उमर खालिद और शरजील इमाम 5 साल से जेल में बंद, जमानत पर आज दिल्ली हाई कोर्ट सुनाएगा फैसला

उत्तर-पूर्वी दिल्ली में 2020 में हुए दंगों से जुड़ी साजिश के मामले में आरोपी उमर खालिद और शरजील इमाम की जमानत याचिकाओं के मामले में आज दिल्ली हाईकोर्ट फैसला सुनाएगा. पिछले 5 साल से UAPA मामले में ये आरोपी जेल में बंद हैं. जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की बेंच ने 9 जुलाई को अभियोजन पक्ष और आरोपियों की दलीलें सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया था. बेंच दोपहर 2:30 बजे आदेश पारित करेगी.
अदालत ने शरजील इमाम, उमर खालिद, मोहम्मद सलीम खान, शिफा उर रहमान, अतहर खान, मीरान हैदर, अब्दुल खालिद सैफी और गुलफिशा फातिमा की जमानत याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. अभियोजन पक्ष ने जमानत याचिका का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि यह अचानक बिना किसी प्लान के भड़का दंगों का मामला नहीं है, बल्कि एक ऐसा मामला है जहां दंगों की प्लानिंग पहले से ही एक भयावह मकसद और सोची-समझी साजिश के साथ बनाई गई थी.
सॉलिसिटर जनरल ने क्या तर्क दिया?
इस मामले में अभियोजन पक्ष का प्रतिनिधित्व करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया था कि यह वैश्विक स्तर पर भारत को बदनाम करने की साजिश थी. साथ ही उन्होंने कहा कि मामले में सिर्फ लंबे समय तक जेल में बंद रहना जमानत का आधार नहीं हो सकता. उन्होंने तर्क दिया था, अगर आप अपने देश के खिलाफ कुछ भी करते हैं, तो बेहतर होगा कि आप तब तक जेल में रहें जब तक आप बरी न हो जाएं.
शरजील इमाम के वकील ने क्या कहा?
इस मामले में शरजील इमाम के वकील ने पहले दलील दी थी कि वो जगह, समय और उमर खालिद समेत सह-आरोपियों से पूरी तरह से कटा हुआ था. उन्होंने तर्क दिया था कि उसके भाषणों और व्हाट्सएप चैट में कभी किसी अशांति का ऐलान नहीं किया गया था.
क्या है दोनों पर आरोप?
उमर खालिद, शरजील इमाम और कई अन्य लोगों पर फरवरी 2020 के दंगों के कथित मास्टरमाइंड होने के आरोप में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है. इन दंगों में 53 लोग मारे गए थे और 700 से ज्यादा घायल हुए थे. दरअसल, यह हिंसा साल 2020 में सीएए और एनआरसी के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान भड़की थी.
शरजील इमाम को इस मामले में 25 अगस्त, 2020 को गिरफ्तार किया गया था. निचली अदालत की ओर से जमानत देने से इनकार करने के आदेश को चुनौती देते हुए, शरजील इमाम, उमर खालिद और बाकी आरोपियों ने अपनी लंबी कैद और जमानत प्राप्त अन्य सह-आरोपियों के साथ समानता का हवाला दिया.
शरजील इमाम और अन्य सह-आरोपियों – खालिद सैफी, गुलफिशा फातिमा और अन्य की जमानत याचिकाएं 2022 से हाई कोर्ट में लंबित हैं और समय-समय पर विभिन्न बेंचों ने इस मामले में सुनवाई की है.
पुलिस ने किया जमानत का विरोध
पुलिस ने सभी आरोपियों की जमानत याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि फरवरी 2020 की सांप्रदायिक हिंसा एक नैदानिक और रोगात्मक साजिश (Clinical and pathological intrigue) का मामला थी. पुलिस ने आरोप लगाया कि उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य आरोपियों के भाषणों ने सीएए-एनआरसी, बाबरी मस्जिद, तीन तलाक और कश्मीर को लेकर दी गई स्पीच के अपने एक से तरीके से डर की भावना पैदा की.
दिल्ली पुलिस ने तर्क दिया है कि ऐसे गंभीर अपराधों से जुड़े मामले में, जमानत नियम है और जेल अपवाद है के सिद्धांत का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.



