प्रियंका गांधी के शपथ लेते ही दोहराया गया 71 साल पुराना इतिहास

नई दिल्ली। प्रियंका गांधी ने सांसद के रूप में शपथ ले ली है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने उन्हें शपथ दिलाई। इसके साथ ही देश की संसद में गांधी परिवार के एक और सदस्य का प्रवेश हो गया है। प्रियंका गांधी नेहरू परिवार की 16वीं सदस्य हैं जो लोकसभा के लिए निर्वाचित हुई हैं।
देश के संसदीय इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ जब लोकसभा में गांधी परिवार का कम से कम एक सदस्य न पहुंचा हो। ऐसे भी मौके आए हैं जब गांधी-नेहरू परिवार से जुड़े 5-5 सदस्य लोकसभा में एक साथ पहुंचे।
मौजूदा लोकसभा में राहुल गांधी के बाद उनकी बहन प्रियंका भी संसद पहुंच गईं। राहुल और प्रियंका की मां सोनिया गांधी लंबे समय तक लोकसभा सांसद रही हैं। फिलहाल वो राजस्थान से राज्यसभा की सांसद हैं। ऐसा पहली बार होगा जब गांधी परिवार मां और उनके दो बच्चे एक साथ सांसद होंगे।
सबसे पहले बात पहली लोकसभा की कर लेते हैं। साल 1951-52 में देश के पहले लोकसभा चुनाव हुए। इस चुनाव में 400 लोकसभा सीटों से कुल 489 सांसद चुनकर संसद पहुंचे। जैसा की आप जानते हैं कि उस दौर में कई लोकसभा सीटें ऐसी थीं जहां से दो-दो सांसद चुने जाते थे। 1951 के इस लोकसभा चुनाव में एक सीट ऐसी भी थी जहां से तीन सासंद चुनकर लोकसभा पहुंचे थे।
इन 489 सांसदों में से पांच सांसद ऐसे थे जिनका रिश्ता नेहरू-गांधी परिवार से थे। खुद जवाहर लाल नेहरू जो इलाहाबाद जिला (पूर्व) सह जौनपुर जिला (पश्चिम) लोकसभा सीट से जीतकर देश के प्रधानमंत्री बने। नेहरू के साथ इस सीट से सांसद बनने वाले दूसरे चेहरे कांग्रेस के ही मसुरियादीन थे।
जवाहर लाल नेहरू के दामाद और इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी प्रतापगढ़ जिला (पश्चिम) सह रायबरेली जिला (पूर्व) लोकसभा सीट से जीते। इसी सीट से कांग्रेस के बृजनाथ कुरील भी जीते थे क्योंकि यह सीट ऐसी थी जहां से दो सांसद चुने गए थे।
सीतापुर जिला सह खीरी जिला (पश्चिम) से जीतीं उमा नेहरू भी इसी परिवार से जुड़ी थीं। दरअसल, उमा के पति श्यामलाल नेहरू पंडित जवाहर लाल नेहरू के चचेरे भाई थे। श्यामलाल नेहरू के पिता नंदलाल नेहरू जवाहर लाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू के बड़े भाई थे।
पहले लोकसभा चुनाव में नेहरू परिवार से जीतने वाले चौथे चेहरे का नाम था विजयलक्ष्मी पंडित, विजयलक्ष्मी पंडित नेहरू की सगी बहन थीं। विजयलक्ष्मी को लखनऊ जिला मध्य सीट से कांग्रेस के टिकट पर जीत मिली थी।
1953 में विजयलक्ष्मी पंडित संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्ष चुनी गईं। विजयलक्ष्मी इस पद के लिए चुनी गई पहली महिला थीं। इसके बाद उन्होंने अपनी लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। उनके इस्तीफे के बाद लखनऊ जिला मध्य सीट पर उप चुनाव हुए।
