बिहार चुनाव में होने जा रहा बड़ा उलटफेर, इस एक Exit Poll ने बढ़ा दी मोदी-नीतश की टेंशन!
क्या बिहार चुनाव के बड़ा उलटफेर होने जा रहा है? क्या सारे एग्जिट पोल गलत साबित होवे वाले हैं? क्या बिहार में महा गठबंधन की सरकार बन सकती है?

4पीएम न्यूज नेटवर्क: क्या बिहार चुनाव के बड़ा उलटफेर होने जा रहा है? क्या सारे एग्जिट पोल गलत साबित होवे वाले हैं? क्या बिहार में महा गठबंधन की सरकार बन सकती है?
बिहार की राजनीति हमेशा से अप्रत्याशित रही है। यहां जनता का मूड समझना बेहद मुश्किल काम है। कोई एक जैसा दावा कर ही नहीं सकता है। लेकिन इस बार के चुनाव में जिस तरह से तमाम गोदी चैनलों के एग्जिट पोल्स ने जनता के मूड को समझने की कोशिश की है, वह हैरान करने वाला कम और संदिग्ध ज़्यादा लगता है। क्योंकि लगभग हर बड़ा सर्वे एनडीए के पक्ष में एकतरफा बहुमत का दावा कर रहा है। एनडीए को कहीं 140 सीटें तो कहीं 160 तक दी जा रही है। ऐसा लग रहा है जैसे सबको एक जैसी ही स्क्रिप्ट थमा दी गई है। मगर इस शोर के बीच एक पोल ऐसा भी है जिसने बाकि सारे एग्जिट पोल्स की पोल खोल कर रख दी है।
एक ऐसा पोल जो अगर सच निकला तो बिहार में सत्ता परिवर्तन हो सकता है। ये पोल अगर सच साबित होता है तो महा गठबंधन की सरकार भी बन सकती है। जबकि एक ऐसा पोल भी है जो एनडीए और महागठबंधन दोनों को अपना माथा पकड़ने पर मजबूर कर सकता है। तो ऐसे कौन से सर्वे हैं जो बाकि पोल्स से बिलकुल उलट नतीजें दे रहे हैं और ये पोल कितने सच साबित हो सकते हैं, बताएंगे आपको इस वीडियो में।
दूसरे चरण की वोटिंग की वोटिंग खत्म होते ही गोदी मीडिया ने एग्जिट पोल के जरिये बिहार में एनडीए के लिए माहौल बनाना शुरू कर दिया था। उनके एंकरों की तरह उनके सर्वों ने भी सरकार के पक्ष में बोलना शुरू कर दिया था। ऐसा लग रहा था जैसे उनके लिए सही से सर्वे का एनालिसिस करने से ज्यादा इस बात पर फोकस था कि कैसे भी करके एनडीए को क्लियर मेजोरिटी में दिखाना है। जनता में माहौल बनाने के लिए सबने जो सीटों के आकड़े दिए वो एक से थे। मैटराइज सर्वे पोल ने जहां एनडीए को 147-167 दी तो वहीं महागठबंधन को सिर्फ 70 से 90 सीटों तक सीमित कर दिया।
भास्कर रिपोर्टर्स पोल ने भी एनडीए को 145 से 160 सीटें मिलने का अनुमान लगाया तो वहीं महागठबंधन को 73 से 91 सीटें मिलने का अनुमान बताया। जबकि चाणक्य स्ट्रैटेजी ने कुछ रियायत बरतते हुए एनडीए को 130 से 138 सीटें और महागठबंधन को 100 से 108 सीटों का अनुमान लगाया। इसी तरह लगभग हर सर्वे ने एनडीए को नतीजों से पहले ही जीता हुआ घोषित कर दिया। लेकिन इस बीच एक ऐसा सर्वे आया जिसने एनडीए के अरमानों पर पानी फेर दिया। एक ऐसा सर्वे जिसका सैंपल साइज बाकि सर्वों के मुकाबले बड़ा है और वो है Journo Mirror का सर्वे। जी हां यह अकेला सर्वे है जिसने भीड़ के पीछे चलने से इनकार किया और सच बोलने की हिम्मत दिखाई। Journo Mirror ने साफ कहा है कि इस बार बिहार की जनता ने बदलाव का मन बना लिया है।
उनके मुताबिक महागठबंधन 130 से 140 सीटें जीत सकता है, जबकि एनडीए मुश्किल से 100 से 110 सीटों तक सिमट सकता है। मतलब अपने दम पर महागठबंधन आसानी से अपनी सरकार बना सकता है। ‘जर्नो मिरर’ के मुताबिक, महागठबंधन को 130 से 140 सीटें, एनडीए को 100 से 110 सीटें, AIMIM को 3 से 4 सीटें और अन्य को 0 से 3 सीटें मिलने का अनुमान है. यानी सर्वे के अनुसार आरजेडी-कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन बहुमत के आंकड़े को आराम से पार करता दिख रहा है.
