महाराष्ट्र में महायुति की राह नहीं आसान, नफरती राजनीति पर लगेगा विराम!
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों के लिए वोटिंग चल रही है.... महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री बाबा सिद्दीकी के बेटे और बांद्रा ईस्ट सीट से उम्मीदवार जीशान सिद्दीकी वोट डालने पहुंचे....
4पीएम न्यूज नेटवर्कः महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में प्रदेश की सभी दो सौ अट्ठासी विधानसभा सीटों पर चार हजार एक सौ छत्तीस उम्मीदवारों की किस्मत दांव पर लगी है….. और इन सभी के भाग्य का फैसला तेइस नवंबर को होगा… बता दें कि बीजेपी के अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन (महायुति) और कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन (महा विकास अघाड़ी) के बीच कांटे की टक्कर मानी जा रही है….. आपको बता दें कि महाराष्ट्र में जनता के सामने महायुति गठबंधन जिसमें (बीजेपी -शिवसेना शिंदे गुट और एनसीपी अजित पवार गुट) और महाविकास अघाड़ी गठबंधन( एनसीपी (एसपी) , शिवसेना (यूबीटी) और कांग्रेस ) में किसी एक को चुनने का ऑप्शन है….. अगर लोकसभा चुनावों के परिणामों पर एक नजर डालें तो ऐसा लगता है…. कि जनता महायुति से नाराज है…. पर लोकसभा चुनावों के बाद अरब सागर में बहुत पानी बह चुका है…. फिलहाल दोनों ही गठबंधनों के बीच जबरदस्त मुकाबला है…. इस बीच महाराष्ट्र की जनता के सामने बहुत अपना विधायक चुनना आसान नहीं है…. क्योंकि उसके सामने सब घालमेल हो गया है…. जिस प्रत्याशी को वोट देना है वो अब दूसरे दल में है…. जिस दल को वोट देना है उसका प्रत्याशी ही नहीं है…. कई जगह पार्टी का वैलिड प्रत्याशी कोई और है दल किसी और को जिता रहा है…. हिंदुत्व की विचारधारा और धर्मनिरपेक्षता की खिचड़ी बन चुकी है…. एक ही गठबंधन के साथी एक दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे हैं…. कुल मिलाकर महाराष्ट्र के मतदाता के सामने विकट परिस्थिति है कि वो किसको वोट दे…. महाराष्ट्र में इस बार का वोट केवल नई सरकार चुनने का ही फैसला लेकर नहीं आने वाली है….और भी कई ऐसे महत्वपूर्ण चीजें हैं जिनका फैसला इस बार के चुनावों में होने वाला है…
वहीं इस बार का विधानसभा चुनाव दोनों ही गठबंधनों के लिए सत्ता की लड़ाई नहीं है…. बल्कि अपने सियासी अस्तित्व और पहचान के लिए भी है…. एक तरफ जहां बीजेपी जाति धर्म के मुद्दे को लेकर जनता के बीच में उतरी थी… तो वहीं महाविकास अघाड़ी जनता के मुद्दों मंहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्ट्राचार को लेकर जनता के बीच में पहुंची थी…. जिससे बीजेपी की नफरती राजनीति पर बहुत बड़ा असर देखने को मिला था…. और बीजेपी की पूरे राज्य में जमकर फजीहत हो रही थी… आपको बता दें कि यह चुनाव शिवसेना और एनसीपी के अस्तित्व का चुनाव है… इस चुनाव के परिणाम से यह साबित होगा कि असली शिवसेना कौन है… इस चुनाव के परिणाम से साबित हो जाएगा कि महाराष्ट्र की जनता ने विकास के मुद्दे पर वोट किया है… या बीजेपी की नफरती राजनीति को वोट किया है…
