पति के मेंटनेंस के मांग पर पत्नी को झटका, जज बोले- ऐसे मुकदमों से परिवार नहीं बसते; अब भरना होगा जुर्माना

जज ने कहा कि विवाह का असली अर्थ साथ निभाने और परिवार जोड़ने में है, न कि माता-पिता से अलग होने में.

4पीएम न्यूज नेटवर्कः बरेली के पारिवारिक न्यायालय ने पत्नी की ओर से पति से भरण-पोषण की मांग पर दाखिल मुकदमे को खारिज करते हुए उस पर 10,000रुपये का जुर्माना लगाया. महिला ने शर्त रखी थी कि पति अपने माता-पिता से अलग रहकर ही साथ रहेगा.

उत्तर प्रदेश के बरेली में पारिवारिक न्यायालय ने एक ऐसे मामले में बड़ा फैसला सुनाया है, जिसमें पत्नी ने अपने पति पर भरण-पोषण के लिए खर्च देने (मेंटनेंस) का मुकदमा दायर किया था. अदालत ने न केवल मुकदमा खारिज किया, बल्कि महिला पर 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया. जज ने कहा कि विवाह का असली अर्थ साथ निभाने और परिवार जोड़ने में है, न कि माता-पिता से अलग होने में.

पूरा मामला बरेली के बारादरी क्षेत्र की एक महिला से जुड़ा है, जिसकी शादी साल 2018 में मुरादाबाद जिले के रहने वाले ब्रजेश से हुई थी. ब्रजेश एक शिक्षक हैं. शादी के एक साल के भीतर ही दोनों के बीच मतभेद शुरू हो गए और 2020 में महिला ने पति और ससुराल वालों पर उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए खर्च की मांग की.

महिला ने अपने बयान में कहा कि अगर उसका पति उसके साथ रहना चाहता है, तो उसे अपने माता-पिता को छोड़कर अलग रहना होगा. महिला के पिता ने भी कोर्ट में यही बात दोहराई. इस पर पारिवारिक न्यायालय के न्यायाधीश ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने सख्त टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि किसी पिता द्वारा अपनी बेटी को यह सिखाना कि पति अपने माता-पिता से अलग होकर रहे, यह दूषित सोच का उदाहरण है.

आदेश में जज त्रिपाठी ने कहा, ऐसी मानसिकता वैवाहिक संस्कारों के बिल्कुल खिलाफ है. विवाह का अर्थ परिवार को जोड़ना है, तोड़ना नहीं. अगर हर पत्नी अपने पति से यही अपेक्षा रखेगी कि वह अपने माता-पिता को छोड़ दे, तो समाज टूट जाएगा, परिवार की जड़ें कमजोर होंगी.

ब्रजेश ने अदालत में बताया कि उसकी कमाई साधारण है और वह अपने माता-पिता की सेवा करना चाहता है. लेकिन उसकी पत्नी चाहती है कि वह घर बेचकर अपने हिस्से का पैसा ले और मायके के पास आकर रहे. पति ने बताया कि उसकी पत्नी उच्च शिक्षित है और खुद भी करीब 25 हजार रुपये महीना कमा सकती है, फिर भी उसने कोर्ट में कहा कि उसे कुछ काम नहीं आता और पति से खर्चा दिलाया जाए.

महिला ने पति से 15 लाख रुपये का मुआवजा और अलग खर्च की मांग की थी. लेकिन अदालत ने सबूतों और बयान के आधार पर पाया कि महिला का मुकदमा आधारहीन है. चार साल तक चली सुनवाई के बाद जज ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने कहा कि महिला अपने पिता की गलत सलाह पर चल रही है. उन्होंने कहा, जब महिला के खुद के तीन भाई हैं, तो क्या भविष्य में उनके विवाह के बाद उनकी पत्नियां भी ऐसा ही दबाव डालेंगी कि माता-पिता को छोड़ दो कोर्ट ने कहा कि ऐसे मुकदमों से परिवार नहीं बसते, बल्कि टूटते हैं.

न्यायालय ने महिला का खर्च मांगने वाला मुकदमा खारिज करते हुए उस पर रूपए10,000 का जुर्माना लगाया और यह रकम पति ब्रजेश को देने का आदेश दिया. जज त्रिपाठी ने अपने आदेश में लिखा कि परिवार की नींव आपसी सहयोग और सम्मान पर टिकी होती है. विवाह एक ऐसा बंधन है जिसमें दोनों पक्षों को एक-दूसरे के परिवार को अपनाना चाहिए, न कि अलग करने की जिद करनी चाहिए.

बरेली फैमिली कोर्ट के इस फैसले को समाज के लिए एक नसीहत के रूप में देखा जा रहा है. अदालत ने साफ कहा कि अगर पत्नी यह शर्त रखे कि पति अपने माता-पिता को छोड़ दे, तो यह विवाह की भावना के विपरीत है. विवाह का अर्थ केवल दो लोगों का साथ नहीं, बल्कि दो परिवारों का मिलन है. इस फैसले से अदालत ने यह भी संदेश दिया कि कानून का दुरुपयोग कर के झूठे मुकदमे दायर करने वालों को चेतावनी मिलेगी. परिवार और समाज तभी मजबूत बन सकते हैं जब रिश्तों में त्याग, समझ और आदर की भावना हो.

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