लगातार , बार-बार 4PM की बादशाहत बरकरार

  • अभी दूर-दूर तक नहीं है कोई टक्कर में
  • लखनऊ से उठी सच की लपट जिसने गोदी मीडिया की नींद उड़ा रखी है
  • 4पीएम न्यूज नेटवर्क यह चैनल नहीं चुनौती है

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। अगर कोई पूछे कि हिंदुस्तान में आज सबसे बड़ा मीडिया प्रयोग क्या है? तो जवाब किसी कॉरपोरेट टॉवर, किसी दिल्ली स्टूडियो या किसी विदेशी फंडिंग से नहीं आएगा। जवाब आएगा एक ऐसे न्यूजरूम से जहां कैमरे से ज्यादा जरूरी जमीर है जहां एंकर से पहले इंसान हैं और जहां लाइन नहीं बल्कि लकीर खींची जाती है। 4पीएम न्यूज नेटवर्क कोई चैनल नहीं है यह उस दौर में सच बोलने की जिद है जब झूठ को राष्ट्रीय कर्तव्य बना दिया गया है। यह उस समय की पैदाइश है जब मीडिया को सत्ता का विस्तार मान लिया गया और सवाल पूछना अपराध की श्रेणी में डाल दिया गया।

लखनऊ से होना बड़ी ताकत

4पीएम की सबसे बड़ी ताकत उसका लखनऊ से होना है। यह बात सुनने में अजीब लग सकती है लेकिन यही इसकी असली पूंजी है। दिल्ली से चलने वाला मीडिया सत्ता के बहुत करीब होता है। मुंबई से चलने वाला मीडिया बाजार के बहुत करीब होता है। लखनऊ से चलने वाला मीडिया अगर ईमानदार हो तो वह जनता के सबसे करीब होता है। 4पीएम उसी करीबी रिश्ते की पैदाइश है। यहां खबर पहले दर्द से जुड़ती है फिर डेस्क तक आती है। यहां रिपोर्टिंग में चमक नहीं सच्चाई का पसीना होता है।

कोई मीडिया टायकून नहीं हैं सजय शर्मा

4पीएम न्यूज नेटवर्क के संपादक संजय शर्मा कोई मीडिया टायकून नहीं हैं। उनके पीछे न तो अरबों का विज्ञापन बजट है और न ही किसी सत्ता संरक्षक की ढाल। उनके पास है तो बस जि़द सच की। उनकी टैग लाइन है कि अगर पत्रकारिता करनी है तो पूरी करनी है अधूरी नहीं, समझौतावादी नहीं, डर के साथ नहीं। आज के मीडिया माहौल में यह जि़द अपने आप में क्रांतिकारी है। जब अधिकतर न्यूजरूम यह तय करने में लगे हों कि किस खबर से सरकार नाराज न हो जाए उस समय अगर कोई न्यूजरूम यह तय करे कि किस खबर से जनता को राहत मिलेगी तो अपने आप में असली पत्रकारिता यही है।

4पीएम न झुका है, न बिकेगा, न डरेगा
यह लाइन अब दावा नहीं, रिकार्ड है।

4पीएम कोई संयोग नहीं

इसलिए यह लिखना जरूरी है कि 4पीएम कोई संयोग नहीं यह समय की जरूरत है। यह उस समाज का आईना है जो अभी भी सवाल करना चाहता है। यह उस जनता की आवाज है जिसे चुप कराने की हर कोशिश नाकाम हो रही है।

लगातार 2 वर्षों से नम्बर वन

दो साल नहीं, दो साल से ज़्यादा हो चुके हैं। लगातार बिना रुके बिना ठिठके, बिना ब्रेक के, बिना झुके हम नम्बर वन की कुर्सी पर काबिज है। यह वाक्य सुनने में नारा लग सकता है लेकिन हकीक त में यह रोज-रोज की लड़ाई का हिसाब है। रोज कैमरा आन करना यह जानते हुए कि आज भी कोई नोटिस आएगा कोई धमकी मिलेगी कोई समझाइश भेजी जाएगी। रोज यह जानते हुए कि आज फिर किसी बड़े चेहरे की नाराजगी झेलनी पड़ेगी। फिर भी कैमरा चलता है सवाल पूछे जाते हैं और खबर वैसी ही दिखाई जाती है जैसी वह है न कि वैसी जैसी दिखाने को कहा गया है।

