मेरी कोरोना डायरी… सातवां दिन सपनों की चादर पर एहसासों की तुरपन बहुत याद आएगा यह अस्पताल
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आखिर सीटी स्कैन की रिपोर्ट आ ही गयी। इन्फेक्ïशन का स्तर आठ निकला। संक्रमण फेफड़ों तक जा पहुंचा था। एक्स-रे में सिर्फ सामने का हिस्सा आता है। सीटी स्कैन में फेफड़ों का पीछे का स्तर भी आता है। डॉक्टर रचित ने कहा कि कोई परेशानी की बात नहीं है आपका यहां आना सही फैसला था। संक्रमण का इलाज जल्द शुरू हो गया। रचित नौजवान हैं, यही से एमडी करके अब असिस्टेंट प्रोफेसर हो गए हैं। चेस्ट स्पेशलिस्ट हो गये हैं तो सारे एक्सरे यही देखते हंै। मुझे रोज देखने आते हंै तो जूनियर भी सतर्क रहते हैं। मुख्य स्टॉफ नर्स डॉक्टर से कह रही थी कि यह सर तो इतने मस्त रहते हैं कि लगता ही नहीं बीमार हैं। हर समय कुछ न कुछ करते रहते हैं। मैं मुस्कुरा दिया… हर मुस्कुराहट की अपनी एक कहानी होती है। जैसे हर खुशी के पीछे सिर्फ खुशी ही नहीं होती, वैसी ही कहानी मुस्कुराने की भी होती है। मुझे याद आ रहा था जब मैं छठी क्लास में था तो पहली बार मानीटर बनने के लिए चुनाव हुआ तो 70 में से 67 वोट मुझे मिले और कारण यह निकला कि मैं हर समय मुस्कुराता रहता था तो साथियों को अच्छा ुलगता था। यह मुस्कुराहट अब भी कायम है। मेरे दोस्तों को, मेरी सहेलियों को, सभी को मेरी यह मुस्कुराहट पसंद है और ईश्वर की कृपा है कि यह मुस्कुराहट आज तक कायम है।
जब से एडमिट हुआ हूं आज पहला दिन था जब बुखार नहीं आया। डॉक्टरों ने कहा यह बहुत अच्छा लक्षण है। मैं खुश था पर तभी मेरा सबसे प्यारा पड़ोसी नितिन भी संक्रमण का शिकार हो गया। मेदांता में एडमिट है। मेरे दूसरे प्यारे पड़ोसी विनय जी की पत्नी प्रियंका भाभी जी स्लिप हो गयी। हम लोग एक ही ब्लॉक में रहते हैं। हम तीनों का एक ही व्हाट्सएप ग्रुप है तो उस पर दर्द और मजाक चलते रहे कि तीनों परिवार मुसीबत में हैं।
जिन नर्सों के चौदह दिन पूरे हो गए, अब उनकी चौदह दिन की ड्यूटी नान कोविड वार्ड में लगेगी। सभी मिलने आयीं… नर्स राजदा की बेटी बहुत प्यारी है। फोटो देखे मैंने! ठीक होने पर वे अपने घर बुलाकर मटन बिरयानी खिलाएंगी मुझे। जब से आया हूं लग रहा है मानो काम बढ़ ही गया है। विवेक कह रहे थे, बोर हो रहे होंगे। मैंने कहा एक घंटा भी समय नहीं है। एक भी वेब सीरीज पूरी नहीं देख पाया। खबरें, पेपर, ट्वीट सब तो चल रहा है यहां से।
सपनों की कई नई चादरें बुनी हैं यहां पर। एहसासों की तुरपन है और यादों का सिरहाना है। इस चादर की पूंजी को मैंने सात दिन बहुत मन से सजा कर रखा है। यह यादें सातवें नीले आसमान में रहती हैं। सूरज का घोड़ा बनकर धीरे-धीरे जिंदगी में आती हंै। हल्की सी दस्तक देती हंै मन के उदास कोने में। जब हथेली पर उनके नन्हे एहसास रोमांच का एहसास कराते हंै तो झटके से आंखें खुलती हंै और खाली हथेली देखकर उस सूरज के सातवें घोड़े पर बैठकर आए उस सपने को देखता हूं पर कुछ नहीं होता। गीली हथेली देखकर याद आता है बुखार पर बुखार नहीं है अब।
मैंने कई दिन पहले लिखा था बुधवार को जाना है। हो सकता है बुधवार की रात घर पर रहूं। फिर कुछ दिन घर पर अपने कमरे में बंद और उसके बाद फिर जिंदगी की वही मगजमारी शुरू।
जैसी भी है जिंदगी
तू है बहुत प्यारी
कभी पूछती है
तो कभी बताती है
कि तू मैै हूं
और मैं तू
याद रहेगा अस्पताल का यह सफर भी।
जैसे हर खुशी के पीछे सिर्फ खुशी ही नहीं होती, वैसी ही कहानी मुस्कुराने की भी होती है।
कोरोना पॉजिटिव होने के बाद मैं इरा मेडिकल कॉलेज में एडमिट हूं। बहुत सारे साथियों ने फोन करके कहा कि लिखूं वहां से कि कैसा महसूस कर रहा हूं तो रोज का संस्मरण लिखता रहूंगा। – संजय शर्मा