यूपी के राज्यपाल की कहानी गूंजी सदन में : विश्वविद्यालयों में एक ही जाति नजर आयी गवर्नर को
अनारा पटेल की कहानी भी सोशल मीडिया पर

- यूपी के 30 विश्वविद्यालयों में 22 कुलपति एक ही विशेष जाति के
- दलित-पिछड़ों को नहीं मिल रहा प्रतिनिधित्व
- पिछले 10 वर्षों से विश्वविद्यालयों में कार्य परिषद के चुनाव भी नहीं हुए
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। यूपी की गवर्नर आनंदीबेन पटेल की राजनीतक मुश्किलें लगातार बढ़़ रही है और उन पर आरोपों की बौछार है। गवर्नर आनंदीबेन पटेल की छवि बेटी अनारा पटेल के कारनामों के चलते भी धूमिल हो रही हैं वहीं यूपी सदन में कुलपतियों की नियुक्तियों का मामला सामने आने के बाद चारो ओर गवर्नर की कार्यशैली की चर्चा हो रही है। उत्तर प्रदेश सरकार के बजट सत्र में विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्तियों के पन्ने खुले तो गवर्नर आनंदीबेन पटेल की कार्यशैली पर सवालिया निशान खड़े हो गये।
हुआ यूं कि यूपी की मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने उच्च शिक्षा में चल रहे घालमेल को सदन में तथ्यों के साथ उजगार किया। एक के बाद एक वरिष्ठ सदस्यों ने सदन को बताया कि किस प्रकार से कुलपतियों की नियुक्ति की जा रही है। यूपी में कुल 30 विश्वविद्यालय हैं और उनमें 22 विश्विद्यालयों में एक ही जाति के कुलपति है। यही नहीं लखनऊ यूनिवर्सिटी का नाम लेते हुए सदन को बताया गया कि यहां कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। क्रीमी लेयर का सहारा लेकर फर्जी कागजों के सहारे प्रोफेसर तक बनाने का खुला खेल चल रहा है। यही नहीं कुलाधिपति जिस पर कार्रवाई करने के लिए निर्देश देती है उसे प्रोन्नत कर दिया जाता है।
योग्य उम्मीदवारों को नहीं मिली नियुक्ति
सपा विधायकों के मुताबिक प्रदेश के 30 विश्वविद्यालयों में 22 में एक ही वर्ग के लोगों को कुलपति नियुक्त किया गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि नियुक्तियों में व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है। योग्य उम्मीदवारों को मौका नहीं दिया जा रहा है। वरिष्ठता सूची को दरकिनार कर मनमाने तौर पर लोगों को नियुक्त किया जा रहा है।
नियुक्तियों में सरकार का दखल होता है
उत्तर प्रदेश में उच्च शिक्षा के प्रशासन की जिम्मेदारी राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच साझा होती है। राज्यपाल विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति (चांसलर) होते हैं और कुलपतियों की नियुक्ति उन्हीं की सिफारिश पर की जाती है। हालांकि, नियुक्ति प्रक्रिया में सरकार की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है, क्योंकि कुलपति चयन समिति का गठन सरकार द्वारा किया जाता है।
अनारा पटेल के चलते चर्चा में गवर्नर
अनारा पटेल गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में उत्तर प्रदेश की गवर्नर आनंदीबेन पटेल की इकलौती बेटी है। अनारा पर वर्तमान में कई गंभीर आरोप लगे हैं और उनको लेकर चर्चाओ का बाजार सदैव गर्म रहता है। वैसे तो ? वह किसी संवैधानिक पद पर नहीं है लेकिन ? उनके बारे में कहा जाता है कि वह कुछ भी काम करवा सकने में सक्षम हैं। अनारा उस समय चर्चा में आयी थी जब कांग्रेस ने उन पर सस्ती दरों में जमीन हड़पने के आरोप लगाये थे। वर्तमान में अनार पटेल गुजरात चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की सोशल रिस्पांसिबिलिटी कमिटी की को-चेयरमैन भी हैं। अनार पटेल की पहचान सोशल इंटरप्रिन्योर के तौर पर भी है। वे रियल एस्टेट के कारोबार में सक्रिय हैं। अनार पटेल ग्रामश्री नाम के एनजीओ की मैनेजिंग ट्रस्टी भी हैं। पाटीदारों में लेउवा पटेल के शक्तिशाली संगठन खोडलधाम ट्रस्ट अनारा पटेल को ट्रस्टी बनाया गया है।
