पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता का काल पितृपक्ष
डॉ. विवेकानंद तिवारी
आयु:पुत्रान यश: स्वर्ग किर्तिपुष्टि बलमश्रयम पशुं सौख्यं धनं धान्यं प्रप्तुयात्पित पुज्नात। अर्थात-पितरों की पूजा करने से आयु,पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु व धान्य प्राप्त होते हैं। जो मृत आत्माओं का श्राद्ध नहीं करते, उनके पितर सदैव नाराज रहते हैं। हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की आराधना के साथ स्वर्ग को प्राप्त होने वाले पूर्वजों की श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजा और तर्पण किया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार पितरों के प्रसन्न होने पर ही देवी-देवता प्रसन्न होते हैं। पितरों को भी देवतुल्य माना गया है इसलिए किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद भी उनको उतना ही सम्मान मिलता है जितना भगवान को। पितरों के लिए समर्पित श्राद्धपक्ष भादों पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक मनाया जाता है। परमपिता ब्रह्मïा ने यह पक्ष पितरों के लिए ही बनाया है। हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है जिन प्राणियों की मृत्यु के बाद उनका विधि अनुसार तर्पण नहीं किया जाता है उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है। पितृपक्ष में पितरों का तर्पण और श्राद्ध करने का विशेष महत्व होता है। क्योंकि यह पक्ष उन्ही पितर देवता को समर्पित होता है। जो भी अपने पितरों का तर्पण नहीं करता है उन्हें पितृदोष का सामना करना पड़ता है। पितृदोष होने पर व्यक्ति के जीवन में धन और सेहत संबंधी कई तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इसी कारण से पितरों का तर्पण करना जरूरी होता है। पितरों का तर्पण करने से उन्हें मृत्युलोक से स्वर्गलोक में स्थान मिलता है।