वाह रे मोदी की डबल इंजन सरकार! मजदूरों को न तनख्वाह, न पेट भर खाना
गुजरात में प्रवासी मजदूरों का शोषण चरम पर... तनख्वाह नहीं, पेट भर खाना तक नहीं... भूखे रखकर कराया जा रहा जबरन काम...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः दोस्तों भारत जैसे विकासशील देश में प्रवासी मजदूरों की संख्या करोड़ों में है.. ये वे लोग हैं जो अपने गांवों की मिट्टी छोड़कर बड़े शहरों या दूसरे राज्यों में जाते हैं.. ताकि परिवार का पेट पाल सकें.. लेकिन कई बार ये सपने शोषण की भयानक हकीकत में बदल जाते हैं.. ऐसा ही एक मामला हाल ही में गुजरात के कच्छ जिले से सामने आया है.. जहां झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के बहरागोड़ा प्रखंड के मटिहाना पंचायत से 13 मजदूर फंस गए हैं.. इन मजदूरों पर न सिर्फ वेतन रोके जाने का आरोप है.. बल्कि भोजन तक न मिलने और घर लौटने की इजाजत न देने का भी आरोप है..
बता दें कि यह घटना 29 सितंबर 2025 को सोशल मीडिया पर पूर्व विधायक कुणाल सारंगी के एक पोस्ट से सुर्खियों में आई.. उन्होंने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को टैग करते हुए मजदूरों की दुर्दशा साझा की.. इसके बाद झारखंड सरकार ने तुरंत कार्रवाई शुरू कर दी.. लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर ‘डबल इंजन’ सरकार के राज में ऐसी घटनाएं क्यों हो रही हैं.. गुजरात और केंद्र दोनों जगह भाजपा की सरकार होने के बावजूद.. क्यों प्रवासी मजदूरों का शोषण रुक नहीं रहा..
झारखंड का पूर्वी सिंहभूम जिला आदिवासी बहुल इलाका है.. यहां की मिट्टी लाल-भूरी है.. लेकिन फसलें कमजोर है.. बेरोजगारी और गरीबी ने यहां के युवाओं को मजबूर कर दिया है.. कि वे रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों का रुख करें.. ये 13 मजदूर ज्यादातर आदिवासी समुदाय से है और उसी कड़ी का हिस्सा हैं.. ये मजदूर मुख्य रूप से खेती और छोटे-मोटे कामों से गुजारा करते थे.. लेकिन महंगाई और परिवार की जिम्मेदारियों ने उन्हें गुजरात बुलाया.. गुजरात ‘वाइब्रेंट गुजरात’ के नाम से जाना जाता है.. वहां सिरेमिक और विट्रिफाइड टाइल्स इंडस्ट्री तेजी से बढ़ रही है.. कच्छ जिला, रण ऑफ कच्छ की रेतीली जमीन पर बसे बेला गांव में Agilis Vitrified Private Limited नाम की कंपनी है.. यह कंपनी टाइल्स मैन्युफैक्चरिंग करती है.. और सैकड़ों मजदूरों को रोजगार देती है.. लेकिन इन 13 मजदूरों के लिए यह ‘रोजगार’ अभिशाप बन गया..
वहीं उनके परिवारों का कहना है कि ये मजदूर पिछले दो महीने से वहां काम कर रहे थे.. शुरुआत में सब ठीक था.. लेकिन धीरे-धीरे हालात बिगड़ गए.. एक रिश्तेदार ने बताया.. हमारे भाई-बेटे वहां पैसे कमाने गए थे.. लेकिन अब भूखे-प्यासे फंस गए हैं.. यह बात 30 सितंबर को देवडिस्कोर्स की रिपोर्ट में भी दर्ज है.. मटिहाना जैसे गांवों में प्रवासन आम है.. झारखंड सरकार के आंकड़ों के मुताबिक राज्य से हर साल 20 लाख से ज्यादा लोग दूसरे राज्यों में जाते हैं.. गुजरात इनका प्रमुख गंतव्य है.. लेकिन शोषण की कहानियां भी कम नहीं है..
