फुंसी बनी फोड़ा, एबीवीपी ने हल्ला बोला

  • धरना प्रदर्शन और भूख हड़ताल के जरिये बना रहे हैं दबाव
  • सकते में योगी सरकार, डैमेज कंट्रोल में जुटी
  • एबीवीपी के प्रतिनिधि मंडल से सीएम ने की मुलाकात
  • सीओ सस्पेंड, बुल्डोजर कार्रवाई लेकिन मान नहीं रही छात्र परिषद
  • सरकार को स्थगित करना पड़ा वन नेशन वन इलेक्शन छात्र संवाद

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। योगी सरकार के उत्तर प्रदेश में उदय के बाद यह पहला सशक्त विरोध है जिस पर सरकार बैकफुट पर है और ताबड़तोड़ कार्रवाई करने के लिए मजबूर हुई है। मामला अखिल भारतीय विधायर्थी परिषद से जुड़ा है और परिषद ने अपनी ही बनवाई सरकार के खिलाफ बगावती बिगुल फुंका रखा है। सड़कों पर ऐसे नारे लगाये जा रहे हैं जो विपक्षी पार्टियां भी नहीं लगाती।
भूख हड़ताल और आर पार के एलान ने सीएम योगी को हलकान कर दिया है। यही नहीं एबीवीपी के विरोध को देखते हुए वन नेशनल वन इलेक्शन पर छात्र संवाद को भी कैसिंल करना पड़ा है। बीती रात विधार्थी परिषद के एक डेलीगेशन ने सीएम योगी से मुलाकात कर बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की है। यह कोशिश कितना रंग लाती है यह समय बताएगा। लेकिन इतना तय है कि बाराबंकी में विरोध प्रदर्शन के दौरान जिस बेरहमी से छात्रों को कूटा गया उसकी कसक पिटे छात्रों के दिलों से निकलना मुश्किल है।

धधक रहा है छात्रों का आक्रोश

बाराबंकी के श्रीराम स्वरूप मेमोरियल विश्वविद्यालय में बीते हफ्ते वह घटना हुई जिसने पूरे प्रदेश की राजनीति को झकझोर कर रख दिया। एबीवीपी के छात्र विश्वविद्यालय प्रबंधन और प्रशासन से टकराव की स्थिति में है। आरोप है कि छात्रों की आवाज दबाने और आंदोलन रोकने के लिए पुलिस को बुलाया गया। पुलिस ने जो किया वह लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है—छात्रों पर बेरहमी से लाठियां बरसाई गईं लड़कियों तक को नहीं बख्शा गया। गवाहों के मुताबिक छात्र केवल अपनी मांगें रख रहे थे। लेकिन पुलिस ने जिस बर्बरता से कार्रवाई की उसने माहौल और भड़का। सोशल मीडिया पर छात्रों के खून से लथपथ चेहरे और टूटे बेंचों की तस्वीरें वायरल हो गईं। इन तस्वीरों ने न केवल विश्वविद्यालय की दीवारों के भीतर बल्कि पूरे प्रदेश में आक्रोश की आग को फैला दिया।

विपक्ष को मिला अप्रत्याशित तोहफा

अब तक विपक्ष योगी सरकार के खिलाफ बड़े आंदोलन खड़े करने में नाकाम रहा है। लेकिन एबीवीपी के इस विद्रोह ने विपक्ष को अप्रत्याशित तोहफा दिया है। विपक्ष केवल इतना कह रहा है कि देखो तुम्हारे अपने ही नाराज हैं। यह तंज सरकार की साख पर सीधा वार है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में युवा वोटरों का दबदबा है। भाजपा अब तक एबीवीपी जैसे छात्र संगठनों के इर्द-गिर्द राजनीति साधती आई है। लेकिन अगर एबीवीपी के आंदोलन से यह संदेश जाता है कि सरकार छात्रों की आवाज दबा रही है तो यह नाराजगी भविष्य के चुनावों में भाजपा के लिए खतरनाक साबित हो सकती है।