‘जर्नो मिरर’ का दावा है कि यह सर्वे 38 जिलों के 150 विधानसभा क्षेत्रों में 15 हजार से अधिक मतदाताओं की राय के आधार पर तैयार किया गया है. इसमें ग्रामीण और शहरी इलाकों दोनों की नब्ज को शामिल किया गया है. सर्वे टीम से मिली जानकारी के अनुसार ‘जर्नो मिरर’ के दावे में बताया गया है कि महागठबंधन को बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और महंगाई जैसे मुद्दों पर जनता का समर्थन मिला है, जबकि एनडीए को सत्ता विरोधी लहर का कुछ असर झेलना पड़ा है.
यह वही बिहार है जहाँ नीतीश कुमार दो दशकों से सत्ता में हैं, जहाँ भाजपा ने संगठन, संसाधन और प्रचार के दम पर सत्ता की गारंटी समझ रखी थी। लेकिन इस बार कहानी पलट रही है, और यही पलटाव Journo Mirror ने सबसे पहले पकड़ लिया है। बाकी एग्जिट पोल्स के आँकड़े देखिए तो लगता है मानो सब एक ही स्क्रिप्ट से लिखे गए हों। कोई कहता है एनडीए को 160, कोई कहता है 155, कोई कहता है क्लीन स्वीप।
ये सब सर्वे जनता की नब्ज़ नहीं, सत्ता की ख्वाहिशें पढ़ रहे हैं। इनमें वो आत्मा नहीं है जो चुनाव की असली कहानी समझ सके। बिहार का मतदाता बार-बार यह साबित कर चुका है कि वह किसी के फॉर्मूले या डेटा एनालिसिस से नहीं चलता। बल्कि वो चलता है अपने अनुभव से, अपने ग़ुस्से से और अपने उम्मीद से। Journo Mirror ने उसी उम्मीद को सुना है। उन्होंने गाँव-गाँव जाकर देखा कि बेरोज़गारी किस तरह युवाओं को तोड़ चुकी है, महँगाई ने किस तरह लोगों की जेबें खाली कर दी हैं और किस तरह “विकास के वादे” अब बस भाषणों में रह गए हैं। जहाँ बाकी सर्वे शहरों की हवा में डेटा इकट्ठा कर रहे थे, वहाँ Journo Mirror ज़मीन पर था — खेतों में, गलियों में, चौपालों पर। यही वजह है कि उनका सर्वे बाकी सभी से अलग और कहीं ज़्यादा विश्वसनीय लग रहा है।
जो लोग कह रहे हैं कि बाकी सारे सर्वे सही हैं और Journo Mirror गलत, उन्हें ज़रा इतिहास देख लेना चाहिए। 2015 में भी यही हुआ था। सारे एग्जिट पोल्स ने एनडीए को बढ़त दी थी, लेकिन नतीजे आए तो जनता ने उन्हें आईना दिखा दिया। वही इतिहास शायद फिर दोहराने जा रही है। फर्क बस इतना है कि इस बार जनता का मूड और ज़्यादा गुस्से में है, और बदलाव की लहर पहले से ज़्यादा तेज़ है।
अब देखिए सिर्फ Journo Mirror ही नहीं बल्कि एक और ऐसा सर्वे है जिसने बाकि सारे पोल्स को हवा में उड़ा दिया है। एक ऐसे पोल जिसने एनडीए और महागठबंधन जोनों की ही नींद खराब कर दी है। जी हां हम बात कर रहे हैं एआई पॉलिटिक्स की जिसके आंकड़े देखकर हर कोई हैरान है.एआई पॉलिटिक्स के आंकड़ों में यह बात सामने आई है कि एनडीए और महागठबंधन के बीच कड़ी टक्कर है. सरकार बनाने के लिए बिहार में 122 सीटों की जरूरत है और ये दोनों गठबंधन इस संख्या के बेहद करीब हैं.
