गुजरात मॉडल का सच! दलित-गरीबों पर बुलडोजर, उद्योगपतियों को हजारों एकड़ जमीन सिर्फ ₹1 में…

गुजरात मॉडल पर बड़ा सवाल... जहां दलितों, पिछड़ों और गरीबों पर चलता है... बुलडोज़र, वहीं उद्योगपतियों को मिलती हैं..

4पीएम न्यूज नेटवर्कः दोस्तों भारत का लोकतंत्र गरीबों, दलितों और पिछड़े वर्गों के अधिकारों पर टिका है.. लेकिन हाल के वर्षों में कई घटनाओं ने सवाल खड़े किए हैं.. कि क्या विकास का नाम लेकर गरीबों के घरों को तोड़ा जा रहा है.. जबकि बड़े उद्योगपतियों को जमीन सस्ते में या मुफ्त में दी जा रही है.. गुजरात को ‘विकास का मॉडल’ कहा जाता है.. लेकिन विपक्षी नेता राहुल गांधी ने इसे ‘लूट का मॉडल’ करार दिया है.. और उन्होंने कहा कि गुजरात मॉडल स्पष्ट है कि दलितों, पिछड़े वर्ग और गरीबों के लिए बुलडोजर.. जबकि उद्योगपतियों हजारों एकड़ जमीन मुफ्त में या मात्र 1 रुपये में दी जा रही है.. आपको बता दें कि यह बयान 24 सितंबर को आया.. जब गांधीनगर के पेथापुर बस्ती में 400 से ज्यादा परिवारों के घर तोड़ दिए गए.. इन परिवारों के पास बिजली बिल, टैक्स रसीदें, राशन कार्ड, आधार कार्ड और वोटर आईडी जैसे दस्तावेज थे.. वहीं कई मामलों में अदालतों के स्टे ऑर्डर भी थे..

आपको बता दें कि यह घटना अकेली नहीं है.. गुजरात, दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में ऐसी तोड़फोड़ की खबरें लगातार आ रही हैं.. सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2025 में ऐसी मनमानी कार्रवाइयों पर रोक लगाई थी.. लेकिन फिर भी ये जारी हैं.. बता दें 18 सितंबर 2025 की सुबह 4 बजे गांधीनगर के पेथापुर इलाके में बुलडोजरों की आवाज गूंजी.. साबरमती नदी के किनारे बसी इस बस्ती में 700 से ज्यादा अवैध संरचनाओं को निशाना बनाया गया.. शाम तक 400 से ज्यादा घर और दुकानें ध्वस्त हो चुकी थीं.. जिसमें पीड़ित परिवारों की संख्या 700 के आसपास बताई जाती है.. ये लोग ज्यादातर बिहार, उत्तर प्रदेश और गुजरात के बनासकांठा जिले से थे.. वे सालों से यहां रह रहे थे.. मजदूरी और छोटे-मोटे काम करके गुजारा कर रहे थे..

गांधीनगर नगर निगम और जिला प्रशासन ने इसे ‘मेगा एंटी-एंक्रोचमेंट ड्राइव’ बताया.. उनका कहना था कि ये संरचनाएं सरकारी जमीन पर बनी थीं.. जो साबरमती रिवरफ्रंट प्रोजेक्ट के विस्तार के रास्ते में थीं.. इस जमीन का मूल्य लगभग 1000 करोड़ रुपये है.. कार्रवाई मानसून के बाद और नवरात्रि-दिवाली से पहले की गई.. ताकि बारिश या त्योहारों के दौरान लोग सड़क पर न रहें.. 700 से ज्यादा पुलिसकर्मियों ने सुरक्षा दी.. ज्यादातर लोग एक दिन पहले ही सामान समेटकर चले गए थे.. इसलिए कोई बड़ा विरोध नहीं हुआ.. लेकिन सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हुए.. जहां लोग रोते हुए घर छोड़ते दिखे..

वहीं वहां के निवासियों का दर्द अलग था.. पीड़ितों ने बताया कि हमारे पास सब दस्तावेज हैं बिजली का बिल, पानी का कनेक्शन, राशन कार्ड.. हम वोट भी देते हैं.. फिर भी हमें ‘अवैध’ कहा गया.. राहुल गांधी ने ट्वीट में कहा कि कई परिवारों के पास अदालत के स्टे ऑर्डर थे.. लेकिन उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया.. जिसको लेकर प्रशासन ने साफ कहा कि ये अतिक्रमण सालों पुराने थे.. जो नदी के किनारे बाढ़ का खतरा बढ़ाते थे.. राज्य सरकार की टास्क फोर्स ने 13 अगस्त 2025 को ही इन्हें चिह्नित किया था.. अधिकारियों ने कहा कि पहले अतिक्रमण हटाओ, फिर देखेंगे.. लेकिन विपक्ष ने इसे गरीब-विरोधी बताया.. कांग्रेस ने कहा कि ये लोग दलित और पिछड़े वर्ग से हैं.. जिन्हें बिना नोटिस के उजाड़ा गया.. BJP ने जवाब दिया कि कानून सबके लिए बराबर है.. विकास के लिए ये जरूरी है..