इस उपचुनाव में नेहरू परिवार से संबंध रखने वालीं श्योराजवती नेहरू जीतीं थीं। श्योराजवती की शादी डॉक्टर किशन लाल नेहरू से हुई थी। किशनलाल नेहरू के पिता का नाम नंदलाल नेहरू था। यानी, श्योराजवती प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के चचेरे भाई की पत्नी थीं। इस तरह पहले लोकसभा में नेहरू-गांधी परिवार से कुल पांच लोग लोकसभा पहुंचे। हालांकि, एक वक्त में इनकी कुल संख्या चार ही रही।
1957 में जब देश के दूसरे लोकसभा चुनाव हुए तो 403 लोकसभा सीटों से कुल 494 सांसद चुनकर आए। इस चुनाव में नए सिरे से परिसीमन हुआ। सीटों के नाम बदले गए। जहां तक नेहरू गांधी परिवार की बात है तो इस चुनाव में इस परिवार से संबध रखने वाले तीन चेहरे जीतकर लोकसभा पहुंचे। खुद जवाहर लाल नेहरू फूलपुर लोकसभा सीट से जीते, उमा नेहरू सीतपुर लोकसभा सीट से जीतीं तो फिरोजगांधी रायबरेली सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचे। हालांकि फिरोज गांधी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। 8 सितंबर 1960 को महज 47 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।
1962 में 494 सीटों के लिए हुए तीसरी लोकसभा चुनाव में जवाहर लाल नेहरू अपने परिवार से संसद पहुंचने वाले अकेले शख्स थे। हालांकि, 27 मई 1964 को प्रधानमंत्री नेहरू का निधन हो गया। उनके निधन के चलते फूलपुर लोकसभा सीट खाली हो गई। इस सीट पर उपचुनाव हुए तो उनकी बहन विजयलक्ष्मी पंडित यहां से जीतकर लोकसभा पहुंची और लोकसभा में नेहरू-गांधी परिवार का प्रतिनिधित्व जारी रहा।
चौथी लोकसभा: वो चुनाव जब गांधी परिवार से जुड़े शख्स ने कांग्रेस को हराया साल 1967 में देश के चौथे लोकसभा चुनाव हुए। ये पहले चुनाव थे जब कांग्रेस का नेतृत्व जवाहर लाल नेहरू नहीं कर रहे थे। नेहरू के निधन के बाद उनकी बेटी इंदिरा गांधी राज्यसभा सांसद बन चुकी थीं। 1967 के चुनाव में इंदिरा ने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा। इस चुनाव में इंदिरा को जीत मिली। इंदिरा उसी रायबरेली से चुनकर आईं जहां से कभी उनके पति फिरोज गांधी चुनाव जीतते थे। इंदिरा की बुआ विजयलक्ष्मी पंडित एक बार फिर फूलपुर लोकसभा सीट से जीतीं।
इस चुनाव में गांधी परिवार से जुड़ा एक और सदस्य भी जीता। वो भी निर्दलीय। दरअसल, 1967 के चुनाव में लखनऊ सीट कांग्रेस के हाथ से निकल गई। इस चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार आनंद नारायण मुल्ला ने कांग्रेस के वीआर मोहन को 20,972 मतों से हरा दिया। राजनीति में आने से पहले आनंद नारायण एक वकील और इलाहाबाद हाईकोर्ट में जज की जिम्मेदारी निभा चुके थे। आनंद नारायण मुल्ला के पिता पंडित जगत नारायण मुल्ला थे। कश्मीरी पंडित परिवार से ताल्कुल रखने वाले पंडित जगत नारायण मुल्ला आजादी से पहले उत्तर प्रदेश जिसे उस वक्त यूनाइटेड प्रोविंस कहा जाता था के एक प्रमुख वकील थे। उन्होंने कई मामलों में उस वक्त की अंग्रेज सरकार का भी पक्ष रखा था। मशहूर काकोरी कांड में भी जगत नारायण मुल्ला अंग्रेजों के वकील थे। मोती लाल नेहरू के करीबी जगत नारायण की बेटी श्योराजवती की शादी किशन लाल नेहरू से हुई थी। वही, श्योराजवती जो 1954 के उप-चुनाव में कांग्रेस के टिकट जीतीं थीं। उन्ही श्योराजवती के भाई आनंद नारायण लखनऊ सीट पर कांग्रेस की पहली हार का कारण बने थे। आनंद नारायण उस दौर के चर्चित उर्दू कवि थे। उन्होंने कई किताबें लिखीं थीं। साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित आनंद नारायण बाद में कांग्रेस के टिकट पर राज्यसभा भी गए।
