बाल विवाह निषेध कानून को नहीं रोक सकते पर्सनल लॉ, सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि बाल विवाह के खिलाफ बने कानून को पर्नसल लॉ के जरिए बाधित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि बाल विवाह, जीवन साथी अपनी इच्छा से चुनने के अधिकार का भी उल्लंघन करता है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा की सदस्यता वाली पीठ ने बाल विवाह रोकने के लिए बने कानून को प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए कुछ दिशा निर्देश जारी किए।
अपने फैसले में मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि बाल विवाह की रोकथाम के लिए बने बाल विवाह निषेध कानून को पर्सनल कानूनों के जरिए बाधित या रोका नहीं किया जा सकता। पीठ ने कहा कि अधिकारियों को बाल विवाह रोकने और नाबालिगों की सुरक्षा के साथ ही दोषियों को कड़ी सजा दिलाने पर फोकस करना चाहिए। अपने फैसले में पीठ ने ये भी माना कि बाल विवाह निषेध कानून में कुछ खामियां भी हैं।
बाल विवाह निषेध कानून, 2006 देश में बाल विवाह रोकने के लिए लागू किया गया था। साल 1929 में यानी कि आजादी से पहले से देश में ये कानून मौजूद है। साल 2006 में तत्कालीन सरकार ने इस कानून में बदलाव कर बाल विवाह निषेध कानून 2006 लागू किया। पीठ ने कहा कि ऐसी कोशिश की जानी चाहिए कि अलग-अलग समुदायों के लिए कानून में लचीलापन मौजूद रहे। कोई कानून तभी सफल हो सकता है, जब उसमें विभिन्न पक्षों का समन्वय और सहयोग होगा। इसके लिए जांच अधिकारियों को प्रशिक्षित करने और नए तौर तरीके सिखाने की जरूरत है। हमारा मानना है कि इसमें समाज आधारित सोच का समावेश किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि बाल विवाह रोकने के लिए समाज में जागरुकता फैलाने की जरूरत और सिर्फ सजा का प्रावधान करने से कुछ नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने सोसाइटी फॉर एनलाइनमेंट एंड वॉलेंटरी एक्शन की याचिका पर यह फैसला सुनाया। एनजीओ का आरोप था कि बाल विवाह निषेध कानून को शब्दश: लागू नहीं किया जा रहा है। एनजीओ ने साल 2017 में याचिका दायर की थी, जिस पर कोर्ट ने अब फैसला सुनाया है।

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