मोदी के प्रचार में उड़े 8.81 करोड़, जनता के पैसों पर पड़ा बड़ा डाका!
सूचना के अधिकार से खुलासा हुआ है कि अक्टूबर 2024 में गुजरात सरकार ने नरेंद्र मोदी के सार्वजनिक जीवन में 23 साल पूरे होने...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः दोस्तों भारत में राजनीतिक नेताओं की प्रशंसा….. और उनके कार्यकाल के जश्न मनाने के लिए सरकारी विज्ञापन एक आम बात हो गई है……. लेकिन क्या आप जानते हैं कि गुजरात सरकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सार्वजनिक पद पर 23 साल पूरे होने का जश्न मनाने के लिए विज्ञापनों पर करोड़ों रुपये खर्च किए हैं…… यह जानकारी बीबीसी गुजराती द्वारा दायर की गई सूचना का अधिकार याचिका के जवाब से सामने आई है…… आरटीआई के अनुसार गुजरात सरकार ने सिर्फ दो विज्ञापन अभियानों पर कुल 8.81 करोड़ रुपये खर्च किए….. इन विज्ञापनों में पीएम मोदी को विकसित भारत के स्वप्नदृष्टा, गुजरात के गौरव के प्रतीक और विकास पुरुष जैसे शब्दों से नवाजा गया था…….
यह मामला अक्टूबर 2024 की है…… जब गुजरात सरकार ने विकास सप्ताह मनाया…… इस सप्ताह के दौरान विभिन्न मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर विज्ञापन दिए गए…… जो मोदी के नेतृत्व की सराहना करते थे…… सामान्य तौर पर, किसी चीज के 10, 15 या 25 साल पूरे होने पर जश्न मनाया जाता है…… लेकिन 23 साल जैसे अजीबोगरीब आंकड़े पर इतना बड़ा खर्च उठाना कई सवाल खड़े करता है….. क्या यह सरकारी धन का सही उपयोग है….. क्या यह व्यक्तिगत प्रशंसा है या जनहित की जानकारी……
आपको बता दें कि नरेंद्र मोदी का सार्वजनिक जीवन 7 अक्टूबर 2001 से शुरू हुआ……. जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री बने…… उस समय गुजरात में राजनीतिक उथल-पुथल थी…… तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल ने इस्तीफा दे दिया था….. और मोदी को भारतीय जनता पार्टी ने यह जिम्मेदारी सौंपी……. मोदी उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े थे…… और बीजेपी के संगठन में सक्रिय थे…… लेकिन उन्होंने कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा था……. फिर भी वे गुजरात के 14वें मुख्यमंत्री बन गए……
मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में तीन बार लगातार शासन किया 2001 से 2002, 2002 से 2007 और 2007 से 2012 तक……. 2012 में वे चौथी बार चुने गए…… लेकिन 2014 में लोकसभा चुनाव जीतकर वे भारत के प्रधानमंत्री बन गए….. इस तरह, 7 अक्टूबर 2001 से 7 अक्टूबर 2024 तक उनके सार्वजनिक पद पर 23 साल पूरे हो गए…… इन 23 सालों में मोदी ने गुजरात को विकास के मॉडल के रूप में पेश किया…… गुजरात मॉडल में औद्योगिक विकास, निवेश आकर्षण…… और बुनियादी ढांचे पर जोर दिया गया….. उदाहरण के लिए, विवरांट गुजरात समिट जैसे कार्यक्रमों से विदेशी निवेश आया….. और राज्य की जीडीपी में वृद्धि हुई……
हालांकि, मोदी का कार्यकाल विवादों से भी घिरा रहा….. 2002 के गुजरात दंगों पर सवाल उठे….. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें क्लीन चिट दी…… प्रधानमंत्री बनने के बाद, मोदी ने राष्ट्रीय स्तर पर कई योजनाएं शुरू कीं…….. जिसमें मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्वच्छ भारत अभियान और आत्मनिर्भर भारत है…… इन योजनाओं से भारत की अर्थव्यवस्था में बदलाव आया…….. लेकिन बेरोजगारी, महंगाई और किसानों की समस्याएं भी बनी रहीं……. 2024 में मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने…… जो उनके लंबे राजनीतिक करियर को दर्शाता है…….
