11 साल PM रहने के बाद भी, घुसपैठियों पर वोट की भीख मांग रहे मोदी!
भारत में घुसपैठियों यानी अवैध प्रवासियों का मुद्दा राजनीति का एक बड़ा हिस्सा बन चुका है.खासकर बांग्लादेश और म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों से आने वाले लोगों को लेकर बहस छिड़ी रहती है.

4पीएम न्यूज नेटवर्कः भारत में घुसपैठियों यानी अवैध प्रवासियों का मुद्दा राजनीति का एक बड़ा हिस्सा बन चुका है.खासकर बांग्लादेश और म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों से आने वाले लोगों को लेकर बहस छिड़ी रहती है.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरते थे.वहीं अब खुद 11 साल से ज्यादा समय से प्रधानमंत्री हैं,लेकिन आज भी चुनावों और भाषणों में इस मुद्दे को उठाकर वोट मांगते नजर आते हैं.विपक्षी पार्टियां इसे मोदी सरकार की नाकामी बताती हैं.क्या यह मुद्दा वाकई हल नहीं हुआ? या यह राजनीतिक हथियार बना रह गया है.
दोस्तों भारत में घुसपैठ का मुद्दा नया नहीं है.यह दशकों पुराना है और मुख्य रूप से पूर्वोत्तर राज्यों जैसे असम, पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड में ज्यादा प्रभाव डालता है.बांग्लादेश से सटे बॉर्डर पर अवैध तरीके से लोग आते हैं.जो स्थानीय संसाधनों, नौकरियों और मानव आवादी पर असर डालते हैं.सरकारी अनुमानों के अनुसार भारत में करीब 2 करोड़ बांग्लादेशी अवैध प्रवासी हो सकते हैं,लेकिन सटीक आंकड़े विवादों में हैं.
1971 के बांग्लादेश युद्ध के बाद यह समस्या तेजी से बढ़ी.उस समय लाखों शरणार्थी भारत आए लेकिन कई वापस नहीं गए.असम में 1985 का असम समझौता इसी मुद्दे से जुड़ा था.जिसमें 1971 के बाद आए लोगों को चिन्हित करने.और बाहर करने की बात हुई.लेकिन इसका अमल ठीक से नहीं हुआ.केंद्र सरकार की जिम्मेदारी बॉर्डर की सुरक्षा है.जबकि राज्य सरकारें स्थानीय स्तर पर कार्रवाई करती हैं.
वहीं म्यांमार से रोहिंग्या मुसलमानों की घुसपैठ भी एक बड़ा मुद्दा है.2017 में रोहिंग्या संकट के बाद हजारों भारत आए.सरकार इन्हें अवैध मानती है और डिपोर्ट करने की कोशिश करती है.लेकिन मानवाधिकार संगठन इसे अमानवीय बताते हैं.घुसपैठ राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी है क्योंकि इसमें आतंकवाद, तस्करी और मानव आवादी के बदलाव का खतरा है.



