ऑक्सीजन विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल

नई दिल्ली। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश में ऑक्सीजन के उत्पादन और वितरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है। इस हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित 12 सदस्यीय टास्क फोर्स की सिफारिशों और सुझावों को कोर्ट को बताया गया है लेकिन हलफनामे का जिस हिस्से पर सबसे ज्यादा विवाद हो रहा है, वह है दिल्ली की ऑक्सीजन ऑडिट कमेटी की अंतरिम रिपोर्ट। 8 मई को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने देश में ऑक्सीजन वितरण में सुधार के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया। उस वक्त कोरोना की दूसरी लहर कहर बरपा रही थी। ऑक्सीजन को लेकर हंगामा हुआ। अब कोर्ट द्वारा गठित टास्क फोर्स ने उस दौरान केंद्र द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना की है। बताया जाता है कि जिस तरह से इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन का इस्तेमाल बंद किया गया था। इस्पात उद्योग सहित अन्य उत्पादकों के माध्यम से चिकित्सा ऑक्सीजन का उत्पादन बढ़ाया गया था। संकट के समय उठाया गया यह सही कदम था। टास्क फोर्स ने देश के 18 बड़े शहरों में ऑक्सीजन का उत्पादन बढ़ाने की सिफारिश की है। यह भी कहा गया है कि इन शहरों में 100 मीट्रिक टन भंडारण होना चाहिए। इसके अलावा टास्क फोर्स ने राज्यों की सामान्य ऑक्सीजन आवश्यकता के 20 प्रतिशत का बफर स्टॉक रखने की भी सिफारिश की है। इसका उपयोग आपातकालीन आवश्यकता के समय में किया जा सकता है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस हलफनामे के साथ दिल्ली के ऑक्सीजन ऑडिट की अंतरिम रिपोर्ट भी संलग्न की है। इसके लिए कोर्ट ने 8 मई को एक कमेटी का गठन किया था। इसमें एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया, मैक्स हेल्थकेयर के संदीप बुद्धिराजा के अलावा केंद्र और दिल्ली सरकार के 1-1 वरिष्ठ आईएएस अधिकारी शामिल थे। रिपोर्ट के मुताबिक पेट्रोलियम एंड ऑक्सीजन सेफ्टी ऑर्गनाइजेशन ने इस कमेटी को बताया कि दिल्ली में अतिरिक्त ऑक्सीजन उपलब्ध है। इसकी आपूर्ति दूसरे राज्यों में की जा सकती थी। दिल्ली को लगातार अधिक ऑक्सीजन देने से 11 अन्य राज्य प्रभावित हो सकते थे, जहां कोरोना के मामले बहुत अधिक थे। अस्पताल के बिस्तर की क्षमता के हिसाब से दिल्ली को 289 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत थी लेकिन उन्होंने 1140 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की मांग की। हालांकि, यह रिपोर्ट इस मायने में विरोधाभासी है कि जब दिल्ली में ऑक्सीजन की मांग इतनी कम थी, तो समिति ने बाद में इसे 700 से घटाकर 500 और फिर 400 मीट्रिक टन क्यों किया? सुप्रीम कोर्ट ने अस्पताल के बेड कैपेसिटी फॉर्मूला से ऑक्सीजन डिमांड के आकलन को गलत बताया है। लेकिन अंतरिम रिपोर्ट में मांग के आंकड़ों को उसी आधार पर रखा गया है। इसके अलावा दिल्ली के तमाम अस्पतालों का डेटा भी इस रिपोर्ट में नहीं है। इन बिंदुओं पर दिल्ली सरकार ने समिति पर आपत्ति जताई है। उस पत्र को भी हलफनामे के परिशिष्ट के रूप में संलग्न किया गया है।

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