गुजरात सरकार ने इन 23 सालों को सफल और सक्षम नेतृत्व के रूप में मनाया……. लेकिन सवाल यह है कि क्या सरकारी विज्ञापन व्यक्तिगत जश्न के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं……. सुप्रीम कोर्ट की 2015 की गाइडलाइंस कहती हैं कि सरकारी विज्ञापन जनता को नीतियों की जानकारी देने के लिए होते हैं…… न कि किसी व्यक्ति की प्रशंसा के लिए…… 7 अक्टूबर 2024 को गुजरात के विभिन्न समाचार पत्रों, टीवी चैनलों, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और सोशल मीडिया पर विज्ञापन दिखे……. इनमें से एक विज्ञापन पीएम मोदी के 23 साल के सफल और सक्षम नेतृत्व पर केंद्रित था……. एक प्रमुख गुजराती दैनिक अखबार में प्रकाशित विज्ञापन का शीर्षक था विकास सप्ताह – सफल और सक्षम नेतृत्व के 23 साल……. एक अन्य आधे पेज के विज्ञापन में लिखा था…… 7 अक्टूबर 2001 से – गुजरात को विकास का भरोसा मिला……
वहीं इन विज्ञापनों में विकसित भारत के स्वप्नदृष्टा, गुजरात के गौरव के प्रतीक, विकास पुरुष और यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्रभाई मोदी को बधाई जैसे संदेश थे…… गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल की ओर से ये बधाई संदेश दिए गए थे……. विकास सप्ताह 7 से 15 अक्टूबर तक चला……. जिसमें राज्य सरकार ने 3500 करोड़ रुपये से ज्यादा के विकास प्रोजेक्ट्स लॉन्च करने की योजना बनाई…… गुजरात सरकार के प्रवक्ता और मंत्री रुशिकेश पटेल ने कहा कि यह सप्ताह गुजरात के बहुआयामी विकास को समर्पित है…..
वहीं विज्ञापन प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया पर दिए गए……. अखबारों में पूरे पेज या आधे पेज के विज्ञापन थे…… जबकि सोशल मीडिया पर ग्राफिक्स और वीडियो शेयर किए गए……. ये विज्ञापन मोदी के चित्रों से सजे थे…… जो सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस का उल्लंघन माने जा सकते हैं…… क्योंकि वे व्यक्तिगत प्रशंसा पर फोकस थे…… न कि सरकारी योजनाओं पर थे….
आपको बता दें कि बीबीसी गुजराती ने गुजरात सूचना विभाग में आरटीआई दायर की…….. जिसमें इन विज्ञापनों पर हुए खर्च का ब्योरा मांगा गया……. जवाब में पता चला कि गुजरात सरकार की प्रचार शाखा ने दो मुख्य विज्ञापन अभियानों पर कुल 8 करोड़ 81 लाख 1 हजार नौ सौ इकतालीस रुपये खर्च किए…… जिसमें पीएम मोदी को 23 साल पूरे होने पर बधाई देने वाले विज्ञापनों पर अखबारों में लगभग 2.12 करोड़ रुपये खर्च हुए…… विकास सप्ताह के प्रचार के लिए अखबारों में 3.04 करोड़ रुपये खर्च हुए…… इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल और सोशल मीडिया पर विकास सप्ताह के लिए 3.64 करोड़ रुपये खर्च हुआ……
वहीं यह खर्च सिर्फ इन दो अभियानों का है……. आरटीआई में यह भी स्पष्ट किया गया कि ये विज्ञापन जनता के पैसे से दिए गए थे….. गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने खुद इन विज्ञापनों को मंजूरी दी थी…… यह जानकारी आरटीआई एक्ट 2005 के तहत मिली…… जो पारदर्शिता सुनिश्चित करती है…… वहीं इस खर्च पर कई विशेषज्ञों ने सवाल उठाए हैं…… वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि जनता के पैसे से सिर्फ प्रधानमंत्री या किसी व्यक्ति की प्रशंसा करने वाले विज्ञापन सत्ता का दुरुपयोग और धन की बर्बादी हैं…… और उन्होंने 2015 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र किया…… जिसमें कहा गया कि सरकारी विज्ञापन नीतियों की जानकारी के लिए होते हैं…… न कि व्यक्तियों की महिमामंडन के लिए……
गुजरात हाईकोर्ट के वकील आनंद याग्निक ने इसे चापलूसी की राजनीति बताया……. और उन्होंने कहा कि यह एक नेता का दूसरे नेता को खुश करने का तरीका है…… ये विज्ञापन जनकल्याण की बजाय प्रचार के लिए हैं…… वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कल्हांस ने इसे राज्य के विकास के लिए रखे गए धन का दुरुपयोग कहा…… और उन्होंने जोर दिया कि 23 साल जैसे असामान्य आंकड़े पर जश्न मनाना सवालिया है…..
