आज संविधान को खतरा, चुनाव आयोग पर है सरकारी पहरा: दिग्विजय

  • 75वें संविधान दिवस पर कांग्रेस नेता ने जताई चिंता
  • भाजपा और मोदी सरकार पर साधा निशाना

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नईदिल्ली। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने 75वें संविधान दिवस के अवसर पर चिंता जताते हुए कहा कि सबसे बड़ी चिंता यह है कि क्या संवैधानिक व्यवस्था अक्षुण्ण रहेगी। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि आज सबसे बड़ी चिंता यह है कि क्या संवैधानिक व्यवस्था अक्षुण्ण रहेगी। क्या संवैधानिक संस्थाएं निष्पक्ष तरीके से काम करेंगी? हम सभी देख सकते हैं कि चुनाव आयोग किस तरह पक्षपातपूर्ण तरीके से काम कर रहा है। एसआईआर में हेराफेरी हुई है। चुनाव आयोग से हमारी मांग सरल है। मतदाता सूची साझा करें ताकि हम जांच कर सकें कि नामों का दोहराव तो नहीं है।
इससे पहले, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान दिवस के अवसर पर मूल संविधान निर्माताओं के दृष्टिकोण और सपनों को कायम रखने के लिए संसद सदस्यों को बधाई दी और प्रसन्नता व्यक्त की। राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा इसके अतिरिक्त, मैं सदस्यों के सौभाग्य और समृद्धि के लिए इस स्मरणोत्सव पर आदरपूर्वक नमन करती हूं। संविधान के प्रारूपण के इतिहास को याद करते हुए, उन्होंने डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर को याद किया, जो प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे, और भारत के सर्वोच्च कानूनी दस्तावेज़ का प्रारूपण करने में उनके प्रयासों की प्रशंसा की। संविधान दिवस के ऐतिहासिक अवसर पर आप सभी के बीच आकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। आज ही के दिन, 26 नवंबर, 1949 को, संविधान भवन के इसी केंद्रीय कक्ष में, संविधान सभा के सदस्यों ने भारत के संविधान का प्रारूप तैयार करने का कार्य पूर्ण किया था। उसी वर्ष, इसी दिन, हम भारत के लोगों ने, अपने संविधान को अंगीकार किया था। स्वतंत्रता के बाद, संविधान सभा ने भारत की अंतरिम संसद के रूप में भी कार्य किया। उन्होंने कहा, प्रारूप समिति के अध्यक्ष, बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर हमारे संविधान के प्रमुख निर्माताओं में से एक थे। 26 नवंबर, 1949 को अंगीकार किए गए भारत के संविधान का प्रारूप संविधान सभा द्वारा तैयार किया गया था, जिसकी अध्यक्षता डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने की थी, जो बाद में भारत के पहले राष्ट्रपति बने।

संविधान विरोधी ‘मनुवादियों’ की पहचान करें लोग: सिद्धरमैया

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने लोगों से ऐसे ‘संविधान विरोधी मनुवादियों’ की पहचान करने का आह्वान किया जो संविधान के बजाय मनुस्मृति को तरजीह देते हैं। सिद्धरमैया ने चेतावनी दी कि डॉ. बी.आर. आंबेडकर के संविधान के लागू होने से पहले देश में एक अलिखित मनुस्मृति का शासन था। वह यहां ‘संविधान दिवस समारोह – 2025’ का उद्घाटन करने के बाद बोल रहे थे। मुख्यमंत्री ने कहा, .मनुस्मृति में वर्णित मानव-विरोधी और समानता-विरोधी नियमों का आंबेडकर के संविधान में कोई स्थान नहीं था। इसीलिए मनुवादी हमारे संविधान का विरोध करते हैं। उन्होंने कहा कि मनुवादी वे लोग हैं जो ‘मनुस्मृति’ (हिंदू परंपरा पर आधारित प्राचीन भारतीय ग्रंथ) में विश्वास करते हैं। एक समान समाज का निर्माण करना और समानता को समाप्त करना हमारे संविधान और आंबेडकर की आकांक्षा है।सिद्धरमैया ने उपस्थित लोगों को याद दिलाया कि हम भारत के लोग संविधान का मूल मंत्र है। इस तर्क का प्रतिवाद करते हुए कि आंबेडकर संविधान के निर्माता नहीं थे, सिद्धरमैया ने इस बात पर जोर दिया कि जाति व्यवस्था और इसके खतरों के बारे में आंबेडकर की गहरी समझ ने उन्हें आरक्षण का प्रावधान शामिल करने के लिए प्रेरित किया। मुख्यमंत्री ने खेद व्यक्त किया कि स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के संवैधानिक आदर्शों के बावजूद, आजादी के कई वर्षों बाद भी ये आकांक्षाएं अधूरी हैं। उन्होंने कहा कि बसवन्ना जैसे सुधारकों द्वारा जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लडऩे के बाद भी, उच्च जाति के लोग जाति से मुक्त नहीं हो रहे हैं। सिद्धरमैया ने कहा कि जाति तभी कमजोर होगी जब निचली जातियां आर्थिक शक्ति हासिल करेंगी।

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