स्पेशल कोर्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को लगाई फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन सबका यही हल है कि विशेष अदालतें बनाई जाएं, जहां हर दिन विशेष कानूनों से जुड़े मामलों की सुनवाई हो सके.

4पीएम न्यूज नेटवर्क: सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को केंद्र सरकार और महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाई है। यह फटकार मौजूदा अदालतों को विशेष अदालतों में बदलने को लेकर दी गई है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एनआईए अधिनियम के तहत ने मामलों की सुनवाई के लिए नई विशेष अदालतों का गठन किया जाना चाहिए, न कि मौजूदा अदालतों को ही स्पेशल कोर्ट्स में परिवर्तित किया जाए।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल राजकुमार भास्कर ठाकरे को बताया कि अगर वर्तमान अदालतों को एनआईए अधिनियम के तहत विशेष अदालतों के रूप में नामित किया जाता है, तो इससे वरिष्ठ नागरिकों, विचाराधीन कैदियों, हाशिए के वर्ग के लोगों और वैवाहिक विवादों के मामलों में लंबित सुनवाई में और देरी बढ़ जाएगी.
सुप्रीम कोर्ट ने ज्यादा बुनियादी ढांचे का निर्माण, जजों और कर्मचारियों की नियुक्ति और सरकार द्वारा पदों को मंजूरी दिए जाने को लेकर जोर दिया. पीठ ने कहा कि अगर एडिशनल अदालतें नहीं बनाई जातीं, तो अदालतों को विशेष कानूनों के तहत दर्ज आरोपियों को जमानत देने पर मजबूर होना पड़ेगा, क्योंकि मुकदमों को तेजी से निपटाने के लिए कोई प्रभावी व्यवस्था उपलब्ध नहीं है.
केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को एनआईए, मकोका और यूएपीए जैसे विशेष कानूनों के अंतर्गत विशेष अदालतों की स्थापना के लिए उपयुक्त प्रस्ताव तैयार करने का आखिरी मौका दिया गया है. उन्हें चार हफ्तों में अदालत के निर्देशों का जवाब देना पड़ेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने 23 मई को एनआईए मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों की स्थापना पर ज़ोर दिया. साथ ही इसने केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों और राज्यों द्वारा प्रस्तावित संभावित कानूनों की न्यायिक समीक्षा की आवश्यकता पर भी बल दिया. जिसमें कहा गया कि एनआईए को जो मामले सौंपे गए थे वो जघन्य थे. जिनका असर देशभर में था, लेकिन ये मामले स्पीड से नहीं चले, क्योंकि कोर्ट के पीठासीन अधिकारी बाकी दूसरे मामलों में व्यस्त थे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन सबका यही हल है कि विशेष अदालतें बनाई जाएं, जहां हर दिन विशेष कानूनों से जुड़े मामलों की सुनवाई हो सके.