आपको बता दें कि ये मजदूर एक लोकल कॉन्ट्रैक्टर गोपाल के माध्यम से गुजरात गए.. गोपाल झारखंड के ही इलाके से है और मजदूरों को ‘अच्छी नौकरी’ का लालच देकर भर्ती करता है.. कुणाल सारंगी के X पोस्ट के अनुसार गोपाल ने परिवारों को आश्वासन दिया था कि कंपनी में सुरक्षित काम मिलेगा.. वेतन समय पर आएगा।.. लेकिन हकीकत उलट थी.. मजदूरों को कंपनी के हॉस्टल में रखा गया.. जहां सुविधाएं कम थीं.. 12 से 14 घंटे काम कराया जाता था.. भट्टियों के पास खड़े होकर गर्मियों में टाइल्स लोड-अनलोड करने का काम था..
जिसको लेकर एक मजदूर के रिश्तेदार ने बहरागोड़ा पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई.. कॉन्ट्रैक्टर ने एक महीने से फोन पर टालमटोल कर रहा है… और कहता है कि कुछ दिन और रुको.. यह शिकायत 29 सितंबर को दर्ज हुई.. पुलिस ने प्रारंभिक जांच शुरू की.. लेकिन मामला इंटर-स्टेट होने से झारखंड सरकार को सूचित किया.. Agilis Vitrified कंपनी मोरबी में स्थित है.. जो कच्छ के भुज तहसील में आती है.. कंपनी का रजिस्ट्रेशन गुजरात इंडस्ट्रीज डिपार्टमेंट में है.. लेकिन मजदूरों की शिकायतों पर अभी कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है.. कंपनी के मालिकाना हक लोकल बिजनेसमैन के पास है.. जो सस्ते मजदूरों पर निर्भर है..
मजदूरों के आरोप गंभीर हैं.. जिसमे सबसे बड़ी बात भोजन न मिलना है.. वे कहते हैं कि कंपनी ने आखिरी दो हफ्तों से खाना बंद कर दिया.. सिर्फ एक समय का भोजन दिया जा रहा था.. जो मजदूरों के लिए प्रयाप्त नहीं था.. वहीं मजदूरों को पिछले महीने का एक भी पैसा नहीं दिया गया.. कंपनी मालिक का 18 हजार सैलरी देने का वादा था.. लेकिन सिर्फ कटौती करने के बाद 5-6 हजार एडवांस मिला.. एक मजदूर ने फोन पर रिश्तेदार को बताया.. हम यहां कैदी जैसे हैं… बाहर जाने की कोशिश की तो धमकी मिल रही है…
वहीं यह ‘बंधुआ मजदूरी’ जैसा लगता है.. भारत के बंधुआ मजदूरी उन्मूलन अधिनियम 1976 के तहत यह अपराध है.. मजदूरों को कर्ज के जाल में फंसाकर काम कराया जाता है.. यहां कॉन्ट्रैक्टर ने यात्रा खर्च का वादा किया.. लेकिन अब उगाही कर रहा है.. इसके अलावा एक मजदूर को हाथ में चोट लगी, लेकिन इलाज नहीं मिला… देवडिस्कोर्स रिपोर्ट में पूर्व विधायक कुणाल सारंगी का हवाला देते हुए कहा गया है कि मजदूरों को प्रताड़ित किया जा रहा है.. वहीं यह सिर्फ 13 लोगों की कहानी नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की नाकामी है.. गुजरात में सिरेमिक इंडस्ट्री में 5 लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूर हैं.. जिनमें से 40% झारखंड-बिहार से हैं.. एक रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में गुजरात में 200 से ज्यादा ऐसे केस दर्ज हुए..
आपको बता दें कि 29 सितंबर की दोपहर पूर्व विधायक कुणाल सारंगी ने X पर पोस्ट किया.. जिसमें लिखा कि आदरणीय मुख्यमंत्री हेमंत शर्मा जी, … कृपया मदद करें.. जिसमें चार तस्वीरें परिवारों की अटैच की गई.. बता दें कि सारंगी झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रवक्ता हैं.. पूर्व में बहरागोड़ा से विधायक रह चुके हैं.. वे प्रवासी मुद्दों पर सक्रिय हैं.. इससे पहले जुलाई 2025 में उन्होंने तमिलनाडु में एक मजदूर की मौत पर CM को पत्र लिखा था.. उनकी इस पोस्ट ने चिंगारी सुलगा दी.. JMM के आधिकारिक हैंडल ने भी रीपोस्ट किया.. विपक्ष ने इसे ‘डबल इंजन फेल’ का सबूत बताया..
