तो यूपी में डैमेज कंट्रोल की कमान संभाली आलाकमान ने

लखनऊ। देश की सबसे बड़ी आबादी वाले प्रदेश उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में अब महज 9 महीने का रह गए है। कोरोना वायरस के कहर के बावजूद उत्तर प्रदेश की चुनावी चर्चा जोर पकड़ रही है। राजनीतिक दलों के साथ-साथ आम नागरिक भी तमाम तरह की संभावनाओं और अनुमानों पर अपना गणित लगा रहा हैं। गठबंधन और महागठबंधन को लेकर अटकलों की प्रक्रिया भी तेज हो गई है। इसमें मुख्य राजनीतिक दलों का जिक्र है साथ ही असदुद्दीन ओवैसी और अरविंद केजरीवाल को लेकर भी चर्चाएं हो चुकी हैं। कोई उन्हें वोट काटने वाले का खिताब दे रहा है तो कोई उनके गौरव की कहानियां गढ रहा है। लेकिन इसके अलावा राजनीतिक पंडितों की अटकलों और अनुमानों की बात करें तो उत्तर प्रदेश में सीधी लड़ाई सिर्फ बीजेपी और सपा के बीच ही देखने को मिल रही है इसके साथ ही बसपा को लंबी दौड़ का घोड़ा भी बताया जा रहा है, लेकिन सत्ता पर बसपा सुप्रीमो मायावती का कब्जा होगा, इसकी संभावनाएं राजनीति के विशेषज्ञों को कम ही देखने को मिलती हैं। खैर, यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि हकीकत अभी भी दूर है ।
ऐसी स्थिति में राज्य सरकार के पास चुनाव की तैयारियों और रणनीतियों की जांच करने का समय नहीं है, इसलिए भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने इसका ध्यान रखा है। हाल ही में राजधानी दिल्ली में शीर्ष नेतृत्व और संघ के बीच एक बैठक हुई थी जिसमें दावा किया जा रहा है कि यह बैठक उत्तर प्रदेश की मौजूदा स्थिति और अगले साल के शुरुआती महीने में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर थी। इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, संगठन मंत्री सुनील बंसल और संघ के दत्तात्रेय होसबोले मौजूद थे।
कई मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया कि उत्तर प्रदेश में डैमेज कंट्रोल के लिए यह मीटिंग रखी गई है। उत्तर प्रदेश में बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में है। आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा का चुनाव जीतकर सरकार बनाना बेहद जरूरी है। खासकर दिल्ली, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में सत्ता गंवाने वाली और बिहार और मध्य प्रदेश में कड़े संघर्ष के बाद सत्ता तक पहुंचने वाली भाजपा किसी भी सूरत में उत्तर प्रदेश चुनाव में जीत हासिल करना चाहती है।
हाल ही में संपन्न हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में जहां भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है, वहीं इस पर भी मुहर लग गई है कि बीजेपी इस चुनाव में वाराणसी, मथुरा और गोरखपुर जैसे महत्वपूर्ण जिलों में नाकाम साबित हुई है, जबकि ये जिले इसके ऐसे किले हैं, जिनको भेद करना आसान नहीं था। अगर लोगों की नाराजगी का कारण देखा योगी आदित्यनाथ की सरकार से देखा जाए तो इसका सबसे बड़ा कारण कोरोना काल है।
हालांकि पूरे देश में महामारी ने स्वास्थ्य विभाग और उसके कुप्रबंधन को खोल कर रख दिया है, लेकिन कुछ राज्यों में हालात बद से बदतर नजर आ रहे है। कई राज्यों पर आंकड़ों में धांधली के आरोप भी लगे हैं। उत्तर प्रदेश उन राज्यों में से एक है। उत्तर प्रदेश में ऑक्सीजन की कमी, इंजेक्शन और बेड की कमी ने सरकार के लिए काफी परेशानी खड़ी कर दी है। इसके बाद पंचायत चुनाव कराने के लिए प्रदेश सरकार भी कठघरे में खड़ी हो गई है।
पंचायत चुनाव में जान गंवाने वाले शिक्षकों और अधिकारियों के आंकड़े एकत्र नहीं करने और इस मुद्दे पर लीपापोती करने के आरोप भी प्रदेश सरकार पर लगाए गए हैं। हाल के दिनों में गंगा नदी में बह रही लाशों और प्रयागराज घाट पर दफनाई गई हजारों शवों और लाश का पीछा कर रहे कुत्तों की तस्वीरें सामने आने के बाद राज्य सरकार की खूब किरकिरी हुई हैं। राज्य सरकार से नाराजगी का यही मुख्य कारण है।
दूसरी ओर योगी सरकार को पसंद करने वालों की संख्या भी कम नहीं है। योगी सरकार की मुठभेड़ नीति, प्रक्रिया के साथ टीकाकरण शुरू करने की रणनीति इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद अन्य राज्यों की तुलना में कोरोना वायरस का बेहतर नियंत्रण और चरणबद्ध तरीके से लॉकडाउन भी खूब पसंद किया जा रहा है। शीर्ष नेतृत्व ने पंचायत चुनाव की जिम्मेदारी प्रदेश सरकार और प्रदेश नेतृत्व को सौंपी थी, जिसे प्रदेश सरकार ने अति आत्मविश्वास के साथ लड़ा।
जब चुनाव हार गए तो फिर भाजपा आलाकमान ने भी कबूल किया कि अति आत्मविश्वास के कारण वह चुनाव में हार गए। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व और खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नहीं चाहते कि इसी अति आत्मविश्वास के साथ विधानसभा चुनाव लड़ा जाए। भाजपा आलाकमान किसी भी तरह का जोखिम उठाने को तैयार नहीं है, यही वजह है कि चुनाव से 9 महीने पहले ही चुनाव के लिए नीतियां तैयार करने का काम शुरू हो चुका है।
वर्तमान में केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा डिप्टी सीएम की कुर्सी पर बैठे हैं। ऐसी स्थिति में ऐसा हो सकता है कि प्रदेश में तीन उपमुख्यमंत्री हो सकते हैं, लेकिन संभावना से ज्यादा केशव प्रसाद मौर्य को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है। चूंकि उत्तर प्रदेश की राजनीति में जाति एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन जाता है, इसलिए ओबीसी मतदाताओं पर निशाना साधने के लिए केशव मौर्य को डिप्टी सीएम के पद से हटाना भी घातक कदम हो सकता है।
बीजेपी के लिए यह बदलाव थोड़ा टेढ़ा साबित होगा। हालांकि इस बात के पूरे संकेत हैं कि अगला चुनाव भी भाजपा योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर ही लड़ेगी, ऐसी स्थिति में भाजपा के लिए केशव प्रसाद मौर्य और अरविंद शर्मा के बीच न्याय करना मुश्किल हो जाएगा। इसके साथ ही दिनेश शर्मा का भी अलग ही असर होता है, जिसे नजरअंदाज करना आसान नहीं है। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि भाजपा का नेतृत्व दिल्ली में बैठकर इस नुकसान को कैसे नियंत्रित करेगा।

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