यह जम्मू-कश्मीर की जनता की जीत है.. इमरान नबी डार को सांत्वना, पार्टी ने पूरी कोशिश की लेकिन आखिरी पल में धोखा मिला.. उन्होंने कहा कि अन्य अवसर आएंगे..
एनसी अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने इसे “कश्मीर की जीत” बताया.. और उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद भी हमारी जड़ें मजबूत हैं.. यह चुनाव दिखाता है कि दिल्ली की साजिशें नाकाम हो रही हैं.. बीजेपी की ओर से जम्मू-कश्मीर इकाई के अध्यक्ष रविंदर रैना ने कहा कि हमारी एक सीट जम्मू की आवाज है.. एनसी की जीत अस्थायी है.. आने वाले दिनों में हम मजबूत होंगे.. केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने इसे लोकतंत्र की जीत कहा.. लेकिन आंतरिक रूप से पार्टी निराश है..
जम्मू-कश्मीर का राज्यसभा इतिहास रोचक है.. 1950 से 2019 तक, यह राज्य था और चार राज्यसभा सदस्य भेजता था.. एनसी और पीडीपी जैसे दलों ने हमेशा मजबूत प्रतिनिधित्व रखा.. 2019 में अनुच्छेद 370 हटने पर मौजूदा सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो गया.. और जम्मू-कश्मीर राज्यसभा से गायब हो गया.. अब, 2025 में यह वापसी कर रहा है..
वहीं पिछले चुनावों में 2018 में एनसी ने दो सीटें जीतीं थीं.. अनुच्छेद 370 के बाद पहला विधानसभा चुनाव 2024 में हुआ.. जहां एनसी ने 42 सीटें हासिल की.. यह राज्यसभा जीत उसका लॉजिकल परिणाम है.. विशेषज्ञों का कहना है कि यह चुनाव 2029 के अगले चक्र को प्रभावित करेगा..
यह जीत एनसी को राज्यसभा में मजबूत आवाज देगी.. वे अनुच्छेद 370 बहाली, राज्य का दर्जा.. और कश्मीरी युवाओं के लिए नौकरियां जैसे मुद्दों पर बहस कर सकेंगे.. बीजेपी की एक सीट जम्मू के विकास पर फोकस रखेगी.. कुल मिलाकर, यह चुनाव केंद्र-राज्य संबंधों को मजबूत करेगा। लेकिन सवाल उठता है.. क्या बीजेपी अपनी ‘गुजरात लॉबी’ को मजबूत कर पाएगी.. विशेषज्ञ मानते हैं कि एनसी की जीत स्थानीय अस्मिता की जीत है.. आने वाले महीनों में विधानसभा सत्रों में यह असर दिखेगा..



