किसान को मिला ‘तैरता सोना’, कीमत 5 करोड़ से ज्यादा, पुलिस हिरासत में जांच जारी

गुजरात के एक किसान को समुद्र में मिला रहस्यमयी ‘तैरता सोना’... जिसकी कीमत बताई जा रही है 5 करोड़ से ज्यादा!

4पीएम न्यूज नेटवर्कः दोस्तों गुजरात के सूरत शहर में एक ऐसी घटना घटी है.. जो एक साधारण किसान की जिंदगी को रातोंरात बदल सकती थी.. लेकिन पुलिस की सतर्कता ने इसे एक बड़े रहस्य में बदल दिया.. कल्पना कीजिए, एक गरीब किसान समुद्र तट पर घूमते हुए एक मोम जैसा टुकड़ा पा लेता है.. जो देखने में साधारण लगता है.. लेकिन उसकी कीमत करोड़ों रुपये है.. इसे ‘तैरता सोना’ या एम्बरग्रीस कहा जाता है.. सूरत पुलिस की स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने वराछा हीराबाग सर्कल के पास से एक 40 वर्षीय किसान को गिरफ्तार किया.. जिसके पास से 5.72 किलोग्राम एम्बरग्रीस बरामद हुआ.. इसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत करीब 5.72 करोड़ रुपये आंकी गई है.. पुलिस का कहना है कि यह मामला किसी बड़े तस्करी नेटवर्क से जुड़ा हो सकता है.. और फिलहाल पूरी जांच चल रही है.. आरोपी ने दावा किया है कि यह चीज उसे चार महीने पहले भावनगर के समुद्र तट पर मिली थी.. लेकिन पुलिस को शक है कि इसके पीछे कुछ और राज छिपा है..

यह खबर न सिर्फ सूरत ही नहीं बल्कि पूरे गुजरात और देश को हिला रही है.. एम्बरग्रीस जैसी दुर्लभ वस्तु का मिलना किसानों और मछुआरों के लिए कभी-कभी किस्मत का धनुष होता है.. लेकिन भारत में इसकी खरीद-बिक्री गैरकानूनी है.. आखिर यह ‘तैरता सोना’ क्या है, कैसे मिला, और क्यों पुलिस इसे तस्करी से जोड़ रही है.. वैज्ञानिक भाषा में तैरता सोना को ‘एम्बरग्रीस’ कहते हैं.. जो स्पर्म व्हेल के पाचन तंत्र में बनने वाला एक मोमी पदार्थ है.. यह व्हेल के आंतों में स्क्विड और अन्य समुद्री जीवों के कठोर भागों को पचाने के लिए बनता है.. जब यह पदार्थ व्हेल के शरीर से बाहर निकलता है, तो यह समुद्र में तैरता रहता है.. और समय के साथ नरम मोम से कठोर, सुगंधित पदार्थ में बदल जाता है.. यही वजह है कि इसे ‘फ्लोटिंग गोल्ड’ या ‘तैरता सोना’ कहा जाता है..

इसकी खोज का इतिहास सदियों पुराना है.. प्राचीन मिस्र और रोम के समय से ही इसे दवा और सुगंध के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा.. मध्ययुग में यूरोप के व्यापारी इसे ‘ग्रे एम्बर’ कहकर बेचते थे.. आजकल, इसका मुख्य उपयोग परफ्यूम उद्योग में होता है.. एम्बरग्रीस एक प्राकृतिक फिक्सेटिव है.. जो परफ्यूम की खुशबू को लंबे समय तक बरकरार रखता है.. मशहूर ब्रांड जैसे चैनल नंबर 5 और क्रिड अवेन्यू में इसका इस्तेमाल होता है.. लेकिन अब सिंथेटिक विकल्प उपलब्ध होने से इसकी मांग थोड़ी कम हुई है.. फिर भी दुर्लभ होने के कारण इसकी कीमत आसमान छूती है..