वहीं इस घटना ने पूरे देश का ध्यान खींचा.. राहुल गांधी ने इसे गुजरात मॉडल का प्रतीक बताया.. और उन्होंने कहा कि बीजेपी को पता है कि वे असली जनादेश से सरकार नहीं बना सकते.. वे चोरी से और संस्थाओं पर कब्जा करके सत्ता में आते हैं.. इसलिए गरीबों के अधिकार छीन लेते हैं.. और देश की संपत्ति अपने अरबपति दोस्तों को सौंप देते हैं.. यह बयान राजनीतिक था.. लेकिन तथ्यों पर आधारित था..

गुजरात को 2000 के दशक से ‘विकास का मॉडल’ कहा जाता है.. यहां जीएसडीपी तेजी से बढ़ी, लेकिन आलोचक कहते हैं कि यह ‘असमान विकास’ है.. एक अध्ययन के अनुसार, हिंदुत्व और नवउदारवाद की जोड़ी ने क्षेत्रों, सेक्टर्स और वर्गों में गहरी खाई पैदा की.. ग्रामीण गरीबी कम हुई.. बता दें कि 2014 के चुनावों में सामने आया कि चार गुजरात सीएम ने उद्योगपतियों को सस्ती जमीन दी.. मुंद्रा पोर्ट के लिए 15,946 एकड़ जमीन 1993 से मिली.. जिसमें एक-तिहाई नरेंद्र मोदी के समय में दी गई.. जिसकी कीमत बाजार मूल्य से बहुत कम थी..

CAG रिपोर्ट 2014 में बताया गया कि गुजरात सरकार ने एक उद्योगपति को सस्ती बिजली देकर 70 करोड़ का फायदा दिया… लेकिन सरकार कहती है कि ये निवेश आकर्षित करने के लिए हैं.. सस्ती जमीन से पोर्ट, पावर प्लांट बने, जो रोजगार देते हैं.. एक रेडिट थ्रेड में बहस हुई कि ‘1 रुपये की जमीन’ की आलोचना राजनीतिक है.. क्योंकि लंबे समय में आर्थिक फायदा ज्यादा हुआ..

दूसरी तरफ गुजरात में कई गरीबों के घर तोड़े गए.. मई 2025 में एक बीजेपी विधायक ने ही डेमोलिशन की आलोचना की.. कहा कि अधिकारी गरीबों को तंग कर रहे हैं.. सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में कहा कि गरीबी कोई बहाना नहीं, कानून सबके लिए है. लेकिन 2023-24 में 1,53,820 अनौपचारिक घर तोड़े गए.. 7,38,438 लोग बेघर हो गए.. पेथापुर जैसी घटनाएं इसी का हिस्सा हैं…

आपको बता दें कि गुजरात अकेला राज्य नहीं है.. दिल्ली में भी बीजेपी की सरकार बनते ही.. बुलडोजर कार्रवाई तेज हुई.. जून में साउथ दिल्ली के स्लम्स, मद्रासी कैंप, भूमिहीन कैंप, तैमूर नगर में 300 से ज्यादा घर तोड़े गए.. मद्रासी कैंप में 215 परिवारों को पुनर्वास मिला, लेकिन नेरला भेजा गया.. जहां पानी-बिजली की समस्या है.. 155 परिवार बेघर रह गए.. जिनको कोई भी आवास नहीं मिला.. और तमिलनाडु सरकार ने 370 परिवारों को राहत दी..

आपतो बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 13 नवंबर 2024 को ऐतिहासिक फैसला दिया.. कोर्ट ने कहा कि मनमानी तोड़फोड़ संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार), 14 (समानता) और प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है.. 31 मार्च को यूपी ड्राइव पर कोर्ट ने 10 लाख मुआवजा दिया.. अप्रैल 2025 में फैसला आया, लेकिन पेथापुर और दिल्ली में नोटिस की कमी रही.. कोर्ट ने कहा कि गरीबी कोई अपवाद नहीं, लेकिन प्रक्रिया जरूरी है.. यह गुजरात-दिल्ली जैसी घटनाओं पर असर डाल सकता है.. 2023 में 1,07,449 घर तोड़े गए..

 

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