रिश्ता टीआरपी का नहीं भरोसे का

यह चैनल किसी नेता का नहीं है इसलिए इसे तोडऩे की कोशिश होती है। यह किसी उद्योगपति का नहीं है इसलिए इसे खरीदने का आफर नहीं चलता। यह किसी एजेंडे का हिस्सा नहीं है इसलिए इसे समझाया जाता है। लेकिन 4पीएम का एजेंडा सिर्फ एक है और वह है जनता। यही वजह है कि जब भी संकट आता है दर्शक इसे अकेला नहीं छोड़ते। यह रिश्ता टीआरपी का नहीं, भरोसे का है।

गोदी मीडिया सत्ता का पीआर विभाग

आज जब गोदी मीडिया का एक बड़ा हिस्सा सत्ता का पीआर विभाग बन चुका है तब 4पीएम ने अपने लिए एक अलग ही रास्ता चुना। यह रास्ता कठिन था जोखिम भरा था लेकिन वही रास्ता इज्जत वाला था। यही वजह है कि दो साल से ज्यादा समय तक लगातार नंबर वन रहना किसी एल्गोरिद्म का खेल नहीं है। यह भरोसे का परिणाम है। यह उस दर्शक का सर्टिफि केट है जिसने तय कर लिया है कि उसे शोर नहीं सच चाहिए।

4पीएम को डराया नहीं जा सकता

आने वाले समय में चुनौतियां और बढ़ेंगी। सवाल पूछना और महंगा होगा। सच बोलना और खतरनाक। लेकिन 4पीएम की कहानी यही बताती है कि यह नेटवर्क दबाव में पैदा हुआ है आराम में नहीं। यह सुविधा की कोख से नहीं संघर्ष की आग से निकला है। इसलिए इसे डराने वाले भूल जाते हैं कि जो आग में तपकर निकला हो उसे धुएं से डराया नहीं जा सकता। 4पीएम आज जो है वह अंत नहीं है। यह शुरुआत है उस मीडिया भविष्य की जहां लखनऊ, पटना, रांची और भोपाल जैसे शहर दिल्ली की तरफ देखकर नहीं अपनी जमीन पर खड़े होकर पत्रकारिता करेंगे। यह उस दौर की झलक है जहां चैनल नहीं कंटेंट राजा होगा। जहां एंकर नहीं सवाल केंद्र में होंगे।

लाखों दिलों से आ रही है आवाज

इंटरनेशनल संदर्भ में देखें तो 4पीएम उसी परंपरा में खड़ा दिखता है जहां मीडिया सत्ता के सामने खड़ा होता है न कि उसके पीछे। दुनिया में जब-जब स्वतंत्र पत्रकारिता ने सत्ता को चुनौती दी है उसे पहले बदनाम किया गया फिर डराया गया और अंत में चुप कराने की कोशिश हुई। 4पीएम भी उसी दौर से गुजर रहा है। फर्क बस इतना है कि यहां चुप कराने वालों को यह एहसास नहीं है कि यह आवाज किसी एक कमरे से नहीं, लाखों दिलों से आ रही है।

असहज सत्ता, जनता को राहत

4पीएम इसलिए खटकता है क्योंकि यह चुप नहीं रहता। यह इसलिए चुभता है क्योंकि यह नाम लेता है। यह इसलिए निशाने पर रहता है क्योंकि यह सवाल को अगर मगर में नहीं बदलता। जब बुलडोजर चलता है 4पीएम पूछता है कि न्याय कहां है। जब किसी बेटी के साथ ज़ुल्म होता है 4पीएम यह नहीं देखता कि आरोपी किस पार्टी से है। जब किसी किसान की जमीन जाती है तो 4पीएम यह नहीं गिनता कि विज्ञापन कौन देगा। यही कारण है कि यह चैनल सत्ता को असहज करता है और जनता को राहत देता है।

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