कीमत की बात करें तो एम्बरग्रीस की वैल्यू उसके आकार, रंग और सुगंध पर निर्भर करती है.. सफेद या ग्रे रंग का एम्बरग्रीस सबसे महंगा माना जाता है.. अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रति किलोग्राम 1 करोड़ रुपये तक मिल सकता है.. सूरत मामले में 5.72 किलो कीमत 5.72 करोड़ बताई गई है.. जो औसत मूल्यांकन है.. लेकिन कुछ मामलों में यह और भी ज्यादा बिकता है.. 2022 में केरल के मछुआरों ने 28 करोड़ का एम्बरग्रीस समर्पित किया था.. भारत में एम्बरग्रीस का कानूनी दर्जा सख्त है.. वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट, 1972 की धारा 2 के तहत स्पर्म व्हेल को शेड्यूल 2 में शामिल किया गया है.. जिसका मतलब है कि इसका कोई भी भाग रखना, बेचना या खरीदना अपराध है.. 3 से 7 साल की कैद और जुर्माना हो सकता है.. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और भारत जैसे देशों में यह बैन है.. लेकिन यूके और कुछ यूरोपीय देशों में कानूनी है.. भारत में तस्करी रोकने के लिए वन विभाग और कस्टम्स सक्रिय रहते हैं..

20 सितंबर 2025 को सूरत शहर की एसओजी टीम को एक गुप्त सूचना मिली कि वराछा हीराबाग सर्कल के आसपास कोई व्यक्ति दुर्लभ वस्तु बेचने की कोशिश कर रहा है.. टीम ने तुरंत निगरानी शुरू की.. पीआई ए.पी. चौधरी के नेतृत्व में एएसआई हितेशसिंह दिलीप सिंह और हेड कांस्टेबल किरीटभाई संजीभाई की टीम ने संदिग्ध व्यक्ति को घेर लिया.. वह व्यक्ति कोई और नहीं.. बल्कि भावनगर जिले के हाथब गांव का रहने वाला विपुल भूपतभाई बांभणिया था..

विपुल 40 वर्षीय एक साधारण किसान और मजदूर है.. पूछताछ में उसने बताया कि वह खेती-बाड़ी और दिहाड़ी मजदूरी करता है.. उसके परिवार में पत्नी और दो बच्चे हैं.. और गांव में जीवन कठिनाइयों भरा है.. चार महीने पहले यानी मई 2025 के आसपास, वह हाथब के समुद्र तट पर टहल रहा था.. तट पर लहरें एक अजीब मोम जैसा टुकड़ा लाईं.. जो देखने में साधारण कचरा लग रहा था.. लेकिन विपुल ने इसे उठा लिया.. शुरुआत में उसे नहीं पता था कि यह क्या है.. लेकिन गांव के बुजुर्गों से बातचीत और यूट्यूब वीडियोज देखने के बाद उसे अहसास हुआ कि यह एम्बरग्रीस हो सकता है..

विपुल ने स्थानीय स्तर पर इसे बेचने की कोशिश की.. भावनगर के बाजारों और संपर्कों से वह खरीदार ढूंढता रहा.. लेकिन कोई नहीं मिला.. एम्बरग्रीस की पहचान मुश्किल होती है.. और स्थानीय लोग इसकी वैल्यू नहीं जानते.. आखिरकार वह इसे सूरत लेकर आया.. जहां हीरा व्यापार और अमीर वर्ग के कारण ऐसी दुर्लभ चीजों की मांग ज्यादा है.. वह एक संभावित खरीदार से मिलने आया था.. लेकिन पुलिस ने उसे पकड़ लिया.. उसके बैग से 5.72 किलो एम्बरग्रीस निकला, जो पैकेट में लिपटा था..

पुलिस ने विपुल का मोबाइल फोन भी जब्त किया.. इसमें दुर्लभ वस्तुओं की तस्वीरें और जानवरों-पंछियों से जुड़े अंधविश्वासपूर्ण रस्मों के वीडियो मिले.. इससे पुलिस को शक हुआ कि विपुल दुर्लभ चीजों की जानकारी रखता है.. डीसीपी (एसओजी) राजदीप सिंह नकुम ने बताया कि आरोपी को आगे की जांच के लिए गुजरात वन विभाग को सौंप दिया गया है.. एम्बरग्रीस को डुमास के वन विभाग में रखा गया है..

विपुल की कहानी सरल लगती है.. लेकिन पुलिस को लगता है कि इसके पीछे कुछ बड़ा है.. शुरुआती जांच में सामने आया कि हाथब तट पर एम्बरग्रीस मिलना असामान्य नहीं.. लेकिन इतनी मात्रा एक ही टुकड़े में मिलना दुर्लभ है.. आमतौर पर छोटे-छोटे टुकड़े मिलते हैं.. क्या विपुल ने इसे इकट्ठा किया था या किसी तस्करी गिरोह से लिया.. पुलिस इसकी पड़ताल कर रही है.. सूरत एसओजी ने कहा कि यह मामला अंतरराष्ट्रीय तस्करी से जुड़ सकता है.. क्योंकि एम्बरग्रीस की डिमांड मिडिल ईस्ट और यूरोप में ज्यादा है..