1971 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर इंदिरा गांधी रायबरेली से जीतीं। वहीं, लखनऊ सीट से कांग्रेस ने गांधी-नेहरू परिवार से संबंध रखने वाली शीला कौल जीतकर लोकसभा पहुंची। शीला कौल का नेहरू-गांधी परिवार से रिश्ता भी जान लीजिए। दरअसल, शीला कौल के पति का नाम कैलाश नाथ कौल था। कैलाश नाथ कौल कमला नेहरू के सगे भाई थे। यानी, शीला कौल इंदिरा गांधी की मामी थीं। ये वही शीला कौल थीं जो बाद में रायबरेली से भी जीतकर लोकसभा पहुंचीं।
आपतकाल के बाद 1977 में देश में छठे आम चुनाव हुए। इस चुनाव में इंदिरा गांधी को रायबरेली तो उनके बड़े बेटे संजय गांधी को अपने पहले ही चुनाव में अमेठी सीट से हार का सामना करना पड़ा। ये पहला मौका था जब नेहरू-गांधी परिवार को कोई सदस्य संसद नहीं पहुंचा था। हालांकि, ज्यादा वक्त तक ऐसा नहीं रह सका। 1978 में कर्नाटक के चिकमंगूलर से जीतकर इंदिरा फिर से लोकसभा पहुंच गईं। ये पहला मौका था जब नेहरू-गांधी परिवार का कोई सदस्य उत्तर प्रदेश के बाहर किसी अन्य राज्य से चुनाव जीतकर संसद पहुंचा। यहीं से दक्षिण भारत और नेहरू गांधी परिवार के साथ की शुरुआत हुई।
साल 1980 के लोकसभा चुनाव में संजय गांधी एक बार फिर अमेठी से चुनाव लड़े। इस बार उन्हें जीत मिली। वहीं, उनकी मां इंदिरा गांधी रायबरेली और आंध्र प्रदेश के मेंडक से चुनाव लड़ीं और दोनों जगह जीतीं। पहली बार मां-बेटे की जोड़ी संसद पहुंची। चुनाव के बाद इंदिरा ने रायबरेली सीट छोड़ दी। यहां उप चुनाव हुए तो नेहरू परिवार से ही जुड़े अरुण नेहरू यहां से चुनाव लड़े और जीते। अरुण नेहरू उमा नेहरू के पोते थे। वही उमा नेहरू जो 1951 और 1957 में जीतकर लोकसभा पहुंची थीं। इसी तरह इंदिरा की मामी शीला कौल भी एक बार फिर लखनऊ से जीतने में सफल रही थीं। महज एक चुनाव बाद ही लोकसभा में नेहरू-गांधी परिवार के सदस्यों की संख्या बढक़र चार हो गई थी।
चुनाव नतीजों के चंद महीने बाद ही इंदिरा गांधी के बड़े बेटे संजय गांधी की विमान हादसे में मौत हो गई। संजय के निधन के बाद उनके छोटे भाई राजीव गांधी ने अमेठी सीट पर हुए उपचुनाव में जीत हासिल की और लोकसभा पहुंचे।
इस हादसे चार साल बीते थे कि नेहरू-गांधी परिवार पर और बड़ा संकट आया। संकट कांग्रेस पर भी आया। पार्टी की सबसे बड़ी नेता और देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 31 अक्तूबर 1984 को हत्या हो गई। इंदिरा की हत्या के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस ने प्रचंड जीत दर्ज की। राजीव अमेठी, अरुण नेहरू रायबरेली और शीला कौल लखनऊ लोकसभा सीट से जीतने में सफल रहीं।