आपको बता दें कि महाराष्ट्र का चुनाव दिग्गजों की सियासी भविष्य को तय करेगा… इस चुनाव परिणाम के बाद मोदी से लेकर अमित शाह की साख को तय करेगा…. महाराष्ट्र चुनाव परिणाम आने के बाद बीजेपी के कई दिग्गजों की कुर्सी भी चली जाएगी… मोदी की बची हुई थोड़ी बहुत साख भी खत्म हो जाएगा… वहीं चुनाव परिणाम से साफ हो जाएगा की देश की जनता नफरती भाषणों को तरजीह देती है… या फिर विकास को यह आने वाले दिनों में तय हो जाएगा… महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में योगी का नारा काम नहीं आया है…. जनता ने योगी के नारे का समर्थन नहीं किया है… और उनके नारे का बीजेपी के ही बड़े नेताओं ने समर्थन नहीं किया है… योगी की कुर्सी को लेकर भी तमाम तरह के खतरे के अनुमान लगाए जा रहें है.,.. केशव प्रसाद मौर्या समय-समय पर योगी के खिलाफ बयानवाजी करने लगते हैं… वहीं मौर्या ने भी योगी के नारे का समर्थन नहीं किया है… जिससे उत्तर प्रदेश की सियासत में भी भूचाल मचा हुआ है… आपको बता दें कि यूपी उपचुपनाव की नौ सीटें बीजेपी के दो हजार सत्ताइस का आईना है… और ये नौ सीटों का चुनाव बीजेपी के दो हजार सत्ताइस के चुनाव का भविष्य तय करेंगी… राज्य की जनता नफरती राजनीति को समझ चुकी है… और बीजेपी को सत्ता से बाहर करने का मन बना लिया है…
महाराष्ट्र में कभी हिंदू हृदय सम्राट के रूप में राज करने वाले बाला साहब ठाकरे के नाम का कभी जलवा कभी पूरे भारत में होता था…. वहीं अब उनकी विरासत का सवाल है…. प्रदेश के वर्तमान सीएम एकनाथ शिंदे बाला साहब के अनन्य भक्त और सहयोगी रहे हैं…. उद्धव ठाकरे के साथ भी उन्होंने अपनी पार्टी भक्ति को उसी तरह दिखाये जिस तरह बाला साहब के साथ थे…. पर पार्टी की अंदरूनी राजनीति और उद्धव ठाकरे के व्यवहार और भारतीय जनता पार्टी की जोड़ तोड़ की राजनीति के चलते शिवसेना दो भागों में बंट गई…. आधे अधिक लोग शिवसेना शिंदे गुट के साथ आ गए. उद्धव ठाकरे के पास न मूल पार्टी रही और न ही चुनाव चिह्न….. बीजेपी ने आगे बढ़कर एकनाथ शिंदे को प्रदेश का सीएम बना दिया…. आम लोगों और कार्यकर्ताओं के नजदीक होने का लाभ शिंदे को मिला…. लोकसभा चुनावों में जीत की स्ट्राइक रेट उनकी उद्धव सेना के मुकाबले बेहतर रही…. वहीं अब सवाल उठता है कि क्या विधानसभा चुनावों में भी शिंदे सेना को उद्धव सेना पर बढ़त हासिल होगी…. यह चुनाव शिवसेना के लिए निर्णायक होने वाला है…. अगर एक बार फिर उद्धव सेना को महाराष्ट्र में मात मिलती है…. तो यह उनके और उनकी पार्टी के लिए घातक साबित होगा…. एकनाथ शिंद अगर बढ़िया प्रदर्शन करते हैं…. और हंग असेंबली बनती है… तो बहुत मुमकिन है कि एक बार फिर प्रदेश का मुख्य़मंत्री पद उन्हें ही मिले….
बता दें कि महाराष्ट्र की राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले शरद पवार की राजनीति की शायद यह अंतिम पारी हो…. इस तरह का उन्होंने खुद संकेत दिया है…. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कभी सर्वे सर्वा रहे शरद पवार को धोखा उन्हीं के भतीजे अजित पवार से मिला है…. अगर राजनीतिक आंकड़ों की बात करें तो लोकसभा चुनावों में अजित पवार को जिस तरह जनता ने नकार दिया उससे तो यही लगता है कि विधानसभा चुनावों में भी ऐसा हो सकता है…. जिस तरह शरद पवार ने अपनी खोई हुई साख को फिर से पाने के लिए मेहनत की है… उसका फल उन्हें मिल सकता है…. पर महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार और अजित पवार के बीच किस तरह के संबंध हैं… यह समझना बहुत ही मुश्किल है…. जिस तरह शरद पवार के रानजीतिक कदम रहें हैं… उससे तो कई बार लगता है कि दोनों पवार मिले हुए हैं…. अभी हाल ही में दो हजार उन्नीस में महाराष्ट्र की सरकार बनाने का खुलासा अजित पवार ने किया था…. उससे तो यही लगता है कि बीजेपी में आकर दूसरे दिन एनसीपी में वापसी सिनियर पवार की रणनीति का हिस्सा था…. वैसे भी अगर महाराष्ट्र में हंग असेंबली आती है तो अजित पवार और शरद पवार एक साथ दिख सकते हैं…. अजित पवार ने अपनी पार्टी में बोल रखा है कि कोई भी शख्स सीनियर पवार के बारे में अपमानजनक कुछ नहीं बोलेगा….
