देश का दुर्भाग्य है अन्नदाता की कोई सुनने वाला नहीं

  • 2022 और 2024 के चुनाव में भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क. लखनऊ। तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन को चलते लंबा समय हो गया पर कोई किसानों की समस्या को सुनने को तैयार नहीं है। इस देश का दुर्भाग्य है कि यहां अन्नदाता इस हाल में हंै। अगले साल विधानसभा चुनावों में सरकारों को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। किसानों की नाराजगी 2022 के चुनाव में भाजपा को भारी पड़ेगी। ये बातें निकलकर सामने आई चर्चित पत्रकार एनके सिंह, वरिष्ठ पत्रकार अशोक वानखेड़े, वरिष्ठ पत्रकार ममता त्रिपाठी व 4 पीएम के संपादक संजय शर्मा के साथ एक लंबी परिचर्चा में।

परिचर्चा में एनके सिंह ने कहा, किसान खेती छोड़ता है तो शहरों में रिक्ïशा चलाता है और जब उसे कोरोना हो जाता है तो वो कहां जाए। उन्होंने कहा भारत एक कृषि प्रधान देश है। बावजूद मोदी सरकार को किसानों की परवाह नहीं। हर 37 मिनट में एक किसान आत्महत्या कर रहा है। 2022 और 2024 के चुनाव में भाजपा को इसका भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। अशोक वानखेड़े ने कहा, भाजपा ने हमेशा किसानों का बंटवारा किया है। किसान हमेशा सरकार को माईबाप मानकर चुप रहता है। देश की थाली में रोटी देने के लिए किसान ने अपना पेट काटा है। किसान कर्जा लेता है। बावजूद किसानों की नहीं सुनी जा रही है। यह बहुत ही शर्म की बात है। वरिष्ठï पत्रकार ममता त्रिपाठी ने कहा, अगर एक बार किसान भाजपा से नाराज हो गए तो यह उनके लिए बड़ी मुश्किल होगी। यूपी के पंचायत चुनाव में इसका परिणाम भी दिखा। मोदी सरकार यह तीन जो काले कानून लेकर आई, एमएसपी लेकर आई पर उसका मेनीफेस्टो किसानों को सही साबित नहीं हुआ। किसानों को फसलों का दाम अभी भी नहीं मिल रहा है। गन्ने का भुगतान अब तक लटका है।

सोशल मीडिया की राय के साथ न बहें जज: रमन्ना

नई दिल्ली। जजों को सोशल मीडिया पर आम लोगों की भावनात्मक राय के साथ बहने से बचना चाहिए। दिल्ली में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना ने यह राय दी। उन्होंने कहा जजों को यह ध्यान रखना चाहिए कि किसी बात का ज्यादा शोर हमेशा यह नहीं तय करता कि वह सही है। चीफ जस्टिस ने कहा न्यू मीडिया टूल्स में यह ताकत है कि उसकी राय काफी ज्यादा सुनाई देती है, लेकिन इनमें यह क्षमता नहीं है कि वे सही और गलत, अच्छे और बुरे और सच एवं फेक में अंतर कर सकें। ऐसे में सोशल मीडिया की राय से प्रभावित होने से बचना चाहिए। चीफ जस्टिस ने कहा कि ऐसे में मीडिया ट्रायल किसी भी मामले के निर्णय की वजह नहीं बनने चाहिए। जस्टिस पीडी देसाई मेमोरियल लेक्ïचर सीरीज के तहत रूल ऑफ लॉ विषय पर बोलते हुए चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका पर दबाव को लेकर अकसर बात होती है। लेकिन यह बात भी ध्यान रखने की है कि कैसे सोशल मीडिया के चलते संस्थानों पर भी असर पड़ता है। यहां यह समझने की जरूरत है कि जो कुछ भी समाज में होता है, उससे जज और न्यायपालिका अछूते नहीं रहते हैं। 

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