सियासी पारी शुरू कर सकती हैं उत्तराखंड की राज्यपाल बेबी रानी मौर्य
- पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य की सक्रिय राजनीति से यूपी में बीजेपी को मिल सकता फायदा
- दलित वोटरों को गोलबन्द करने का मिल सकता है जिम्मा
लखनऊ। उत्तराखंड के राज्यपाल पद से बेबी रानी मौर्य के इस्तीफे के बाद ये कयास लगाये जाने लगे हैं कि उनकी अगली भूमिका क्या होगी? दूसरे राज्यपालों की तरह वे अभी उम्र के उस पड़ाव पर नहीं हैं, जहां से रिटायरमेंट का रास्ता खुलता है। चर्चा ये चल पड़ी है कि बेबी रानी मौर्या को चुनाव से पहले यूपी में लगाया जाएगा। ऐसा करने के लिए उन्हें फिर से बीजेपी ज्वाइन करनी पड़ेगी। दो राज्यपाल ऐसा कर चुके हैं। हालांकि वे सक्रिय राजनीति में तो नहीं लौट सके लेकिन, बेबी रानी मौर्य के लिए इसकी संभावना बरकरार है। यूपी के राज्यपाल रहे राम नाईक और राजस्थान के राज्यपाल रहे दिवंगत कल्याण सिंह ने दोबारा पार्टी ज्वाइन की थी। गवर्नर पद पर कार्यकाल पूरा होने के बाद दोनों ने औपचारिक तौर पर पार्टी की सदस्यता ली थी। यदि बेबी रानी मौर्य सक्रिय राजनीति में उतरती हैं तो वह दोबोरा पार्टी ज्वाइन करेंगी। बेबी रानी मौर्य आगरा की रहने वाली हैं और दलित समाज से हैं। इसीलिए पार्टी उन्हें यूपी विधानसभा चुनाव से पहले दलित वोटरों को गोलबन्द करने के काम में लगा सकती है। वे 1995-2000 तक आगरा की मेयर रह चुकी हैं। 2018 में उत्तराखण्ड की राज्यपाल बनने से पहले वे राजनीतिक रूप से काफी सक्रिय थीं।
दलित समाज को अपने पक्ष में लाने की कोशिश में भाजपा
भाजपा ने पिछले सालों में पिछड़े समुदाय के नेताओं को जमकर जोड़ा है, लेकिन दलित समुदाय का उसका गुलदस्ता उतना हरा-भरा दिखाई नहीं देता। बड़े और चर्चित दलित नेता पार्टी से अलग ही हुए हैं। उदित राज और सावित्री बाई फुले ने पार्टी छोड़ दी थी। हालांकि रामशंकर कठेरिया, कौशल किशोर, भानु प्रताप वर्मा, एसपी सिंह बघेल जैसे दलित नेता तो हैं ही, इन्हें तो हाल ही में केन्द्र में मंत्री भी बनाया गया है। दलितों में जाटव के बाद दूसरे नंबर पर सबसे बड़ी संख्या पासी समाज की है। धोबी, कोरी और वाल्मीकि तीसरे, चौथे और पांचवें नंबर पर आते हैं। ऐसे में बीजेपी की कोशिश है कि जाटव के अलावा बाकी दलित समाज को अपने साथ जोड़ा जाए।