वहीं भारतीय जनता पार्टी महाराष्ट्र में बड़ा भाई बनने के लिए बहुत दिनों से संघर्ष कर रही है…. यही कारण था कि शिवसेना और बीजेपी की बरसों पुरानी मित्रता दांव पर लग गई…. उद्धव ठाकरे दो हजार उन्नीस में कम सीट होने के बावजूद खुद को सीएम बनाने की मांग पर अड़ गए…. बीजेपी ने इनकार कर दिया तो उन्होंने कांग्रेस और एनसीपी के साथ महाविकास अगाड़ी बनाकर खुद सीएम बन गए…. पर दुर्भाग्य से बीजेपी को फिर भी अपना मुख्यमंत्री बनाने का सौभाग्य नहीं मिला…. शिवसेना और एनसीपी को बंट गई…. दोनों का एक एक धड़ा बीजेपी के साथ महायुति गठबंधन में शामिल है…. बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है फिर भी सीएम का पद एकनाथ शिंदे को देना पड़ा…. ठीक वैसे ही जैसे बिहार में विधायकों की संख्या अधिक होने के बावजूद नीतीश कुमार को सीएम बनाए रखना मजबूरी है…. कुछ दिनों पहले डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने बयान दिया कि हमारे अगले सीएम एकनाथ शिंदे ही होंगे…. पर अभी इसी हफ्ते गृहमंत्री अमित शाह ने संकेत दिए हैं कि… महाराष्ट्र का सीएम कौन होगा… अभी तय नहीं होगा…. अगर बीजेपी को पर्याप्त बहुमत मिल जाता है… तो जाहिर है कि सरकार में सीएम बीजेपी का ही होगा…. पर अगर थोड़ी सीट भी कम होती है… तो बीजेपी के लिए मुश्किल होगा महायुति को एकजुट रखना…. इसलिए इस बार का चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि क्या बीजेपी अपना सीएम बनाने में सफल हो पाती है….
महाराष्ट्र की राजनीति में इस बार विधानसभा चुनावों में जिस तरह विचारधारा की खिचड़ी पकी है…. उसका मिसाल मिलना नामुमकिन है…. महायुति में शामिल एनसीपी अजित पवार ने जिस तरह डंके की चोट पर बीजेपी की विचारधारा के खिलाफ अपनी चलाई है वह शायद पहली बार है…. बीजेपी बस सुनती रही है…. अब बीजेपी की कौन सी ऐसी मजबूरी थी कि वह अजित पवार के हर उस फैसले को भी बर्दाश्त करती रही जो उसकी नीतियों के बिल्कुल खिलाफ था…. नवाब मलिक बीजेपी और उसके बड़े नेताओं यहां तक कि पीएम के बारे में भी बहुत कुछ बोलते रहे हैं…. उनपर दाउद इब्राहिम के सहयोगी होने का आरोप रहा है…. ईडी ने पिछले साल उन्हें गिरफ्तार भी किया था…. पहले अजित पवार ने बीजेपी के विरोध के बावजूद उनकी बेटी को टिकट दिया…. बाद में नवाब मलिक को भी टिकट दे दिया…. बीजेपी विरोध दर्ज कराती रह गई… इसी तरह अजित पवार ने सीधे शब्दों में बंटेंगे तो कटेंगे का विरोध किया…. यहां तक कि अजित पवार ने बीजेपी के बड़े नेताओं की सभा भी अपने कैंडिडेट के लिए नहीं कराई….. हालांकि पीएम मोदी का आशीर्वाद लेते रहे.इसी तरह महाविकास अघाड़ी में भी विचारधारा की खिचड़ी खूब पकी है…. शिवसेना यूबीटी और कांग्रेस-एनसीपी (एसपी) का गठबंधन ही बेमेल था…. वहीं अब जनता के वोट से तय होगा कि देश में ये खिचड़ी राजनीति का क्या भविष्य है….