आपको बता दें कि पोस्ट वायरल होते ही CM हेमंत सोरेन ने जिला प्रशासन.. और राज्य श्रम विभाग के प्रवासी नियंत्रण प्रकोष्ठ को निर्देश दिए.. पूर्वी सिंहभूम के डिप्टी कमिश्नर कर्ण सत्यार्थी ने PTI-भाषा को बताया कि हमने मजदूरों से संपर्क किया है.. वे सुरक्षित हैं लेकिन कंपनी ने घर लौटने की अनुमति नहीं दी.. हम कंपनी प्रबंधन और गुजरात अधिकारियों से बात करेंगे.. प्रवासी नियंत्रण प्रकोष्ठ की अधिकारी शिखा लकड़ा ने कहा कि कंपनी से बात की जाएगी.. वेतन दिलवाएंगे और सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करेंगे.. प्रकोष्ठ 2020 में COVID के दौरान बना था.. जो ऐसी शिकायतों को हैंडल करता है.. बहरागोड़ा पुलिस ने IPC की धारा 370 (ट्रैफिकिंग) और श्रम कानूनों के तहत FIR दर्ज की..
कच्छ जिला प्रशासन ने अभी कोई बयान नहीं दिया.. CM गुजरात भूपेंद्र पटेल के ऑफिस से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई.. लेकिन झारखंड सरकार ने गुजरात के संबंधित अधिकारियों को पत्र भेजा.. वहीं यह पहला केस नहीं है.. झारखंड से गुजरात जाने वाले 10 लाख मजदूरों में 20% शोषण का शिकार होते हैं.. 2023 में, गुजरात के सिरेमिक फैक्टरियों में 500 से ज्यादा बंधुआ मजदूरी के केस मिले.. 2024 में अहमदाबाद में 50 बिहारी मजदूरों को वेतन न मिलने पर हाईकोर्ट ने हस्तक्षेप किया..
राष्ट्रीय स्तर पर ILO की रिपोर्ट कहती है कि भारत में 80 लाख बंधुआ मजदूर हैं.. जिसमें ज्यादातर प्रवासी मजदूर है.. गुजरात मॉडल की आलोचना होती है.. विकास तो है, लेकिन मजदूरों के अधिकारों की अनदेखी हो रही है.. 2025 में ग्रीन एनर्जी प्रोजेक्ट्स में भी ऐसी शिकायतें आईं.. जहां मजदूरों को बिना वेतन के काम कराया गया.. झारखंड सरकार ने ‘प्रवासी सहायता ऐप’ लॉन्च किया… लेकिन जागरूकता कम है.. कॉन्ट्रैक्टरों पर सख्ती की जरूरत है.. केंद्र सरकार का ई-श्रम पोर्टल है.. लेकिन रजिस्ट्रेशन सिर्फ 30% है..
झारखंड सरकार ने कंपनी पर दबाव डाला.. अगर वेतन न मिला, तो श्रम मंत्रालय के तहत केस होगा.. गुजरात लेबर डिपार्टमेंट को नोटिस भेजी गई है.. परिवारों को अस्थायी सहायता के लिए 5- 5 हजार रुपये प्रत्येक परिवार को दिया गया है.. झारखंड में लोकल रोजगार बढ़ाना जरूरी हो गया है.. जिसको लेकर 2025-30 तक 10 लाख नौकरियां देने का CM सोरेन की योजना है.. NGO जैसे ‘मेहनतकश एसोसिएशन’ मदद कर रहे है.. वे मजदूरों को कानूनी सहायता दे रहे है.. लेकिन सिस्टम में सुधार चाहिए.. कॉन्ट्रैक्टर रजिस्ट्रेशन, न्यूनतम वेतन लागू होना चाहिए..



