राहुल गांधी की सियासी फिरकी में फंसी बीजेपी

  • फेल हो गया भाजपा का पूर्वोत्तर राज्यों में राजनीतिक प्लान
  • मणिपुर के सीएम एन. बीरेन सिंह को देना पड़ा इस्तीफा
  • बीजेपी के लिए मणिपुर में आसान नहीं राह, अब किसको मिलेगी सीएम की कुर्सी

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। अगर मणिपुर के मुख्यमंत्री गृहमंत्री से मिलने के बाद इस्तीफा न देते तो सदन के भीतर अविश्ववास प्रस्ताव लाकर उनकी सरकार का गिरना तय था। बद से बदतर होते हालत के बीच मणिपुर में सीएम के इस्तीफे के बाद वहां नये राजनीतिक समीकरण उभर रहे हैं। राहुल गांधी ने हिंसा के बाद से अबतक मणिपुर के तीन दौरे किये। राहुल गांधी के आखिरी दौरे के महज 6 महीने के भीतर मणिपुर के सीएम एन.बीरेन सिंह को इस्तीफा देना पड़ा। इस्तीफे का मतलब मणिपुर में हिंसा को कंट्रोल न कर पाने की नैतिक जिम्मेदारी बीजेपी ने स्वीकार कर ली है।

राहुल गांधी की गुगली

दरअसल मणिपुर और असम यह वह दो राज्य हैं जहां सत्ता पाने के लिए बीजेपी ने बहुत ज्यादा मेहनत की। वहां के लिए पालिटिक्ल प्रोजेक्ट बनाया और पूर्व की सरकारों को राष्टï्रवाद के नाम पर बदनाम किया। पूर्वोत्तर राज्यों के निवासियों के लिए बीजेपी ने अलग नारे गढ़े और अलग घोषणा पत्र बनाये। वहां के लिए योजनाएं नई थी और जनता को नये सपने दिखाये गये थे। लेकिन मणिपुर में मई 2023 से मैतेई और कुकी समुदायों के बीच हिंसा चल रही थी, जिससे 250 से अधिक लोग मारे गए और लाखों लोग विस्थापित हुए। इस संकट के बीच, राहुल गांधी ने राज्य की स्थिति का जायजा लेने के लिए मणिपुर के लगातार दौरे किये। राहुल गांधी ने मणिपुर में हिंसा पीडि़तों से मुलाकात की और उनके दर्द को साझा किया। उन्होंने राज्य सरकार पर आरोप लगाया कि वह समुदायों के बीच शांति स्थापित करने में असफल रही है। इस दौरे के बाद मणिपुर के सियासी समीकरणों में बदलाव देखा गया। विपक्ष ने इस दौरे को एक शक्तिशाली संदेश के रूप में पेश किया, जिससे भाजपा को मणिपुर में अपनी खोई हुई राजनीतिक ज़मीन को फिर से पाना कठिन हो गया। राहुल गांधी के इस दौरे ने न केवल मणिपुर बल्कि पूरे देश में कांग्रेस की स्थिति को मजबूत किया और भाजपा के खिलाफ एक नया सियासी मोर्चा तैयार किया।

पूर्व सीएम पर लगातार लगे आरोप

मणिपुर के पूर्व मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को राज्य में जातीय संघर्ष से निपटने के तरीके को लेकर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। एन. बीरेन सिंह ने पिछले वर्ष मणिपुर में हिंसा को लेकर जनता से माफी मांगी थी। उन्होंने कहा था यह पूरा साल बेहद खराब रहा। मैं राज्य के लोगों से पिछले साल तीन मई से लेकर आज तक जो कुछ भी हुआ है, उसके लिए माफी मांगता हूं। कई लोगों ने अपने प्रियजनों को खो दिया। कई लोगों ने अपना घर छोड़ दिया। मुझे इसका दुख है। मुझे उम्मीद है कि 2025 में राज्य में सामान्य स्थिति बहाल हो जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और वहां मैतई और कुकी समुदायों के बीच हिंसा जारी रही। सीएम पर मैतई समुदाय का साथ देने का अरोप लगातार आरोप लगा।

यूं हीं नहीं दिया इस्तीफा

कांग्रेस पार्टी ने विधानसभा सत्र से पहले मुख्यमंत्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की योजना बनाई थी। विधानसभा सत्र से पहले, जब राजनीतिक दबाव बढ़ गया तो भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को इस्तीफा देने के लिए कहा। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद, मुख्यमंत्री ने 9 फरवरी 2025 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। यह कदम मणिपुर में सियासी बदलाव का प्रतीक माना जा रहा है और इससे राज्य में नई राजनीतिक दिशा की उम्मीद जगी है। हालांकि भाजपा के लिए मणिपुर में सत्ता बनाए रखना कठिन हो गया है। पार्टी को राज्य में सांप्रदायिक संघर्ष और अस्थिरता के बीच अपनी राजनीतिक पकड़ बनाए रखने में दिक्कत हो रही है। पार्टी की नेतृत्व क्षमता पर लगातार सवाल उठ रहे है। खासकर जब राज्य में लगातार हिंसा और दंगे हो रहे हैं। भाजपा को अब नए नेतृत्व की तलाश है, जो मणिपुर की कठिन परिस्थितियों में स्थिरता लाने और दोनों समुदायों के बीच शांति बहाल करने में सक्षम हो।

