यूपी विधानसभा में योगी के सामने दोहरी चुनौती
- 29 जुलाई से शुरू हो रहा मानसून सत्र, हंगामेदार होने के आसार
- विपक्ष के साथ सहयोगी भी खड़ी करेंगे भाजपा के लिए मुश्किलें
- सहयोगियों ने योगी सरकार पर ही उठाए सवाल
- पार्टी में भी जारी है आंतरिक कलह, योगी-केशव आमने-सामने
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद से उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के अंदर लगातार उठापटक मची हुई है। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के बीच लगातार चूहे-बिल्ली का खेल जारी है। लोकसभा नतीजों की समीक्षा के लिए हुई बैठकों में जिस तरह से केशव प्रसाद मौर्य ने संगठन को सरकार से ऊपर बताया था, उसके बाद से ही दोनों के बीच तल्खियों की खबरों को हवा मिल गई थी। साफ है प्रदेश भाजपा में सरकार बनाम संगठन और योगी के सामने केशव का खेल लगातार जारी है।
केशव कुछ दिनों से काफी एक्टिव नजर आ रहे हैं। सहयोगी दल व पार्टी के विधायक और सरकार के मंत्री भी केशव से मुलाकात कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर अब मुख्यमंत्री योगी भी पार्टी विधायकों व मंत्रियों से मुलाकात कर रहे हैं। पार्टी में मची सरगरमी इसलिए भी अहम है क्योंकि 29 जुलाई से यूपी विधानसभा का मानसून सत्र शुरू हो रहा है, तो वहीं प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव भी होना है। ऐसे में कहीं न कहीं उपचुनाव के नतीजे सीएम योगी के भविष्य का फैसला जरूर करेंगे। वहीं विधानसभा में भी योगी सरकार के सामने विपक्ष के साथ-साथ अपनों की भी चुनौतियां होंगी। सभी की नजरें 27 जुलाई को दिल्ली में होने वाली बैठक पर टिकी हैं। जहां नीती आयोग की बैठक के बाद पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के साथ यूपी के मुद्दे पर बैठक होनी है। जिसमें सीएम योगी और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के मौजूद रहने की संभावना है।
अनुप्रिया, निषाद और जयंत ने दिखाए तेवर
लोकसभा चुनाव में हार के बाद सबसे पहले अपना दल सोनेलाल की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने योगी सरकार को घेरते हुए सरकारी नौकरियों में भेदभाव करने का आरोप लगाया था। उन्होंने चिट्ठी लिखते हुए दावा किया कि पिछड़े और दलित वर्ग के युवाओं को नॉट सूटबेल कहकर भेदभाव किया जा रहा है जिससे उन्हें नौकरियों में आरक्षण का लाभ नहीं मिल पर रहा है। अपना दल इस मुद्दे को लेकर अपने स्टेंड पर कायम हैं। वहीं दूसरी तरफ बीजेपी की दूसरी सहयोगी निषाद पार्टी और कैबिनेट मंत्री संजय निषाद ने भी बुलडोजर को लेकर सरकार पर सवाल उठाते हुए घेरने की कोशिश की। उनका आरोप है कि अधिकारी इतने बेलगाम हो गए हैं कि वो मंत्रियों की भी नहीं सुनते हैं। उन्होंने कहा कि जब वो ऐसा करते हैं तो इसका असर चुनावों पर पड़ता है। इसके चलते कार्यकर्ताओं में नाराजगी रहती है। इधर, जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोकदल भी कांवड़ मार्ग पर दुकानों के सामने नाम लिखने के फैसले पर अपनी आपत्ति दर्ज करा चुकी है।
सत्र में सहयोगियों पर भी होगी नजर
उत्तर प्रदेश विधानमंडल का मानसून सत्र 29 जुलाई से शुरू हो रहा है। इस बार सदन में योगी सरकार की राह उतनी आसान होने वाली नहीं है। जहां एक तरफ लोकसभा चुनाव में जीत के बाद सपा के हौसले बुलंद हैं तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी के सहयोगी दलों पर भी सबकी नजरें टिकी है जो चुनाव के बाद से ही प्रदेश सरकार पर हमलावर दिखाई दे रहे हैं। बीजेपी की आपसी कलह के बीच अपना दल सोनेलाल, निषाद पार्टी और आरएलडी भी अलग-अलग मुद्दों को लेकर प्रदेश सरकार को घेरने में पीछे नहीं है। देखना होगा कि विधानसभा सत्र में भी क्या इनके तेवर ऐसे ही दिखाई देंगे या नहीं। इस बार विपक्ष के साथ सहयोगी दलों पर भी अपने पक्ष को रखने का दबाव होगा। अगर वो अपने मुद्दे मजबूती से नहीं रखते हैं तो इसका असर उनके वोटबैंक पर पड़ेगा। लेकिन, अगर वो सरकार को घेरेंगे तो गठबंधन का तालमेल बिगड़ता दिखाई दे सकता है।
सीएम केजरीवाल को राहत नहीं
- सीबीआई मामले में कोर्ट ने 8 अगस्त तक बढ़ाई न्यायिक हिरासत
