मार्गशीर्ष पूर्णिमा कब हैं? इस दिन करें दान पुण्य, सभी दोषों से मिलेगी मुक्ति
4PM न्यूज़ नेटवर्क: सनातन धर्म में पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्त्व माना जाता है। मार्गशीर्ष मास में आने वाली पूर्णिमा इस साल की आखिरी पूर्णिमा है। मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान और दान करने से व्यक्ति को पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। पूर्णिमा का व्रत रखने से व्यक्ति के जीवन में खुशहाली और संपन्नता आती है। इसके साथ ही व्यक्ति के सभी दुख दर्द दूर होते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत की तारीख, पूजा विधि और महत्व।
पूर्णिमा के दिन जगत के पालनहार श्री हरि विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी और चंद्रमा की पूजा करने से जीवन में खुशहाली आती है। इसे अगहन पूर्णिमा, मोक्षदायिनी पूर्णिमा और बत्तीसी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस तिथि पर किए गए दान-पुण्य, शुभकार्यों का फल किसी भी अन्य पूर्णिमा की तुलना में बत्तीस गुना ज्यादा मिलता है।
मार्गशीर्ष माह पूर्णिमा तिथि
- हिंदू पंचांग के अनुसार साल आखिरी यानी मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत शनिवार, 14 दिसंबर को शाम 4 बजकर 58 मिनट पर शुरू होगी।
- तिथि का समापन रविवार, 15 दिसंबर को रात 2 बजकर 31 मिनट पर होगी।
- इसके अनुसार पूर्णिमा तिथि का व्रत 15 दिसंबर को किया जाएगा।
- 15 दिसंबर को चंद्रोदय शाम 5 बजकर 14 मिनट पर होगा।
जानिए पूजा विधि
- मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन व्रत करने के लिए सुबह उठकर स्नान कर लें।
- इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है।
- लेकिन संभव न हो तो, नहान के पानी में गंगा जल डालकर स्नान कर सकते हैं।
- इसके बाद घर के मंदिर की साफ- सफाई कर लें, घर के मंदिर में दीपक जलाएं और व्रत का संकल्प लें।
- सभी देवी-देवताओं का गंगाजल से अभिषेक करें, फिर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा करें।
- श्री हरि को भोग लगाएं जिसमें तुलसी को जरुर शामिल करें, भोग लगाने के बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती करे।
- शाम को चंद्रोदय के बाद चंद्रमा का पूजन कर अर्घ्य दे, मान्यता है कि ऐसा करने से सभी दोषों से मुक्ति मिलती है, पूजा के बाद इस दिन दान पुण्य जरूर करें।