ऑपरेशन लोटस की जद में पंजाब की आप सरकार

  • बीजेपी ने कुछ ही दिनों का मेहमान बताना शुरू किया
  • आप ने भी कसी कमर केजरीवाल जल्द करेंगे बैठक

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
चंडीगढ़। दिल्ली चुनाव में केजरीवाल की हार क्या नये पालिटिक्ल स्टार्टअप के फेल होने का संकेत हैं? दरअसल दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम ने भारतीय राजनीति के सियासी समीकरण को नए सिरे से परिभाषित कर दिया है। अब भाजपा को विपक्ष के बीच बिखराव की स्थिति का फायदा मिलेगा या? फिर नुकसान होगा।
यह बड़ा सवाल है। वहीं दिल्ली चुनावी नतीजों का असर क्या पंजाब की आप सरकार पर भी पड़ेगा? यह सवाल उठाना शुरू हो चुके हैं क्योंकि बीजेपी ने पंजाब की सरकार को कुछ ही दिनों का मेहमान बताना शुरू कर दिया हैं। हालांकि ऐसी भी खबरें आ रही हैं कि आप के संयोजक जल्द पंजाब के नेताओं के साथ बैठक करके कोई नई रणनीति बनाएंगे।

कई कारणों से हारे केजरीवाल

केजरीवाल ने पार्टी की जीत के बाद शिक्षा, स्वास्थ्य, और भ्रष्टाचार पर अपने एजेंडे को केंद्रित किया था। लेकिन बीजेपी ने केजरीवाल को उन मुददों पर घेरा और परेशान किया जो उनकी हद के बाहर थे। मसलन किसी भी अप्रिय घटना के लिए दिल्ली की सरकार को निशाने पर बीजेपी ने लिया। जबकि दिल्ली में कानून व्यवस्था के लिए बीजेपी की जिममेदारी बनती थी। वहीं केजरीवाल को शराब नीति पर घेर कर उनके भ्रष्टाचार के मुददे की हवा निकाल दी। वही साफ पानी और बिजली के बिल को भी बीजेपी ने मुददा बनने ही नहीं दिया। केजरीवाल की पार्टी की नीतियों को लेकर मतदाताओं में कुछ हद तक नाखुशी बढ़ी। शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार के बावजूद, उनके अन्य वादों जैसे नौकरी, महंगाई, और सुरक्षा के मुद्दे पर अपेक्षाएं पूरी नहीं हो पाईं।

पंजाब से आप सरकार की जल्द होगी विदाई : बडौली

हरियाणा भाजपा अध्यक्ष मोहनलाल बडौली ने दावा किया कि आने वाले समय में पंजाब से भी आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार की विदाई जल्द हो जायेगी। मोहनलाल बडौली ने पंजाब की हालत पर चिंता जताते हुए कहा कि वहां की जनता इन दिनों केजरीवाल की पार्टी के शासन से बेहद दुखी है। पंजाब में जो हालात हैं, वह आप सरकार के कारण हुए हैं। लोग अब इन हालातों से तंग आ चुके हैं और आने वाले समय में पंजाब की जनता इस आपदा से छुटकारा पाएगी और राज्य में बदलाव आएगा। दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों के फौरन बाद आये बडौली के बयान के बड़े सियासी मायने हैं। बडौली कि गिनती बीजेपी के ब्रेन बैंक में होती है और उन्होंने यह बयान सोच समझ कर दिया है। तो क्या उनके बयान को मान लिया जाए कि पंजाब में भी आपरेशन लोटस शुरू हो गया है और वहां भी जल्द कोई नये सियासी तूफान देखने को मिलेगा?

अब यूपी में ध्यान केन्द्रित करेगी बीजेपी

यूपी में बीजेपी का प्रभाव मजबूत है और दिल्ली में केजरीवाल की हार का असर यूपी में पडऩा तय है। महाराष्ट्र चुनाव हो या फिर दिल्ली चुनाव दोनो ही राज्यों में वहा के क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस को हल्के में लिया। दिल्ली में तो आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से बात करना तक मुनासिब नहीं समझा। इससे पूर्व के चुनावों में कांग्रेस ने सैक्रीफाइज करते हुए खुद का चुनाव से बाहर कर लिया था और वह चुनाव न के बार लड़ी थी।

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