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं। दिल्ली शराब घोटाले से जुड़े सीबीआई मामले में राउज एवेन्यू कोर्ट ने मुख्यमंत्री केजरीवाल की न्यायिक हिरासत को फिर बढ़ा दिया है। अब आठ अगस्त को मामले की सुनवाई होगी। तिहाड़ जेल से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए केजरीवाल की पेशी हुई। सीबीआई ने अरविंद केजरीवाल के तिहाड़ जेल से ही गिरफ्तार किया था।
सीएम केजरीवाल के अलावा पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और बीआरएस नेता के कविता की भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कोर्ट में पेशी हुई है। राउज एवेन्यू कोर्ट ने मनीष सिसोदिया और के कविता की न्यायिक हिरासत 31 जुलाई तक बढ़ा दी है। केजरीवाल को विशेष न्यायाधीश कावेरी बावेजा के समक्ष वीडियो कॉन्फे्रंसिंग के जरिये पेश किया गया था। वह अपनी न्यायिक हिरासत की अवधि समाप्त होने पर सीबीआई और ईडी मामलों के सिलसिले में पेश हुए थे।
आप को मिला नया ठिकाना
दिल्ली में आम आदमी पार्टी को नया ठिकाना मिल गया है। केंद्र सरकार ने पार्टी दफ्तर के लिए जगह अलॉट कर दी है। जानकारी के मुताबिक, आप के राष्ट्रीय कार्यालय का नया पता अब बंगला नंबर-1, रविशंकर शुक्ला लेन होगा। यहीं से पार्टी की सभी गतिविधियां संचालित होंगी। केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के बाद आप को नया कार्यालय अलॉट किया है। हफ्तेभर पहले ही दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार के सामने डेडलाइन तय की थी और जगह देने का निर्देश दिया था। हाई कोर्ट का कहना था कि अब और वक्त नहीं दिया जा सकता है। 25 जुलाई तक इस मामले में फैसला लिया जाए। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने आप को राउज एवेन्यू में स्थित मौजूदा दफ्तर खाली करने का निर्देश दिया है।
केंद्र सरकार को लगा ‘सुप्रीम’ झटका
- कोर्ट बोला- राज्यों को खदानों और खनिजों वाली भूमि पर टैक्स लगाने का अधिकार
- सीजेआई की मौजूदगी वाली 9 जजों की पीठ ने 8-1 के बहुमत से सुनाया फैसला
- जस्टिस बीवी नागरत्ना का फैसला अलग
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। सर्वोच्च अदालत से केंद्र सरकार को एक बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने आज एक बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट की नौ जजों की संविधान पीठ ने 8-1 के बहुमत से फैसला सुनाया कि संविधान के तहत राज्यों को खदानों और खनिजों वाली भूमि पर कर यानी टैक्स लगाने का अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि निकाले गए खनिज पर देय रॉयल्टी कोई कर नहीं है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने सात अन्य जजों के साथ बहुमत से फैसला सुनाया, जबकि जस्टिस बीवी नागरत्ना ने असहमति जताते हुए इनके खिलाफ फैसला सुनाया।
सीजेआई ने सुनाया बहुमत का फैसला
बहुमत के फैसले के ऑपरेटिव हिस्से को पढ़ते हुए, चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि शीर्ष अदालत की सात-न्यायाधीशों की संविधान पीठ का 1989 का फैसला, जिसमें कहा गया था कि रॉयल्टी एक कर है, गलत है। शुरू मे सीजेआई ने कहा कि पीठ ने दो अलग-अलग फैसले सुनाए हैं और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने इस मामले में अन्य जजों से अलग असहमतिपूर्ण विचार दिए हैं।
राज्यों के पास खदानों पर कर लगाने की विधायी क्षमता नहीं : नागरत्ना
वहीं अपना फैसला पढ़ते हुए न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि राज्यों के पास खदानों और खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने की विधायी क्षमता नहीं है। पीठ ने इस बेहद विवादास्पद मुद्दे पर फैसला किया कि क्या खनिजों पर देय रॉयल्टी खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 के तहत एक कर है, और क्या केवल केंद्र को ही इस तरह की वसूली करने की शक्ति है या राज्यों को भी अपने क्षेत्र में खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने का अधिकार है। हालांकि, बहुमत न होने की वजह से उनका फैसला लागू नहीं हो सका।