पायलट के तीखे तेवरों में नरमी लाने की गरज से हाईकमान दे सकता है उनको गुजरात की कमान

नई दिल्ली। जैसे-जैसे अगले आने वाले विधानसभा चुनाव के दिन नजदीक आ रहे हैं वैसे ही कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। एक ओर पंजाब कांग्रेस में घमासान मचा हुआ है दूसरी ओर राजस्थान में भी अशांति चरम पर है। पायलट और गहलोत के बीच चल रही कोल्डवॉर ने अब और विकराल रूप ले लिया है। आलाकमान की मुश्किल यह है कि वह हर कीमत पर विस चुनाव से पहले सुलह का रास्ता ढूंढने की कवायद कर रहा है। पिछले महीने राजीव सातव के असामयिक निधन के बाद कांग्रेस आलाकमान गुजरात का नया प्रभारी नियुक्त करने पर विचार कर रहा है। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद राजीव सातव (46) गुजरात मामलों के प्रभारी थे। कोविड-19 से ठीक होने के कुछ दिन बाद 16 मई को उनका निधन हो गया। यह अगले साल होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस के लिए महत्व रखता है, खासकर तब जब पार्टी 2017 में हुए पिछले राज्य चुनावों में सत्तारूढ़ भाजपा से सत्ता हथियाने के बहुत करीब आ गई थी।
2017 के चुनावों में, राजस्थान के वर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत गुजरात के प्रभारी थे, जबकि बी.के. हरिप्रसाद और मोहन प्रकाश को भी दावेदार माना जा रहा था। हालांकि सूत्रों के मुताबिक इस बार राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट को शांत करने और उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देने के लिए वह पार्टी नेतृत्व की शीर्ष पसंद हो सकते हैं.
इस कदम से गुजरात में कांग्रेस को स्थिरता मिल सकती है, हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि क्या पायलट इस प्रस्ताव को स्वीकार करने को तैयार हैं, क्योंकि पार्टी नेतृत्व ने एक संदेशवाहक के माध्यम से उनसे बात की है। उनके करीबी बताते हैं कि राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम अपना गृह राज्य छोडऩे को तैयार नहीं हैं।
इस मामले में, गहलोत के करीबी सहयोगी और एआईसीसी के पूर्व सचिव संजय बापना प्रतिष्ठित कार्यभार संभाल सकते हैं। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) में बड़े पैमाने पर फेरबदल की चर्चा है और सूत्रों का कहना है कि पूर्वोत्तर राज्यों, पश्चिम बंगाल, केरल, गुजरात, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के कई राज्य पीसीसी प्रमुखों को बदला जा सकता है और राज्य का प्रभारी बनाया जा सकता है। उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड जैसे राज्यों को चुनावी तैयारियों के लिए उनके गृह राज्यों में वापस भेजा जा सकता है।
हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि पार्टी में व्यापक सुधारों के बारे में अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखने वाले असंतुष्ट जी-23 नेताओं को पार्टी में शामिल किया जाएगा या नहीं, हालांकि मनीष तिवारी और समूह के कई नेताओं को पार्टी में शामिल किया जाएगा। गुलाम नबी आजाद को पार्टी के भीतर जिम्मेदारी मिली है। सातव के निधन के बाद खाली हुई राज्यसभा सीट के बारे में भी कांग्रेस को फैसला करना है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कोई जी-23 नेता इस पद के लिए नामांकित होता है।
कांग्रेस को 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले राज्य के चुनावों में भी अच्छा प्रदर्शन करना है। खासकर असम, केरल और पश्चिम बंगाल में हालिया हार के बाद, साल 2022 में चार राज्यों- उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और गुजरात में चुनाव होने हैं। उत्तर प्रदेश और पंजाब को छोडक़र बाकी दो राज्यों में कांग्रेस का सीधा मुकाबला बीजेपी से है। ऐसे में पार्टी को गुजरात के लिए एक अच्छे चुनावी रणनीतिकार की तलाश है।

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