एबीवीपी ने सरकार को कटघरे में खड़ा किया

ऐसा पहली बार देखने को मिला जब छात्र परिषद ने खुद अपनी ही सरकार के खिलाफ सड़कों पर नारे लगाये। छात्र एकता जिंदाबाद, योगी सरकार होश में आओ जैसे नारे गूंजे। हैरत की बात यह कि ये नारे विपक्ष नहीं बल्कि वही छात्र लगा रहे थे जिनकी पहचान वर्षों से सरकार समर्थक के रूप में रही है। एबीवीपी ने न केवल विरोध प्रदर्शन किए बल्कि भूख हड़ताल पर भी बैठ गई। यह संदेश साफ था कि अब समझौते से बात नहीं बनेगी।

सीएम योगी की छवि को धक्का

सीएम योगी आदित्यनाथ की छवि एक ऐसे मुख्यमंत्री की रही है जो किसी से दबते नहीं किसी मुद्दे पर झुकते नहीं। लेकिन इस बार हालात अलग हैं। सरकार को कार्यक्रम रद्द करना पड़ा पुलिस अधिकारियों को हटाना पड़ा और सीधे सीएम को छात्रों से मिलना पड़ा। यह सब कुछ बताता है कि सरकार दबाव में आई है।

आंदोलन की आग को शांत करने में जुटी सरकार

तेजी से फैलती आंदोलन की आग को शांत करने के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पदाधिकारियों की मुलाकात हुई। इस मुलाकात के दौरान एबीवीपी पदाधिकारियों ने रामस्वरूप विवि प्रकरण के मामले में सीएम योगी को विस्तार से जानकारी दी है। उन्होंने यह भी बताया कि किस तरह पुलिस ने लाठीचार्ज किया। मुलाकात करने वाले प्रतिनिधि मंडल में पूर्वी यूपी के क्षेत्रीय संगठन मंत्री घनश्याम शाही, पश्चिमी यूपी के क्षेत्रीय संगठन मंत्री मनोज निखरा, राष्ट्रीय मंत्री अंकित शुक्ला और राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य सृष्टि सिंह मौजूद रही।

ग्रेट निकोबार द्वीप प्रोजेक्ट पर राहुल गांधी ने जताई चिंता

  • शेयर किया सोनिया गांधी का लेख
  • भाजपा सरकार को घेरा

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सोमवार को कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी का एक लेख सोशल मीडिया पर साझा किया, जिसमें ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना द्वारा निकोबार के लोगों और उसके नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र पर हो रहे अन्याय को उजागर किया गया। ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना, ग्रेट निकोबार द्वीप पर भारत सरकार की एक प्रमुख पहल है जिसका उद्देश्य समग्र विकास और रणनीतिक स्थिति बनाना है, जिसमें एक ट्रांसशिपमेंट पोर्ट, एक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, एक ऊर्जा संयंत्र और एक टाउनशिप शामिल है।
एक्स पर साझा की गई एक पोस्ट में, राहुल गांधी ने कहा कि ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना एक दुस्साहस है, जो आदिवासियों के अधिकारों को कुचल रही है और कानूनी व विचार-विमर्श प्रक्रियाओं का मजाक उड़ा रही है। इस लेख के माध्यम से, कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी इस परियोजना द्वारा निकोबार के लोगों और उसके नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र पर हो रहे अन्याय को उजागर करती हैं।

‘मूल आदिवासी समुदायों के अस्तित्व के लिए खतरा’

सोनिया गांधी ने यह भी तर्क दिया कि शोम्पेन को और भी बड़े खतरे का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा अधिसूचित द्वीप की शोम्पेन नीति के अनुसार, बड़े पैमाने पर विकास प्रस्तावों पर विचार करते समय अधिकारियों को जनजाति के कल्याण और अखंडता को प्राथमिकता देनी होगी। उन्होंने आगे कहा, इसके बजाय, यह परियोजना शोम्पेन जनजातीय अभ्यारण्य के एक बड़े हिस्से को गैर-अधिसूचित करती है, उन वन पारिस्थितिकी प्रणालियों को नष्ट करती है जहां शोम्पेन रहते हैं और इससे द्वीप पर बड़े पैमाने पर लोगों और पर्यटकों की आमद होगी। कांग्रेस नेता ने यह भी कहा कि जनजातीय अधिकारों के संरक्षण के लिए स्थापित संवैधानिक और वैधानिक निकायों को इस पूरी प्रक्रिया में दरकिनार कर दिया गया है।

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