दूसरी ओर आंकड़ों पर जब नजर डालेंगे तो यह पता चलेगा कि सीटों के मामले में नीतीश कुमार को बड़ा झटका लगता दिख रहा है. इस सर्वे के मुताबिक एनडीए को 121 सीटें मिल सकती है जबकि महागठबंधन को इसने 119 सीटों का अनुमान लगाया है। मतलब केवल बस दो सीटों का ही फर्क है। सोचिये अगर सच में ऐसा आंकड़ा आ गया तो फिर बिहार में प्रशांत किशोर किंग मेकर की भूमिका में आ सकते हैं। वहीं अगर देखें कि एआई पॉलिटिक्स के मुताबिक किस गठबंधन को कितना वोट प्रतिशत मिल सकता है तो वो तो और रोचक है क्योंकि इस सर्वे ने एनडीए को 38.4% वोट शेयर मिलने की बात कही है जबकि महागठबंधन को 39.2% वोट शेयर मिलना का अनुमान लगाया है।
मतलब महागठबंधन को एनडीए से ज्यादा वोट मिल सकता है। जबकि जन सुराज पार्टी को इसने 12.7% वोट मिलने का अनुमान लगाया है. इस सर्वे के मुताबिक एनडीए में बीजेपी को 85-93 सीटें, जेडीयू को 25-31 सीटें, एलजेपीआर को 2-4 सीटें और हम को 1 सीट तक मिल सकती है। जबकि इस सर्वे के मुताबिक महागठबंधन में आरजेडी को 89 से 97 सीट, कांग्रेस को 14-21 सीटें, वीआईपी को 2-3 सीट, सीपीआई- 1-2 सीट, सीपीआईएमएल- 2-5 सीट और सीपीएम- 1-2 सीटें तक मिल सकती है।
तो क्या बिहार में इस बार इतिहास खुद को दोहराने वाला है? क्या फिर से जनता उन एग्जिट पोल्स को आईना दिखाने जा रही है जो सत्ता के सुर में सुर मिला रहे हैं? ये सवाल अब पूरे बिहार की सियासत पर भारी पड़ रहा है। क्योंकि एक तरफ गोदी मीडिया के सर्वे हैं जो एनडीए की जीत की कहानी पहले ही लिख चुके हैं, और दूसरी तरफ जर्नो मिरर और एआई पॉलिटिक्स जैसे सर्वे हैं जो इस खेल को पूरी तरह पलटते नज़र आ रहे हैं। बिहार की राजनीति हमेशा सरप्राइज़ से भरी रही है, यहाँ की हवा आखिरी वक्त में रुख बदल देती है।
यही वजह है कि लोग अब आंकड़ों से नहीं, ज़मीनी सच्चाई से उम्मीद लगाए बैठे हैं। जर्नो मिरर का सर्वे साफ कहता है कि जनता अब बदलाव चाहती है। वो बदलाव जो बेरोज़गारी, महंगाई और टूटी उम्मीदों से उपजा है। वहीं एआई पॉलिटिक्स के आंकड़े बताते हैं कि मुकाबला अब कांटे का हो चुका है, बस दो सीटों का फर्क तय करेगा कि बिहार में कौन सत्ता की कुर्सी पर बैठेगा। लेकिन इस बार एक बात साफ दिख रही है कि जनता अब डर या प्रचार से नहीं, बल्कि अपने गुस्से और अनुभव से वोट दे रही है। हो सकता है कि नतीजे आने के बाद वही तस्वीर उभर कर सामने आए जो 2015 में आई थी, जब सारे सर्वे धरे रह गए थे और जनता ने अपनी चुप्पी से सबसे बड़ा संदेश दिया था।
फर्क बस इतना है कि इस बार जनता की चुप्पी में और ज़्यादा आक्रोश है, और शायद इसी गुस्से से बिहार की नई कहानी लिखी जाएगी। अब 2 दिन बाद जब नतीजे आएंगे, तब साफ होगा कि एग्जिट पोल्स सही थे या जनता ने फिर से उन्हें मात दे दी। लेकिन इतना तय है कि बिहार की राजनीति एक बार फिर देश को चौंकाने वाली है।