1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। राजीव के अपने भी दूसरे दल में चले गए। राजीव गांधी खुद अमेठी से जीते। वहीं, लखनऊ से जीतती रहीं इंदिरा गांधी की मामी शीला कौल रायबरेली से जीतकर लोकसभा पहुंची। 1980 में रायबरेली से जीते अरुण नेहरू इस चुनाव में कानपुर जिले की बिल्हौर सीट से जनता दल के टिकट पर जीतकर लोकसभा पहुंचे। वहीं, राजीव गांधी की भाभी और संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी भी जनता दल के टिकट पर पीलीभीत से जीतकर पहली बार लोकसभा पहुंचीं। मेनका 1984 में अमेठी से राजीव गांधी के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ चुकी थीं। तब उन्हें न सिर्फ हार का सामना करना पड़ा था, बल्कि उनकी जमानत तक जब्त हो गई थी।
1991 के लोकसभा चुनाव के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हो गई। उस चुनाव में भी राजीव अमेठी सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार थे। उनके निधन के बाद जब नतीजे आए तो राजीव को अमेठी सीट से जीत मिली थी। उनके निधन की वजह से अमेठी में उपचुनाव कराना पड़ा। जिसमें उनके करीबी मित्र कैप्टन सतीश शर्मा जीते। वहीं, इंदिरा की मामी शीला कौल एक बार फिर से रायबरेली से लोकसभा पहुंचीं थी।
1996 और 1998 के लोकसभा चुनाव में नेहरू-गांधी परिवार की सिर्फ एक सदस्य ही लोकसभा पहुंचीं। ये सदस्य थीं मेनका गांधी। 1996 के लोकसभा चुनाव में मेनका जनता दल के टिकट पर पीलीभीत से जीतीं। इसी तरह 1998 में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के दौर पर पीलीभीत से ही जीत हासिल की।
1999 के चुनाव में गांधी परिवार से एक और चेहरे का चुनावी राजनीति में प्रवेश हुआ। राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी ने अमेठी और कर्नाटक की बेल्लारी सीट से चुनाव लड़ा और जीता। बाद में उन्होंने बेल्लारी सीट छोड़ दी। वहीं, मेनका गांधी एक बार फिर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर पीलीभीत से जीतने में सफल रहीं।
2004 में सोनिया के बेटे राहुल गांधी अमेठी, सोनिया रायबरेली से जीतकर लोकसभा पहुंचीं। वहीं, मेनका गांधी भाजपा के टिकट पर पीलीभीत से फिर जीतने में सफल रहीं। 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में गांधी परिवार के एक और सदस्य ने लोकसभा में प्रवेश किया। वो सदस्य थे वरुण गांधी। इस तरह गांधी परिवार के मां-बेटे की दो जोडय़िां पहली बार लोकसभा पहुंचीं। राहुल और सोनिया कांग्रेस के टिकट पर तो वरुण और मेनका भाजपा के टिकट पर जीते। 2014 और 2019 में भी ये सिलसिला कायम रहा।
2024 के लोकसभा चुनाव में ये आंकड़ा चार से घटकर एक हो गया जब सिर्फ राहुल गांधी रायबरेली और वायनाड से जीतकर लोकसभा पहुंचे। अब वायनाड के उपचुनाव में जीत दर्ज करने वाली प्रियंका के लोकसभा सांसद के तौर पर शपथ लेने के साथ ही ये संख्या फिर से बढ़ गई। जवाहर लाल नेहरू और विजयलक्ष्मी पंडित के बाद पहली बार नेहरू-गांधी परिवार के भाई-बहन की एक और जोड़ी सदन में नजर आएगी।

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