महा विकास अघाड़ी की मराठा, मुस्लिम और दलित की सियासी केमिस्ट्री दो हजार चौबीस के लोकसभा चुनाव में हिट रही है….. इस सोशल इंजीनियरिंग के दम पर एक बार फिर से महा विकास अघाड़ी चुनाव में उतरी है…. मराठा आरक्षण और संविधान का मुद्दा कारगर रहा था… और उसे फिर से दोहराने की कवायद की जा रही है…. इसके अलावा राहुल गांधी ने पूरे चुनाव प्रचार अभियान के दौरान जातिगत जनगणना और सामाजिक न्याय के मुद्दे को ही पकड़े रखा था…. ऐसे में दलित-मुस्लिम-मराठा का गठजोड़ महा विकास अघाड़ी के लिए अहम भूमिका अदा कर सकता है…. महाराष्ट्र की सियासत के शरद पवार बेताज बादशाह हैं…. उनकी लोकप्रियता पूरे प्रदेश में है…. इस तरह उद्धव ठाकरे के पास अपने पिता बालासाहेब ठाकरे की सियासी विरासत है… उद्धव और शरद पवार के सियासी कद का कोई भी नेता महा विकास अघाड़ी के पास नहीं है…. इसका सियासी लाभ महा विकास अघाड़ी को चुनाव में मिल सकता है…. महाराष्ट्र में ठाकरे और पवार फैक्टर काफी अहम माने जाते हैं….. जिसका लाभ कांग्रेस ने पूरी तरह से उठाने का दांव चला है….
वहीं बीजेपी इस बात को बखूबी जानती है कि अपने दम पर महाराष्ट्र की सियासी बाजी नहीं जीत सकती है…. ऐसे में बीजेपी ने एकनाथ शिंदे और अजीत पवार की एनसीपी के साथ गठबंधन कर चुनाव में उतरी है…. जिसे महायुति के नाम से जाना जाता है…. इस तरह बीजेपी एक बड़े गठबंधन के साथ चुनाव में उतरी है…. लोकसभा में मिली हार से भी सबक लिया है और लोकलुभावन योजना का आक्रमक प्रचार किया…. लाडली बहना योजना के जरिए महिला मतदाताओं को साधने की कवायद की है… महायुति ने प्रचार किया कि सरकार बदलने से तमाम लाभों पर संकट गहरा सकता है…. बता दें कि दो करोड़ से अधिक महिलाओं को हर महीने पंद्रह सौ रुपये प्रदान करने वाली लाडली बहना योजना एक अहम फैक्टर मानी जा रही…. हरियाणा विधानसभा चुनाव में मिली जीत महायुति के लिए एक अहम फैक्टर बन सकता है… इस जीत के बाद ही बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को हौसले बुलंद हो गए थे…. महाराष्ट्र की चुनावी कमान अमित शाह ने संभाल ली थी…. और लगातार बैठकें करके जमीनी स्तर पार्टी को मजबूत करने… और सियासी समीकरण दुरुस्त करने का काम किया है…. इसका लाभ विधानसभा चुनाव में महायुति को मिल सकता है….
लोकसभा चुनाव में बिखरे जातीय समीकरण को भी बीजेपी ने सुधारने की कवायद की है…. बीजेपी अपने कोर वोट बैंक ओबीसी पर खास फोकस किया है…. और जातियों में बंटे हुए हिंदू वोटों को एकजुट करने के लिए हर दांव चला…. सीएम योगी ने ‘कटोगे तो बटोगे’ का नैरेटिव सेट किया तो पीएम मोदी ने एक हो तो सेफ का नारा दिया…. इतना ही नहीं बीजेपी ने वोट जिहाद के जरिए महा विकास अघाड़ी के समीकरण को बिगाड़ने की कवायद की गई है…. हिंदुत्व के एजेंडा सेट किया तो दलित वोटों को भी साधने का दांव चला…. महायुति ने संविधान खतरे में है जैसे दावों को निराधार बताया है…. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महायुति ने किसी भी नेता को सीएम पद का चेहरा घोषित कर चुनावी मैदान में नहीं उतरी है….. एकनाथ शिंदे जरूर सीएम है, लेकिन अमित शाह ने चुनाव के दौरान ही साफ कर दिया था कि नए सीएम का फैसला नतीजे आने के बाद होगा…. इसके साथ ही देवेंद्र फडणवीस के सीएम बनने का विपक्ष द्वारा गढ़ा जा रहा नैरेटिव को भी खत्म कर दिया…. फडणवीस या शिंदे के चेहरे पर चुनावी मैदान में उतरने का नुकसान होने का भी खतरा था…. इस तरह सीएम की अटकलों को खारिज कर दिया…. जिसका लाभ महायुति को मिल सकता है….