भारत में एम्बरग्रीस तस्करी एक बड़ा मुद्दा है.. वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी की 2015-21 रिपोर्ट के मुताबिक.. भारत में 36 एम्बरग्रीस जब्ती के मामले दर्ज हुए.. गुजरात इसका हॉटस्पॉट है.. क्योंकि यहां 1600 किलोमीटर लंबा तट है.. 2025 में ही गुजरात में कई मामले सामने आए.. अगस्त 2025 में अहमदाबाद में 3.69 किलो एम्बरग्रीस जब्त हुआ.. जहां पुलिस ने खरीदार बनकर गिरोह को फंसाया.. उसी महीने अहमदाबाद रूरल में 2.97 किलो बरामद हुआ.. जून 2025 में वडोदरा के पास 1.58 करोड़ का एम्बरग्रीस छह लोगों से जब्त किया गया..

वहीं ये मामले दिखाते हैं कि गुजरात में तस्करी का नेटवर्क सक्रिय है.. ज्यादातर गिरोह मछुआरों या तटीय गांवों के लोगों को इस्तेमाल करते हैं.. वे एम्बरग्रीस को छोटे टुकड़ों में बांटकर शहरों जैसे सूरत, अहमदाबाद या मुंबई ले जाते हैं.. जहां अमीर खरीदार या निर्यातक इंतजार करते हैं.. सूरत का हीरा बाजार इस तस्करी का केंद्र बन चुका है.. क्योंकि यहां नकदी लेन-देन आसान है.. 2024 में राजकोट के पास 12 किलो एम्बरग्रीस जब्त हुआ.. जो एक डाई फैक्टरी से बरामद था..

विपुल के मामले में पुलिस यूट्यूब वीडियोज का हवाला दे रहा है.. लेकिन शक है कि उसे किसी ने गाइड किया हो.. उसके फोन में मिले वीडियोज से लगता है कि वह दुर्लभ वस्तुओं का शौकीन था.. शायद पुरानी वस्तुएं या वन्यजीव उत्पाद.. जांच में अगर तस्करी साबित हुई.. तो मामला एनआईए या कस्टम्स तक पहुंच सकता है.. एम्बरग्रीस सिर्फ आर्थिक वैल्यू वाला नहीं.. बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है.. यह व्हेल की सेहत का इंडिकेटर है.. अगर व्हेल को स्क्विड पचाने में दिक्कत हो.. तो एम्बरग्रीस बनता है.. समुद्र में तैरते हुए यह सालों तक रह सकता है.. और बैक्टीरिया से सुगंधित हो जाता है.. रिसर्चर्स इसे स्टडी करते हैं.. ताकि व्हेल की आबादी का आकलन कर सकें..

लेकिन पर्यावरण के लिहाज से यह खतरा है.. स्पर्म व्हेल लुप्तप्राय प्रजाति है.. आईयूसीएन के मुताबिक, इनकी संख्या घट रही है.. तस्करी से व्हेल हंटिंग बढ़ सकती है.. हालांकि ज्यादातर एम्बरग्रीस प्राकृतिक रूप से मिलता है.. भारत में वन्यजीव संरक्षण के लिए एम्बरग्रीस बैन जरूरी है.. 2023 में एक मृत व्हेल के पेट से 4 करोड़ का एम्बरग्रीस मिला था.. जो दिखाता है कि यह दुर्लभ है.. परफ्यूम इंडस्ट्री अब सिंथेटिक एम्बरग्रीस यूज करती है.. जो पर्यावरण फ्रेंडली है.. लेकिन ब्लैक मार्केट में असली की डिमांड बनी हुई है..

गुजरात का तट एम्बरग्रीस का खजाना है.. भावनगर, अमरेली और जूनागढ़ जैसे जिले ऐसे मामले देखते रहते हैं.. विपुल का गांव हाथब भी समुद्र से सटा है.. जहां मछुआरे रोज लहरों से सामान लाते हैं.. 2021 में गुजरात में 7 करोड़ का एम्बरग्रीस जब्त हुआ था.. तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया.. 2025 में अप्रैल से ही चार बड़े मामले दर्ज हुए.. वहीं ये घटनाएं दिखाती हैं कि जागरूकता बढ़ रही है.. यूट्यूब और सोशल मीडिया से लोग वैल्यू जान जाते हैं.. लेकिन कानूनी जोखिम भूल जाते हैं.. विपुल की तरह कई किसान फंस जाते हैं..

 

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