बेगुनाहों के जेल में बिताए सालों का हिसाब कौन देगा? SC ने जताई चिंता
कड़कड़डुमा कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि ये मामले झूठे थे और पुलिस ने बिना ठोस सबूत के आरोपितों को फंसाया, लेकिन इन निर्दोष लोगों का जीवन हमेशा के लिए प्रभावित हो गया.

4पीएम न्यूज नेटवर्क: भारत की जेलों में अंडरट्रायल कैदियों की संख्या भारी है, सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद स्थिति में सुधार नहीं दिख रहा है.
कई निर्दोष सालों तक जेल में बिताने के बाद बरी होते हैं, लेकिन उन्हें कोई मुआवजा नहीं मिलता. जमानत मिलने पर भी कई बार कैदियों को रिहा नहीं किया जाता. इस समस्या पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई है और सरकार से इस पर विचार करने का आग्रह किया है.
विचाराधीन कैदियों को जेल में सालों-साल रखे जाने के चलन को खत्म कर तत्काल जमानत देने के सर्वोच्च अदालत के आदेश के बावजूद हालात जस के तस हैं, जबकि बड़े पैमाने पर अदालतें सबूतों के आभाव या झूठे आरोपों का खुलासा होने पर कई साल जेल में विचाराधीन के तौर पर बिता चुके कैदियों को बरी करती हैं. ऐसे में सवाल ये है कि जेल में बेगुनाह के बिताए वक्त का हिसाब कौन देगा? क्योंकि कानून में किसी तरह के मुआवजे का प्रावधान नहीं है. यूपी के एक मामले में तो जमानत मिलने के बावजूद कैदी नहीं छोड़ा गया और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों को उसे 5 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया.
देशभर की जेलों में महज 25 फीसदी सजायाफ्ता और 75 फीसदी विचारधीन कैदी बंद हैं. जम्मू-कश्मीर, बिहार और दिल्ली की जेलों में सजायाफ्ता की तुलना में विचाराधीन कैदियों की संख्या का औसत इससे भी ज्यादा हैं. नालसा की समिति यूटीआरसी की रिपोर्ट के बावजूद केंद्र और राज्य सरकारों की आंखें नहीं खुलीं, जबकि सुप्रीम कोर्ट कई बार चिंता व्यक्त कर चुका है. हाल ही में दिल्ली 2020 दंगा मामले में कई निर्दोष लोगों को अदालत द्वारा बरी किया गया.
कड़कड़डुमा कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि ये मामले झूठे थे और पुलिस ने बिना ठोस सबूत के आरोपितों को फंसाया, लेकिन इन निर्दोष लोगों का जीवन हमेशा के लिए प्रभावित हो गया. किसी को ब्लैक लिस्ट कर दिया गया तो, किसी को एक के बजाए 4 केस में अपराधी बना दिया, तो किसी की जमा-पूंजी मुकदमों को लड़ते-लड़ते खत्म हो गई. कोर्ट ने 25 अगस्त को जिन लोगों को बरी किया उनमें ईशु गुप्ता, प्रेम प्रकाश, मनीष शर्मा सहित अन्य शामिल है.
विचाराधीन का हाल कई साल तक जेल में बिताने के बाद बाहर आने पर बदहाली वाला हो जाता है. कई मामलों में देखने को मिला है कि बरी होने के बाद बेगुनाह को कई मायनों में सजा मिलती है. कामकाज या नौकरी ठप्प, सामाजिक ताना-बाना टूट जाता है, परिवार चालाना मुश्किल हो जाता है. सीजेआई बीआर गवई ने हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान चिंता जताते हुए कहा कि सरकार को इस पर विचार करना चाहिए.
इसपर कानून क्या कहता है, सरकार की योजना क्या है? सुप्रीम कोर्ट के वकील आर के कपूर कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने विचाराधीन ही नहीं, बल्कि सजा की तय अवधि जेल में काट चुके सभी दोषियों को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया था. आदेश में कहा गया कि यदि ऐसा कोई दोषी जेल में है, तो उसे तुरंत रिहा किया जाए. इसी दौरान सीजेआई बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कैदियों को लेकर चिंता व्यक्त की थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पहली बार अपराध करने वाले विचाराधीन ने अगर अपराध में तय सजा का एक तिहाई वक्त जेल में बिता लिया है तो उन्हें सिर्फ बॉन्ड पर रिहा कर दिया जाए.
बेंच ने जेल सुपरिटेंडेंट से कहा था कि पहली बार के अपराधियों को लेकर वे बीएनएस की धारा 479 के तहत काम करना शुरू करें. अपराध में तय सजा का एक तिहाई वक्त जेल में बिता चुके विचाराधीन को महीने भर के भीतर छोड़ा जाए. साथ ही इसकी रिपोर्ट राज्य या केंद्र सरकार के संबंधित विभाग को दिया जाए.