एक अन्य पत्रकार दिप्तल त्रिवेदी ने कहा कि अगर विज्ञापन समाज के अंतिम व्यक्ति को फायदा पहुंचाते हैं….. तो खर्च जायज है…… लेकिन एक नेता की प्रशंसा से क्या फायदा…… वहीं दर्शन देसाई ने कहा कि गुजरात में राजनीतिक और सरकारी विज्ञापनों में फर्क बहुत कम है…. ये राय बताती हैं कि सरकारी धन का उपयोग व्यक्तिगत प्रशंसा के लिए विवादास्पद है…… सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के मुताबिक, विज्ञापनों में प्रधानमंत्री की फोटो इस्तेमाल की जा सकती है…… लेकिन उद्देश्य जनहित होना चाहिए……
यह पहली बार नहीं है जब मोदी से जुड़े विज्ञापनों पर सवाल उठे हैं……. आरटीआई से पता चला है कि केंद्र सरकार ने 2014 से 2018 तक विज्ञापनों पर 4 हजार 3 सौ 43 करोड़ रुपये खर्च किए….. 2017 में एक आरटीआई से खुलासा हुआ कि मोदी सरकार ने तीन साल में 3 हजार 7 सौ 55 करोड़ रुपये विज्ञापनों पर खर्च किए…… जिसमें प्रिंट मीडिया पर 1 हजार 6 सौ 98 करोड़ और आउटडोर विज्ञापनों पर करोड़ों रुपये शामिल थे…… 2016 में आरटीआई से पता चला कि केंद्र सरकार ने पीएम मोदी की फोटो वाले विज्ञापनों पर 1 हजार 1 सौ करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए……. गुजरात में भी पहले ऐसे खर्च हुए हैं…… मई 2025 में आरटीआई से पता चला कि गुजरात सरकार ने 11 साल में विज्ञापनों पर 8 सौ 80 करोड़ रुपये खर्च किए…..
बता दें कि 2024 में लोकसभा चुनाव से पहले सरकार ने गूगल ऐड्स पर 38 करोड़ रुपये खर्च किए……. जिसमें मोदी की गारंटी और मोदी का परिवार जैसे कैंपेन शामिल थे…… ये उदाहरण दिखाते हैं कि विज्ञापन खर्च एक पैटर्न है…… यह खर्च गुजरात की जनता के पैसे से हुआ, जो स्वास्थ्य, शिक्षा और विकास पर खर्च हो सकता था….. गुजरात में बेरोजगारी, पानी की कमी और किसानों की समस्याएं हैं…… 8.81 करोड़ रुपये से कई स्कूल या अस्पताल बन सकते थे…… विवाद यह है कि क्या यह सत्ता का दुरुपयोग है….. वहीं कांग्रेस ने इसे व्यक्तिपूजा बताया……



