छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के संकट का हल निकालेंगी प्रियंका

नई दिल्ली। पंजाब और राजस्थान में अंतर्कलह से जूझ रही कांग्रेस की हालत छत्तीसगढ़ में भी इसी ट्रैक पर है। 17 जून को ढाई साल पूरे करने वाले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच विवाद पुराना है, लेकिन पिछले 15 दिनों में इसमें तेजी आई है। सिंहदेव पिछले दो सप्ताह में कम से कम दो बार मुख्यमंत्री के फैसले का विरोध कर चुके हैं। मामला बिगड़ता देख प्रियंका गांधी ने दिल्ली में दोनों नेताओं को नसीहत दे डाली है, लेकिन सवाल यह है कि क्या सिंहदेव इस बात नसीहत को मानेंगे।
प्रियंका से मुलाकात के बाद दिल्ली से लौटे बघेल ने प्रदेश में नेतृत्व बदलने से इनकार करते हुए कहा कि आलाकमान जब भी उनसे कहेेगा वह मुख्यमंत्री पद छोड़ देंगे। इस दौरान सिंहदेव भी उनके साथ थे। बघेल का दिल्ली में सोनिया गांधी से मिलने का भी कार्यक्रम था, लेकिन यह मुलाकात नहीं हो सकी। यह भी दिलचस्प है कि राहुल गांधी छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के संकट से आज भी दूर हैं, जबकि उन्होंने ढाई साल पहले सत्ता का फार्मूला तैयार किया था।
कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता खुलकर नहीं कहते हैं लेकिन सच्चाई यह है कि ढाई साल पहले के इस फार्मूले में कांग्रेस के मौजूदा संकट की जड़ें छिपी हुई हैं। कांग्रेस नेता ढाई साल तक मुख्यमंत्री जैसे किसी फार्मूले की बात से इनकार करते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि यह चर्चा बघेल के मुख्यमंत्री बनने के साथ ही शुरू हो गई।
2018 में विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद जब छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री चुनने की बात आई तो 67 में से 44 विधायकों ने टीएस सिंहदेव का समर्थन किया। इधर, कांग्रेस आलाकमान चाहता था कि भूपेश बघेल सीएम बने। इसके बाद राहुल गांधी ने मुख्यमंत्री पद के चार संभावित उम्मीदवारों-टीएस सिंह देव, ताम्रध्वज साहू, भूपेश बघेल और चरणदास महंत से उनके घर पर मुलाकात की और भूपेश बघेल के नाम पर फैसला किया । इसके बाद से चर्चा थी कि ढाई साल बाद सिंहदेव मुख्यमंत्री बनेंगे।
मुख्यमंत्री बघेल के समर्थकों का मानना है कि ढाई साल के सीएम जैसे फार्मूले का इस्तेमाल गठबंधन सरकारों में होता है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के पास तीन चौथाई बहुमत है। उनका यह भी कहना है कि मौजूदा विवाद निगमों में बदलाव और नेतृत्व परिवर्तन से ज्यादा संगठन से जुड़ा है। सिंहदेव समर्थक खेमा राजनीतिक नियुक्तियों में अपना हिस्सा चाहते हैं। कुछ लोग कांग्रेस संगठन में भी एडजस्ट होने की उम्मीद कर रहे हैं। भूपेश बघेल के समर्थकों को इस प्रक्रिया में ही भी कहीं ज्यादा फायदा न हो जाए इसके लिए दोनों पक्षों की ओर से खूब बयानबाजी हो रही है।
दिल्ली से लौटने के बाद बघेल ने जो पहला रिएक्शन दिया, उससे यही संकेत मिलते हैं। बघेल ने कहा कि उन्होंने निगम बोर्ड में नियुक्तियों के संबंध में दिल्ली में शीर्ष नेताओं से बात की है और हाईकमान के निर्देश मिलते ही वह सूची जारी करेंगे। इससे ऐसा लगता है कि प्रियंका गांधी ने इस संकट को दबाने के लिए फिलहाल यह रणनीति बनाई है। इन नियुक्तियों में प्रदेश कांग्रेस के अलग-अलग खेमों को प्रतिनिधित्व देने की योजना हो सकती है। अगर बघेल इस पर अमल करते हैं तो वह कुछ समय के लिए विरोधी खेमों को संतुष्ट कर सकते हैं, लेकिन लंबे समय के लिए यह फार्मूला कारगर सिद्ध नहीं होगा भविष्य में इस समीकरण से उनके ही कमजोर पडऩे का खतरा बना रहेगा।

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