गंभीर आरोप
यूपी के 30 विश्वविद्यालयों में 22 विश्वविद्यालयों में एक ही जाति के कुलपतियों को नियुक्ति मिली है। यही नहीं पिछले 10 वर्षों से विश्वविद्यालयों में कार्य परिषद के चुनाव भी नहीं कराये गये हैं। कार्य परिषद का गठन किसी भी युनिवर्सिटी के लिए एक महत्वपूर्ण सवैधानिक प्रक्रिया है जिसका पालन युनिवर्सिटी प्रशासन को करना ही पड़ता है लेकिन जानकार हैरानी होगी कि पिछले 10 वर्षों से यूपी की किसी भी युनिवसिर्टी में कार्य परिषद का गठन नहीं किया गया। कार्य परिषद ही युनिवर्सिटी में महत्वपूर्ण निर्णय लेती है। दरअसल सदन के शून्य प्रहर में समाजवादी पार्टी के सीनियर विधायक संग्राम सिंह यादव ने विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्तियों में पिछड़ों, दलितों की उपेक्षा किए जाने का आरोप लगाया।उन्होंने मुद्दा उठाते हुए सदन को अवगत कराया है कि कुलपतियों की नियुक्ति में दलित और पिछड़े वर्ग को प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है जिसके चलते इस इस वर्ग के लोगों में खासी नाराजगी व्यप्त है।
लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति पर विशेष मेहरबानी
पार्टी के विधायक डॉ. आरके वर्मा ने भी इसी मुद्दे पर सरकार को घेरते हुए कहा कि लखनऊ विश्वविद्यालय सहित 24 राज्यों में नियुक्तियों में अनदेखी की जा रही है। कुलाधिपति ने जिस सहायक प्रोफेसर का पदावनत करने का आदेश दिया, उसे लखनऊ विश्वविद्यालय ने प्रोन्नति दे दी। इसके अलावा भी लखनऊ विश्वविद्यालय में नियमों की अनदेखी की जा रही है। इसके अलावा शिक्षकों के खिलाफ द्वेष भावना से कार्रवाई की जा रही है।
इसलिए नहीं कराये कार्य परिषद के चुनाव
कार्य परिषद के चुनाव विश्विद्यालय प्रशासन के का महत्वपूर्ण अंग होते हैं। परिषद विश्वविद्यालय के प्रशासन और नीति-निर्माण से जुड़े प्रमुख फैसले लेती है। इसमें कुलपति, शिक्षकों के प्रतिनिधि, सरकारी नामांकित सदस्य और अन्य शैक्षणिक एवं प्रशासनिक अधिकारी शामिल होते हैं। परिषद का प्रमुख कार्य विश्वविद्यालय के विकास और शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए नीतियाँ बनाना होता है। यहीं नहीं परिषद विश्वविद्यालय में शिक्षकों और प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति और पदोन्नति से जुड़े निर्णय भी लेती है। इसके अतिरक्त वित्तीय प्रबंधन, शैक्षणिक सुधार, अनुशासनात्मक कार्रवाई जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर भी कार्य परिषद का फैसला अंतिम फैसला होता है। ऐसे में कार्य परिषद के चुनाव क्यों नहीं कराये जा रहे यह आसानी से समझ में आने वाली बात है।
सपा ने सदन से किया वॉकआउट
सपा सदस्यों ने इस मुद्दे का ठीक जवाब न मिलने के कारण सदन से वाकआउट कर दिया।
मंत्री ने दिया जवाब- विपक्ष के आरोप निराधार
उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय ने इस मुददे का जवाब देने की कोशिश की लेकिन वह असफल रहे। उन्होंने कहा कि विपक्ष के सदस्यों ने जो आरोप लगाए गए हैं वह निराधार हैं। कुलपतियों की नियुक्तियां कुलाधिपति करते हैं। उन्होंने बताया कि कुलपतियों की नियुक्तियों में पीडीए को प्रतिनिधित्व दिया जा रहा है। कुलपतियों की नियुक्तियों में आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है। यही नहीं उच्च शिक्षा मंत्री ने सदन को बताया कि कार्य परिषद का चुनाव कराने के लिए पूर्व में लिखा जा चुका है लेकिन वह यह नहीं बता सके कि पिछले 10 वर्षों से आखिर कार्य परिषद के चुनाव क्यों नहीं हुए।